Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 53173 times)

Bhishma Kukreti

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      चंद्र गुप्त प्रथम (गुप्त काल)  का हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास 
 History of Haridwar, Bijnor, saharanpur in Chandra  Gupt I  of Gupta Era
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  205
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  205               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति व सहारणपुर में गुप्त कालीन मुद्राएं मिलने से अनुमान लगाया जा सकता है कि सहरानपुर , हरिद्वार व बिजनौर गुप्त सम्राटों के अधीन आ गए थे।  हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर गुप्त साम्राज्य के जीते प्रदेश थे या उपादेय क्षेत्र थे पर कोई स्पष्ट सामग्री उपलब्ध नहीं हैं। किन्तु यह टी है कि ये क्षेत्र राज्याधिकारियों या गवर्नरों द्वारा शासित होते थे।

    चन्द्रगुप्त प्रथम
कर्तृपुर जनपद (जोशीमठ निकट ) नरेश ने समुद्रगुप्त की आधीनता स्वीकार कर ली थी जिससे अनुमान लगता है हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर समुद्र गुप्त के आधीन आ गए होंगे।  फिर भी कर्तृपुर नरेश का प्रत्यंत के रूप में अस्तित्व बना रहा जो समुद्रगुप्त पुत्र चंद्र गुप्त द्वितीय काल में स्वतंत्र सत्ता नस्ट हो गयी।  चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य विरुद प्राप्त किया।
         चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से पहले श्री गुप्त , घटोतकच, चन्द्रगुप्त पर्थ व समुद्रगुप्त चार नरेश हो चुके थे।
            श्रीगुप्त व घटोतकच
 गुप्त वंश का मूल पुरुष गुप्त व घटोतकच का शासन क्षेत्र मगध प्रदेश के अंतर्गत सीमित था। घटोतकच पुत्र चन्द्रगुप्त का विवाह लिच्छविवंशी राजमुमारी कुमारदेवी के साथ हुआ।  इतिहासकारों के अनुसार लिच्छवि वश संबंध जुड़ने से चन्द्रगुप्त का शासित क्षेत्र , प्रसिद्धि , वैभव में वृद्धि हुयी।
         चन्द्रगुप्त प्रथम
 घटोत्क्च पुत्र चन्द्रगुप्त ने महाराजधिराज विरुद धारण किया।  319 -320  से शुरू होने वाले गुप्त संवत का प्रवर्त्तक भी चन्द्रगुप्त प्रथम को ही माना जाता है।
राजधानी -पाटलिपुत्र मानी जाती है।
शासित क्षेत्र - चन्द्रगुप्त प्रथम के अंतर्गत तिरूहित , दक्षिण बिहार , अवध व प्रयाग क्षेत्र माने जाते हैं। वायु पुराण   99 /391  व् ब्रह्माण्ड पुराण 3 /74 /195 अनुसार गुप्त शासन साकेत , मगध व गंगा घाटी में था ।  समुद्रगुप्त के प्रशस्ति अभिलेख व पुराणों के विवेचन से लगता है कि पुराणों में चन्द्रगुप्त प्रथम का शासित क्षेत्र का उल्लेख हुआ है।




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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


Bhishma Kukreti

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        समुद्रगुप्त शासन में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर
Ancient  Samudra Gupta Gupta Era History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part
                   
Ancient   History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Par -206
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 206               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

   चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने  जीवनकाल में ही समुद्रगुप्त  (340 -380  ) को योग्यता बल पर राज्य सौंप दिया था। समुद्रगुप्त को मघद व पूर्वी उत्तर प्रदेश का भूभाग मिला था।  समुद्रगुप्त ने मध्य देश जीतकर फिर कामरूप , नेपाल , कर्तृपुर जीता व  अपना साम्राज्य यमुना पूर्व तट तक विस्तार किया।  यमुना पश्चिम में कई गणराज्य थे। कई गणराज्यों पर अधिपत्य जमकर समुद्रगुप्त ने दक्षिण की ओर विश्तार किया।  समुद्रगुप्त कलिंग तक पंहुच गया था।
 मध्य देश जीतना व यमुना पूर्व तट तक पंहुचने का अर्थ है कि बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर समुद्रगुप्त के आधीन आ गए थे।
                      समुद्रगुप्त का व्यक्तित्व

