कांटेदार टिमरू ही नहीं रामबाण भी
उत्तराखंड के पहाड़ में कांटेदार टिमरू अधिकतर जगहों पर पाया जाने वाला पेड़ है। यह दवाईयों और टोटकों के साथ कई अन्य मामलों में भी इसका इस्तेमाल होता है। बदरीनाथ तथा केदारनाथ में इसकी टहनी को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। उत्तराखंड के सभी जिलों में टिमरू अधिकांश मात्रा में पाया जाता है। इसकी प्रमुख रूप से पांच प्रजातियां उत्तराखंड में पाई जाती हैं,जिसका वानस्पतिक नाम जैन्थोजायलम एलेटम है। दांतों के लिए विशेषकर दंत मंजन, दंत लोशन व बुखार में यह काम आता है। इसके फल को भी उपयोगों में लाया जाता है। इसका फल पेट के कीड़े मारने व हेयर लोशन के काम में भी लाया जाता है।
कई दवाइयों में इसके पेड़ का प्रयोग किया जाता है। इसके मुलायम टहनियों को दांत में रगड़ने से चमक आती है जो बाजार के किसी भी मंजन से नहीं आती है। यह आपके दांतों को मजबूत रखने के साथ ही दातों में कीड़ा नहीं लगने देता। यह मसूड़ों की बीमारी के लिए भी रामबाण का काम करता है।
उत्तराखंड के गांव में आज भी कई लोग इसकी टहनियों से ही दंतमंजन करते हैं। टिमरू औषधीय गुणों से युक्त तो है ही, साथ ही इसका धार्मिक व घरेलू महत्व भी है। हिन्दुओं प्रसिद्ध धाम बदरीनाथ तथा केदारनाथ में प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है। यही नहीं गांव में लोंगो की बुरी नजर से बचने के लिए इसके तने को काटकर अपने घरों में भी रखते हैं। गांव में लोग इसके पत्ते को गेहूं के बर्तन में डालते हैं, क्योंकि इससे गेहूं में कीट नहीं लगते।