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इतिहास के झरोखों से : उत्तराखंड क़ी बीर गाथाएं (राजा धामदेव क़ी " सागर ताल गढ़ " विजय गाथा )
देवभूमि उत्तराखंड अनादि काल से ही वेदों , पुराणों ,उपनिषदों और समस्त धर्म ग्रंथों में एक प्रमुख अध्यात्मिक केद्र के रूप में जाना जाता रहा है | यक्ष ,गंधर्व ,खस ,नाग ,किरात,किन्नरों की यह करम स्थली रही है तो भरत जैसे प्राकर्मी और चक्रवर्ती राजा की यह जन्म और क्रीडा स्थली रही है | यह प्राचीन ऋषि मुनियों - सिद्धों की तप स्थली भूमि रही है | उत्तराखंड एक और जहाँ अपने अनुपम प्राक्रतिक सौंदर्य के कारण प्राचीन काल से ही मानव जाति को को अपनी आकर्षित करता रहा है तो वहीं दूसरी और केदारखंड और मानस खंड (गढ़वाल और कुमौं ) इतिहास के झरोखों में गढ़ों और भड़ों की ,बलिदानी वीरों की जन्मदात्री भूमि भी कही ज़ाती रही है | महाभारत युद्ध में इस क्षेत्र के वीर राजा सुबाहु (कुलिंद का राजा ) और हिडिम्बा पुत्र घटोत्कच का और अनेकों ऐसे राजा- महाराजाओं का वर्णन मिलता है जिन्होने कौरवों और पांडवों की और से युद्ध लड़ा था | नाग वीरों में यहाँ वीरंणक नाग (विनसर के वीर्नैस्वर भगवान ) ,जौनसार के महासू नाग (महासर नाग ) जैसे वीर आज भी पूजे जाते हैं | आज भी इन्हे पौड़ी -गढ़वाल में डांडा नागराजा ,टिहरी में सेम मुखिम,कुमौं शेत्र में बेरी - नाग ,काली नाग ,पीली नाग ,मूलनाग, फेर्री नाग ,पांडूकेश्वर में में शेषनाग ,रत्गौं में भेन्कल नाग, तालोर में सांगल नाग ,भर गोवं में भांपा नाग तो नीति घाटी में लोहान देव नाग और दूँन घाटी में नाग सिद्ध का बामन नाग अदि नाम से पूजा जाता है | जो प्राचीन काल में नाग बीरो कि वीरता परिभाषित करता है | बाडाहाट (उत्तरकाशी) कि बाड़ागढ़ी के नाग बीरों कि हुणो पर विजय का प्रतीक और खैट पर्वत कि अन्चरियों कि गाथा (७ नाग पुत्रियाँ जो हुणो के साथ अंतिम साँस तक तक संघर्ष करते हुए वीरगति का प्राप्त हो गयी थी ) आज भी " शक्ति त्रिशूल "के रूप में नाग वीरों क़ी वीरता क़ी गवाही देता है तो गुजुडू गढ़ी का गर्जिया मंदिर गुर्जर और प्रतिहार वंश के वीरों का शंखनाद करता है | यूँ तो देवभूमि वीर भड़ो और गढ़ों क़ी भूमि होने के कारण अपनी हर चोटी हर घाटी में वीरों क़ी एक गाथा का इतिहास लिये हुए है जिनकी दास्तान आज भी यहाँ के लोकगीतों ,जागर गीतों आदि के रूप में गाई ज़ाती है यहाँ आज भी इन् वीरों को यहाँ आज भी देवरूप में पूजा जाता है |
Regards,
M S Mehta