  समुद्रगुप्त महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व का स्वामी था जिसके शरीर पर पर युद्ध में दसियों घाव लगे थे। याने समुद्रगुप्त लीडिंग फ्रॉम  फ्रंट में विश्वास करता था. युद्ध अभिलाषी होने के बाद भी सामाजिक हितों का रक्षक था। समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था व कवियों का आदर करता था।  उसके एक मुद्रा में उसे वीणा बजाते दिखाया गया है।  उसकी प्रसस्ति पत्र का कवि महादंडनायक हरिषेण था।
     दिग्विजय के पश्चात उसने अश्वमेध यज्ञ सम्पन किया जिसमे विजिट राजाओं ने भाग लिया।  अश्वमेध यज्ञ अवसर पर समुद्रगुप्त ने स्वर्ण मुद्राएं प्रचारित की थीं जिनके अग्र भाग में 'राजाधिराज पृथ्वीम वित्वा दिविजयत्याहृत ' व पश्च भाग में 'अश्वमेध पराक्रम: अंकित है।
           समुद्रगुप्त के प्रशस्ति पत्र व मुद्राओं से पता चलता है कि वः सुखी परिवार का स्वामी था व उसके योग्य पुत्र व योग्य पौत्र थे व सुयोग्य पुतर्वधहुएँ थी।
       





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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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     रामगुप्त और हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर का इतिहास
 Gupta Era History of Haridwar , bijnor, Saharanpr
        Ancient   History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  207
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


       
  समुद्रगुप्त के बाद उसके जेष्ठ पुत्र शर्मगुप्त या राम गुप्त को सिंहसन मिला।  रममगुप्त ने साम्राज्य वृद्धि हेतु प्रत्यंत प्रदेशों को मिलाने हेतु योजना बनाई। एक नाटक देवी चन्द्रगुप्त अनुसार रामगुप्त ने कर्तृपुर पर आक्रमण किया किन्तु किसी घात पर संकट में फंस गया।  कर्तृपुर नरेश को अपनी पत्नी देकर रामगुप्त को संधि करनी पड़ी।  रामगुप्त के भाई चन्द्रगुप्त ने खशाधिपति को खड्ग से मारा।  नाटक अनुसार चन्द्रगुप्त द्वितीय ने रामगुप्त की हत्त्या की व सिंहासन पर बैठा।





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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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 चन्द्रगुप्त II विक्रमादित्य शासन में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर -खंड -1

        Chandragupta Vikramaditya and Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   208             



                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 

  रामगुप्त के बारे में विशाखदत्त कृत देवचन्द्रगुप्त नाटक व दुर्जनपुर (विदिशा , मध्य पदेश ) अभिलेख से कुछ विवरण मिलता है।  इसके अतिरिक्त वहीं रामगुप्त की मुद्राएं भी मिली है. रामगुप्त ने महराजधिराज विरुद धारण किया था
  चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (380 -415 CE )
 चन्द्रगुप्त रामगुप्त का लघु भ्राता था।  चन्द्रगुप्त ने विक्रमादित्य विरुद धारण किया था।  इलाहाबाद अभिलेख अनुसार चन्द्रगुप्त की एक पत्नी कुबेरनामा दक्षिण के किसी नाग नरेश की राजकुमारी थी।  इस रानी की पुत्री का विवाह प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से हुआ था।  व नाटक अनुसार दूसरी पत्नी ध्रुवस्वामिनी थी जिसके कुमारगुप्त व गोविन्दगुप्त थे।
        शक विजय यात्रा
 यद्यपि  वासुदेव मृत्यु के पश्चात कुषाण वंश की समाप्ति हो चुकी थी किन्तु सौराष्ट्र गुजरात व मालव पर शक नरेशों का अधिपत्य तब भी था।  चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इन  अधिपतियों का उत्पाटन किया व सौराष्ट्र व मालव को होने शासन में मिला लिया।  पश्चिम भारत जीतने के बाद चन्द्रगुप्त ने 'शकारि ' विरुद धारण किया
     उज्जयनी राजधानी
पश्चिम भारत पर सबल प्रभुत्व रखने हेतु चन्द्रगुप्त ने अपनी राजधानी उज्जयनी को बना लिया था। उज्जयनी का उल्लेख चन्द्रगुप्त अथवा कुमारगुप्त कालीन भाण 'पादतडितम ' में भी मिलता है।

