[justify]अब पीजिए बिच्छू घास की ताजा चाय
पहाड़ के लोग तो परंपरागत सिसूण (बिच्छू घास) के साग को भूल गए हैं, लेकिन विटामिन और मिनरल्स से भरपूर यह घास अब अमीरों की पसंदीदा बन गई है। जिस बिच्छू घास को आमतौर पर हम जानवरों को भी नहीं खिलाते हैं, अब उसकी चाय 2200 रुपए किलो बिक रही है।
अल्मोड़ा के निकट चितई के पंत गांव में स्थापित कंपनी पिछले डेढ़ साल में बिच्छू घास से बनी 500 किलो चाय देश भर के बड़े शहरों में बेच चुकी है। अभी सालाना उत्पादन करीब चार क्विंटल है। इसका फ्लेवर खीरे की तरह होता है। कंपनी से जुड़ीं कर्नाटक की अमृता बताती हैं कि करीब छह साल पहले पति संतोष व चितई के पंत गांव निवासी डा. वसुधा पंत के सहयोग से पहाड़वासियों के परंपरागत चीजों के मार्केटिंग की योजना बनाई थी। इसी कड़ी में पहाड़ के परंपरागत सिसूण की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने बिच्छू घास की चाय बनाने की सोची। बिच्छू घास की चाय के 50 ग्राम के एक पैकेट की कीमत 110 रुपए है और इसकी काफी मांग है।
विटामिन और मिनरल्स से भरपूर
बिच्छू घास स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है। इसमें ढेर सारे विटामिन और मिनरल्स हैं। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेड, एनर्जी, कोलेस्ट्रोल जीरो, विटामिन ए, सोडियम, कैल्शियम और आयरन हैं।
बिच्छू घास को अंग्रेजी में नेटल कहा जाता है। इसका बॉटनिकल नाम अर्टिका डाइओका है। कुमाऊंनी में इसे सिसूण कहते हैं। वह विशुद्ध कुमाऊंनी शब्द है। बिच्छू घास मध्य हिमालय क्षेत्र में होती है। यह घास मैदानी इलाकों में नहीं होती। बिच्छू घास में पतले कांटे होते हैं। इसमें बिच्छू के काटने जैसी पीड़ा होती है और बहुत लगने से सूजन आ जाती है। इसका प्रयोग सजा देने के लिए भी होता रहा है।
दीप जोशी, अमर उजाला-अल्मोड़ा