सौड़ (dhangu) के शेर सिंह नेगी की आलिशान तिबारी
सौड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अलंकरण कला -8
Traditional House wood Carving Ornamentation Art of Saur, Dhangu , Garhwal, Himalaya 8
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उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अलंकरण अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 12
Traditional House Wood Carving Ornamentation Art (Tibari) of Uttarakhand , Himalaya - 12
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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जैसे कि पिछले अध्यायों में सौड़ के बारे में कई सूचनाएं दी गयीं हैं कि सौड़ छोटा गाँव होते भी ओडगिरि (भवन निर्माण ) व बढ़ईगिरी हेतु प्रसिद्ध रहा है। मकान निर्माण में सौड़ के ओडों के जसीले हाथ की छवि भी रही है।
सौड़ में दो ही तिबारियां थीं और दोनों उच्च स्तरीय तिबारी कहलायी जातीं थीं. बण्वा सिंह नेगी की तिबारी बारे में पहले ही सूचना दे दी गयी है। दूसरी चक्षु प्रिय तिबारी शेर सिंह नेगी की है जो अभी भी गर्व से खड़ी है और 1900 -1915 के आसपास भवन निर्माण शैली की कहानी कहती रहती है।
शेर सिंह नेगी कि तिबारी भी ढांगू की अन्य तिबारियों जैसे ही पहली मंजिल पर है व ऊपरी मंजिल जाने हेतु तल मंजिल (उबर ) पर ही प्रवेश है। यह तिबारी शेर सिंह नेगी के पिता ने ही निमृत कराई होगी।
सौड़ के शेर सिंह नेगी की तिबारी में प्राकृतिक , ज्यामितीय , मानवीय (पशु ,मनुष्य या पक्षी आकृति ) प्रकार के अलंकरण दिर्ष्टि गोचर होते हैं।
काष्ठ उत्कीर्ण में उभारी गयी तकनीक,अधःकाट तकनीक, तेज धार से कटाई , मूर्ति सदृश्य तकनीक , बेधित करती तकनीक व छीलने वाली तकनीक से नक्कासी की गए है।
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प्रवेश द्वार स्तम्भ , मेहराब व मुरिन्ड पर काष्ठ नक्कासी
शेर सिंह नेगी की तिबारी का प्रवेश भी भव्य था। ऊपरी मंजिल (तिबारी ) में जान हेतु तल मंजिल पर प्रवेश द्वार था। प्रवेश द्वार के दो स्तम्भ हैं , दोनों स्तम्भ अलंकृत है। आधार कुम्भी आकृति का है व फिर तिबारी के स्तम्भ जैसा ही अलंकरण है। स्तम्भ (सिंगाड़ ) के शीर्ष में अलंकृत मुरिन्ड (शीर्ष। सर ) है। मुरिन्ड के केंद्र में शगुन प्रतीक गणेशनुमा एक उभरी आकृति है व किनारे पर चक्राकार फूल दल हैं। स्तम्भ के तीन चौथाई भाग से अलंकृत मेहराब के अर्ध मंडल भाग शरू होते हैं. । प्रवेश काष्ठ स्तम्भ व मुरिन्ड (स्तम्भ शीर्ष ) उत्कीर्णित नक्कासी सभी शगुन प्रतीक है। प्रवेश द्वार के स्तम्भों से निकला मेहराब अर्धगोलाकार है। मेहराब पर भी प्राकृतिक कलाकृतियां हैं. कुमाऊं व हिमाचल व उत्तरकाशी में उन्नीसवीं व बीसवीं सदी प्रथम भगा में निर्मित ऐसे कई प्रवेश द्वार मिलते हैं।
स्तम्भ /सिंगाड़ में काष्ठ कलाकृति ( Wood Carving Art in Columns )
पहली मंजिल की तिबारी (बरामदा ) पर चार स्तम्भ हैं। चार स्तम्भों से तीन मोरी /द्वार /खोली बनी हैं। प्रत्येक सम्भ पत्थर के छज्जे पर हाथी पाँव आकृति पर टिके (कुम्भ आधार ,) हैं जहां से अधोगामी पदम् पुष्प दल शुरू होता है और यह पदम् पुष्प काष्ठ गुटका ( wooden round plate ) से शुरू होता है व स्तम्भ का शाफ़्ट यहां पर कम छुड़ा है। इस गुटके से फिर स्तम्भ सॉफ्ट पर उर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल शुरू होते हैं व ऊपर जाकर कमलाकृति प्रदान करते हैं। फिर सॉफ्ट ऊपर की और जाता है जहां से अधोगामी पुष्प दल आकृतियां हैं जैसे दल नीचे लटके हों। यहां से गुटकों में गोल प्लाट है। फिर इस नक्कासीदार गोल गुटके से पुष्प छवि देता आकृति है जहां से मेहराब का अर्ध मंडल शुरू