        सप्त सिंधु विजय
  दिल्ली के कुतुबमीनार निकट लौह स्तम्भ से ंदाज लगता है पश्चिम भारत अधिपत्य के बाद चन्द्रगुप्त ने सिंधु के सातों मुखों को पार कर वाह्विकों को परास्त किया।
        दिल्ली का लौह स्तम्भ
ऐसा अनुमान है कि दिल्ली का लौह स्तम्भ चन्द्रगुप्त ने बनवाया था और निर्माण कार्य हेतु गढ़वाल के शिल्पकारों ने किया था (वासुदेव उपाध्याय , गुप्त साम्राज्य का इतिहास प्रथम भाग पृष्ठ -85 )


  (चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य -शेष अगले भाग में )




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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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   चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा विद्वानों को आश्रय

        Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 209               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की सभा में विद्वानों का सम्मान किया जाता था और चन्द्रगुप्त विद्वानों को आश्रय देता था।  चन्द्रगुप्त की सभा का एक रत्न कालिदास भी था।
       विद्वान् अनुमान लगाते हैं कि रघुवंश में रघु का युद्ध यात्रा समुद्रगुप्त के दिग्विजय पर आधारित है। विक्रमोर्वशी नाटक में कहीं न कहीं कुछ घटनाएं कालिदास ने गुप्त काल से ली हैं।
         कहा जाता है कि कुमार सम्भव की रचना कुमार गुप्त के जन्मोत्सव पर की थी। 
 चीनी यात्री फाय हान  चन्द्रगुप्त विक्रमाद्त्य काल में भारत आया था व उसने उस काल के बौद्ध धर्म पर प्रकाश डाला है।




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  कुमारगुप्त साम्राज्य में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर
        Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  210               


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          चन्द्रगुप्त विक्रममादित्य के बाद उसका जेष्ठ पुत्र कुमारगुप्त गद्दी पर बैठा। कुमारगुप्त ने 42 वर्षों तक राज्य किया किन्तु कोई क्षेत्र विजिट न किया।  कुमारगुप्त के शासन में शांति व समृद्धि थी।  मंदसौर अभिलेख से पता चलता है कि कुमारगुप्त का साम्राज्य कैलास -सुमेरु तक था याने उत्तराखंड , हिरद्वार , बिजनौर व सहारनपुर कुमारगुप्त काल में गुप्त साम्राज्य अंतर्गत थे।
    विदिशा अभिलेख में कुमारगुप्त युग की कई सूचनाएं मिलती हैं
 कुमारगुप्त योग्य , वीर , बुद्धिमान व विद्वानों का सत्कार करने वाला शाशक था। कुमारगुप्त प्रजावत्सल शासक था।
  कुमारगुप्त के शासन काल में कला व शिल्प का आदर था। कौशल हेतु शिक्षा व प्रशिक्षण केंद्र थे।
        कुमारगुप्त ने यद्यपि राज्य विस्तार नहीं किया किन्तु एक स्वर्ण मुद्रा से पट चलता है कि कुमारगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया था। भीतरी स्तम्भ लेख में कुमार गुप्त की प्रशंसा है।
      पुष्यमित्रों का आक्रमण
 कुमारगुप्त के शासन के अंतिम दिनों में पुष्यवंशी शत्रुओं के सामंतों ने दक्षिण में आक्रमण किया।  राजकुमार स्कंदगुप्त ने बड़ी कठिनाई से  किया।  पुष्यमित्र सामंत नर्मदा के दक्षिण में बसे थे। पुष्यमित्र सामंत समृद्ध व युद्ध शास्त्र युक्त थे।
 




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     स्कंदगुप्त शासन काल में हरिद्वार, बिजनौर सहरानपुर 

Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
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                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         कुमार गुप्त की मृत्यु उपरान्त कुमार गुप्त सिंहांसन पर बैठा। कुमारगुप्त की माता राजमहिषी होने पर विद्वानों में मतैक्य है। अनुमान है कि स्कंदगुप्त की कोई संतान न थी और स्कंदगुप्त की मृत्यु बाद उसका भाई पुरुगुप्त गद्दीसीन हुआ।
    स्कंदगुप्त द्वारा साम्राज्य रक्षा
 गाजीपुर जिले के लोह स्तम्भ अभिलेख से स्कंदगुप्त संबंधी इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। 19 पंक्ति के अभिलेख में स्कंदगुप्त के पुरखों की सूची व स्तम्भ अभिलेख से पता चलता है कि जब पुष्यमित्रों ने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण किया तो स्कंदगुप्त मोर्चे पर गया।  स्कंदगुप्त ने कई कष्ट झेलकर पुष्यमित्रों को रोका।  वह कई रात बैरंग धरती पर भी सोया। इस अभिलेख में हूण आक्रमण का भी उल्लेख मिलता है।





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --212

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


Bhishma Kukreti

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        हूण आक्रमण और हरिद्वार, बिजनौर सहारनपुर का इतिहास
       स्कंदगुप्त -हूण आक्रमण व युद्ध भूमि

Huna Invasion of  India and Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

  समुद्रगुप्त मृत्यु पश्चात गुप्त साम्राज्य की पकड़ कुछ भागों में कमजोर हो गयी थी।  आक्रमण वास्तव में रक्षा वृद्धि भी लाता है।  चूँकि आक्रमण कम हुए तो रक्षा व्यवस्था भी क्षीण पड़ती गयी।  कुमारगुप्त की मृत्यु के एकदम बाद पश्चिम से हूण आक्रमण शुरू हुआ जिसे स्कंदगुप्त ने बिफल किया। इस रक्षा युद्ध के समय स्कंदगुप्त की माता अत्यंत दुखी हुयी थी ( भीतरी अभिलेख का पाठ )
स्कंदगुप्त को हूणों के साथ दूसरा युद्ध भी लड़ना पड़ा था।   दूसरे युद्ध की तिथि के बारे में इतिहासकारों मध्य मतैक्य नहीं है। स्कंदगुप्त का राज्यारोहण समय 455 ई  माना जाता है। जूनागढ़ शिलालेख से विदित होता है म्लेच्छों (हूण ) को परास्त करने के बाद इस क्षेत्र का प्रशासनिक भार पर्णदत्त को सौंपा था।   
     अभिलेखों से ज्ञात होता है कि हूणो के साथ भयंकर युद्ध हुआ था और हूण दस्यु समान आक्रमक व निर्दयी थे।  हूण अति बर्बर थे वे खड्ग लेकर जहां जहां जाते थे अग्निमशालों से बस्तियां जलाकर , मारकाट कर हाहाकार मचा देते थे।  गाँव उजाड़ कर देते थे।  उनके अत्याचारों की कथा सारे उत्तर भारत में भय पैदा कर रही थी। हूणों के आते ही लोग अपनी धन सम्पति गाड़ देते थे और सुरक्षित  शरण लेते थे।

और स्कंदगुप्त ने हूणो को  परास्त कर  भारत हेतु कई सदियों तक शान्ति स्थापित कर ली थी।  स्कंदगुप्त के वीरतापूर्ण कार्यों की जन जन में प्रस्तुति गाये जाने लगी थी (भीतरी अभिलेख )
       
