आयुश ग्राम: एक सपना टूटा, दूसरा भी कहीं `सपना´ ही न रह जाऐ
चार करोड़ की लागत से इसी जगह बनना था कमला नेहरू चेस्ट इंस्टिट्यूट, जो सत्ता परिवर्तन की भेंट चढ़ा, आगे फिर सत्ता बदली तो आयुश ग्राम बनने पर भी संशय, कांग्रेसी पहले ही तरेर चुके हैं आंखें
नवीन जोशी, नैनीताल। कहते हैं, दूसरों के स्वप्नों की कब्र पर कभी अपने सपनों की ताबीर नहीं बनती। प्रदेश सरकार द्वारा भवाली में आयुर्वेदिक चिकित्सा को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से `ड्रीम प्रोजेक्ट´ के रूप में जिस आयुश ग्राम का `स्वप्न´ संजोया जा रहा है, यदि कहा जाऐ कि यह पिछली पं. नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व वाली तिवारी सरकार के ऐसे ही `कमला नेहरू चेस्ट इंस्टिट्यूट´ के `स्वप्न´ की बलि देकर देखा जा रहा है, तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। चेस्ट इंस्टिट्यूट के लिए यहां चार करोड़ रुपऐ से अधिक की अत्याधुनिक मशीनें भी आ चुकी थीं, लेकिन सत्ता परिवर्तन ने यह स्वप्न बुरी तरह तोड़ दिया। अब वर्तमान सरकार के `स्वप्न´ पर स्थानीय कांग्रेसी पहले ही आंखें तरेर चुके हैं, ऐसे में यदि पुन: सत्ता परिवर्तन हुआ तो इस स्वप्न का भी पहले वाले जैसा अंजाम हुआ, तो आश्चर्य न होगा।
उल्लेखनीय है कि कभी देश ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्ध 220 एकड़ भूमि में फैले 320 बेड के `भवाली टीबी सेनिटोरियम´ की उपयोगिता टीबी मरीजों की संख्या घटने और इस हेतु घर बैठे `डॉट पद्धति´ से इलाज की नई प्रविधि आने के साथ लगातार घटती जा रही है। सरकार की मंशा इसके संसाधनों व कर्मचारियों के समुचित सदुपयोग के लिए 150 बेड तक सीमित करने की है। ऐसे में पिछली तिवारी सरकार ने केवल टीबी के इस संस्थान को आज के समय के हिसाब से जरूरी छाती में होने वाले कैंसर, निमोनिया व दमा जैसे सभी बीमारियों की इलाज व शूध हेतु `चेस्ट इंस्टिट्यूट´ बनाने का प्रस्ताव किया। वर्ष 2002 में बकायदा इस हेतु शासनादेश जारी हुआ, और एक वर्ष बाद इसका नाम यहां उपचार कराने वाली देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पत्नी स्व. कमला नेहरू के नाम से नामकरण भी कर दिया गया। इसके बाद यहां लगभग 2.67 करोड़ रुपऐ से अत्याधुनिक सीटी स्कैन, 44 लाख रुपऐ से अल्ट्रासाउण्ड व 11.89 लाख रुपऐ से ऑटो ऐनालाइजर के साथ ही सेमी ऑटो ऐनालाइजर तथा कई अन्य मशीनें भी आ गईं। इसमें जापान का भी सहयोग लिया जाना और इसे उत्तरी भारत का अग्रणी छाती रोग संस्थान बनाया जाना प्रस्तावित था। इस बीच तत्कालीन स्वास्थ्यमंत्री तिलक राज बेहड़ ने यहां चेस्ट इंस्टिट्यूट का उद्घाटन भी किया, लेकिन राज्य की सत्ता परिवर्तन के बाद यह स्वप्न पूरी तरह टूट गया। संस्थान में विशेशज्ञ चिकित्सकों के न आने से करोड़ों की मशीनें कबाड़ में तब्दील होने लगी हैं। इधर सोमवार को मुख्यमंत्री द्वारा देहरादून में यहां निजी सहभागिता से सेनिटोरियम की 10 एकड़ भूमि पर आयुष ग्राम बनाने के लिए निजी कंपनी `इमामी´ से करार पत्रा पर हस्ताक्षर किऐ गऐ हैं, जिसकी संभावना `राष्ट्रीय सहारा´ गत 10 जुलाई को ही प्रमुखता से समाचार प्रकाशित कर जता चुका था। इस पर कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। साफ है कि आगे यदि पुन: राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ तो `आयुष ग्राम´ की राह निष्कंटक नहीं होगी।