होता है और स्तम्भ के थांत शुरू होता है। प्रत्येक मेहराब के अर्ध मडल दूसे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर गोलाकार मेहराब बनाते हैं। मेहराब पर बेल बूटों की नयनाभिरामी नक्कासी है व मेहराब कुछ कुछ (थोड़ा बहुत ) रोमन आर्क शैली की याद दिलाता है या गुजरात में बने arc की याद दिलाते हैं ( देखें , जय ठक्कर , नक्श:, द आर्ट ऑफ वुड कार्विंग इन ट्रेडीसनल हाउसेज ऑफ गुजरात अ फॉक्स ऑन ऑर्नमेंटेसन ,स्कूल ऑफ़ इंटीरियर डिजायन पृष्ठ 24 ) । मेहराब का अंदर भाग छोटे छोटे धनुषाकार आकृतियों से सजी है।
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स्तम्भ थांत पर पशु पक्षी की कलाकृतियां (Figurative Ornamentation on Head of Column )
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स्तम्भ के सॉफ्ट से जहां से मेहराब का अर्ध मंडल शुरू होता है वहीं से स्तम्भ का थांत भी प्रारम्भ होता है। थांत उभरी आकृति है जिस पर चिड़िया का खूबसूरत गला व चोंच है व शरीर का भाग चक्र है जो इस आकृति को गरिमा प्रदान करता है। चिड़िया उत्कीर्ण आकृति के ऊपर शंकुनुमा आकृतियां है व किनारे के दो स्तम्भों पर इन आकर्कित्तयों के ऊपर हाथी की आकृति खुदी है , हाथी शौर्य, बल व स्थाईत्व एवं द्वारपाल या क्षेत्रपाल का प्रतीक है। हाथी की सूंड बलशाली हाथी की है। बीच के दो स्तम्भों के थांत में हाथी के स्थान पर दो चिड़ियां खुदी आकृतियां हैं। (figurative ornamentation ) .
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स्तम्भ व मेहराब शीर्ष की समांतर पट्टियों में कालकृति
मेहराब शीर्ष के ऊपर छत तक छह प्रकार की पट्टियां साफ़ दिखती हैं। इन छह पट्टियों में ऊपर की पट्टी सबसे अधिक चौड़ी पट्टी है। पर्यटक पट्टी में अलग अलग प्राकृतिक अलंकरण खुदी है। अलंकरण नक्कासी चक्षु आनंद दायी हैं। ऊपरी चौड़ी पट्टी में चक्राकार चक्र पर पुष्प दल उभरे हैं व चक्र केंद्र में गणेश प्रतीक है जो उभरा नहीं किन्तु गहरा है। शेर सिंह नेगी के तिबारी के महराब शीर्ष ऊपर इन पट्टियों में figurative ornamentation (मानवीय =पशु पक्षी आकृति अलंकरण ) नहीं हैं केवल प्राकृतिक (प्रकृति वनस्पति , लटपर्ण लंकार ) अलकंरण ही मिलते हैं।
दास (टोढ़ी ) में बतख गला व चोंच आकृति
छत से पट्टियों की ओर लटकते शंकुनुमा आकृतियां हैं , छत लकड़ी पट्टी व दास (टोड़ी ) पर टिकी हैं। दास (टोड़ी ) बतख की चोंच व गला नुमा आकृति (अलंकरण ) से बने हैं हैं व बतख के ऊपर कुछ कुछ चिड़िया छवि उभरती है।
तिबारी के आंतरिक भाग में भी काष्ठ उत्कीरण हुआ है।
इस तरह हम पाते हैं कि शेर सिंह नेगी की तिबारी (ऊपरी पहली मंजिल की बैठक ) पर ज्यामितीय , मानवीय (यहां पशु हाथी व पक्षियां ) , लतापरं व पुष्प अलंकरण हुआ है जो रक्षा , शान्ति , बल , शौर्य , मांगल्य के प्रतीक हैं व दार्शनिक छवि भी प्रदान करते हैं।
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श्रीनगर से आये काष्ठ कलाकार
सौड़ में शेर सिंह नेगी की तिबारी वास्तव में शेर सिंह नेगी द्वारा निर्मित कराई गयी थी जो प्रसिद्ध ओड थे। सौड़ के लुंगाड़ी सिंह की पहली पत्नी ने सूचना देते बताया कि तिबारी हेतु काष्ठ उत्कीर्ण कलाकार श्रीनगर से आये थे व वे सटे गाँव छतिंड में निवास करते थे जहां काष्ठ कला उत्कीर्ण का कार्य चला था। निर्मित कालकृति सौड़ लायी जाती थी और तिबारी पर लगये जाते थे। कहते है कि तिबारी हेतु काष्ठ उत्कीर्ण कार्य पर दो साल लगे। तिबारी निर्माण काल भी 1895 -1900 -1915 के मध्य या लगभग होना चाहिए।
सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी, कीर्ति सिंह नेगी , व दीनू नेगी (सौड़ )
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