      स्कंदगुप्त -हूण युद्ध भूमि

 स्कंदगुप्त -हूण युद्ध भूमि पर विद्वानों में मतैक्य नहीं है कुमार गुप्त के राज्य में पश्चिम में चिनाव झेलम नदी घाटी गुप्त साम्राज्य के अंतर्गत थी।  स्कंदगुप्त काल में भी यही सीमा थी। बयाना में गुप्त सम्राटों की मुद्रा निधि मिलने   से इतिहासकार जैसे उपेंद्र ठाकुर अनुमान लगाते हैं कि स्कंदगुप्त -हूण युद्ध पश्चिम के किसी मैदान व नदी तट पर हुआ होगा जैसे सतलज तट पर।  बयाना मुद्रा विशेषज्ञ अल्तेकर अनुसार स्कंदगुप्त -हूण युद्ध यमुना तट पर हुआ होगा।
         भीतरी स्तम्भलेख अनुसार अक्न्द्गुप्त हूण युद्ध भूमि में गंगा जी की आवाज आ रही थी।  श्रोत्रेषु गंगा ध्वनि से पता चलता है कि युद्ध भूमि के पास गंगा घोर घोस करती है।  ऐसा घोष मैदानी भाग में नहीं हो सकता है।  ऐसा घोस ऋषिकेश हरिद्वार के पास ही होता है मैदानों में गंगा को आँखे देखे बगैर पता नहीं लगता कि आस पास गंगा बह रही है। ऐसा अनुमान लगता है कि हूण पंचनद जीतकर उत्तर पश्चिम भाग रौंदकर , कांगड़ा व अन्य पहाड़ियां जीतते  हुए हरिद्वार -ऋषिकेश पंहुचे थे और यहां कहीं स्कंदगुप्त -हूण युद्ध हुआ था।
    रघुवंश अनुसार रघु कम्बोजों को जीतकर गंगा घाटी में पंहुचा था (रघुवंश 4 /73 )

 
       
       





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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Huna or Hephthalities Attack Haridwar, bijnor, Saharanpur

Bhishma Kukreti

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      हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर परपेक्ष्य में स्कंदगुप्त का व्यक्तित्व

Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   213             


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


          स्कंदगुप्त अपने काल का वीर , साहसी व रणनीतिकार शासक था। अपने यौवनकाल में ही शक्तिशाली पुष्यमित्रों के आक्रमण को विफल कर समुद्रगुप्त ने सेना रणनीति व वीरता का आभास करा लिया था।  स्कंदगुप्त की वीरता व साहस के किस्से हूण देस में भी प्रसिद्ध हो चुके थे।
  विनय , विनम्र , उज्जवल चरित्र का स्कंदगुप्त ऊँचे चरित्रवानों का सम्मान करता था  . जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता है कि उसके राज्य में दरिद्र व दुष्चरित्र लोग मिलना कठिन था  . ईश्वर भक्त , प्रजा वत्तस्ल , बुद्धिमान व रव हितैषी स्कंदगुप्त अपने पिता व माता का बड़ा सम्मान करता था  .   
    सुरक्ष के प्रति संवेदनशील स्कंदगुप्त ने क्षेत्रीय अधिपतियों को मित्युक्त किया व कृषि विकास में ध्यान दिया। सिंचाई हेतु कई कार्य किये (जूनागढ़ अभिलेख)





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  -- 214

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -214


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Bhishma Kukreti

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        पुरुगुप्त और उत्तराधिकारी काल में हरिद्वार  ,  बिजनौर  और  सहारनपुर   इतिहास
Ancient  Purugupta of Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -214                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

  स्कंदगुप्त के पश्चात पुरुगुप्त वृद्धावस्था में शासन पर बैठा ततपश्चात पुत्र नृसिंह गुप्त व पौत्र कुमारगुप्त शासन पर बैठे. इन सबने लगभग सात आठ वर्ष ही शासन किया।  पुरुगुप्त से कुमारगुप्त काल में गुप्त राज्य का तीब्रतापूर्बक ह्रास हुआ।
 कमजोर शासन में गुप्त परिवार के कई क्षेत्रीय शासक क्षेत्र पर पृथक शासन चलाने लगे।  कई क्षेत्रीय शासकों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर डाला।  स्कंदगुप्त की मृत्यु पश्चात कुछ आश्रित शासकों ने हेफ्ताल नरेश तोरण मल की अधीनता स्वीकार कर ली।
    गुप्त वंश का अंतिम नरेश बुद्धगुप्त ने किसी न किसी प्रकार मगध , मध्यदेश व मालवा पर अधिपत्य जमाने का प्रयत्न  किया।
          सौराष्ट्र , पंचनद व मध्यदेश में संभवतया पुरुगुप्त काल में गुप्त साम्राज्य का अधिपत्य नाममात्र हेतु रह गया था।  बुधगुप्त का साम्राज्य बंगाल व ऐरण मध्यप्रदेश तक सीमित रह गया था। बुधगुप्त की कमजोरी से पुष्यभूति वमुखर वंशजों हेतु मार्ग प्रशस्त हो गया (वासुदेव उपाध्याय , गुप्त साम्राज्य का इतिहास ).
       





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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