कालू महरा
कालू महरा को उत्तरांचल के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी होने का गौरव प्राप्त है। कालू महरा ने सन् १८५७ में अंग्रेजों के खिलाफ सैन्य संगठन बनाकर विद्रोह किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाया था। उत्तरांचल में विक्टर मोहन जोशी, गोविन्द बल्लभ पंत, हरगोविन्द पंत, कुमाऊॅ केसरी बद्रीदत्त पाण्डेय, अमर शहीद श्री देवसुमन, इद्र सिंह नायक, वीर चन्द्र सिंह गढवाली, बैरिस्टर मुकुन्दीलाल, गढ केसरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा, शान्तिला त्रिवेदी, हर्षदेव ओली, ज्योतिराम काण्डपाल, भागीरथ पाण्डे, सरला बहन, मास्टर रामस्वरुप, राम सिंह धौनी, विचारानन्द सरस्वती, महावीर त्यागी, वीर खडक बहादुर, नरदेव शास्त्री, मोहन लाल शाह, शंकर दत्त डोभाल, वीरेन्द्र सकलानी, खुशीराम, दादा दौलत राम आदि स्वतंत्रता संग्राम के अग्रिम पंक्ति के नेता थे। सन् १८५७ के विद्रोह के बाद यहां अंग्रेजों के प्रति विद्रोह फैलता रहा लेकिन धार्मिक एवं सामाजिक रुढवादिता के कारण लोग एकजुट नहीं हो पा रहे थे। इसके लिए स्वाम दयानंद सरस्वती ने राष्ट्रीय चेतना उत्तरांचल से शुरु की थी। गोविन्द बल्लभ पंत और हरगोविन्द पंत ने सन् १९०३ में हैप्पी क्लब के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना फैलाने का कार्य किया। सन् १९०५ में बंगाल विभाजन के विरोध में अल्मोडा के नवयुवकों ने जगह-जगह आंदोलन किये और अंग्रेजों की दमन नीति का विरोध किया था। सन् १९१६ में कुमाऊॅ परिषद की स्थापना की गई। इस अवधि में कुमाऊॅ मण्डल के नैनीताल, अल्मोडा तथा गढवाल जिलों में सरकार की वन नीति और कुली बेगार के खिलाफ आंदोलन चल रहा था। महात्मा गॉधी सन् १९१६ में अफ्रीका से लौटने के बाद देहरादून आये और अनेकों जगहों पर जनसभायें की। सन् १९२१ में बागेश्वर में सरयू तट पर कुली बेगार प्रथा का खात्मा हो गया। कुली बेगार रजिस्टरों को नदी में फेंक दिया गया। उत्तरांचल में स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव समाज के हर वर्ग पर पडा। सन् १९०५ में कुमाऊॅ में टम्टा सुधार सभा का गठन किया गया। जिसे बाद में शिल्पकार सभा कहा गया। लाला लाजपत राय का सन् १९१३ में नैनीताल आगमन हुआ और शिल्पकार सभा ने आर्य नाम धारण किया। तब से शिल्पकार लोगों ने जनेऊ धारण करना शुरु किया। इससे पिछडे वर्ग के हौंसले बुलंद हुए और उसके बाद टिहरी रियासत के आंदोलन में भी पिछडों ने बढ-चढकर हिस्सा लिया। २३ अप्रैल १९३० को पेशावर म चन्द्र सिंह गढवाली और अन्य पहाडी फौजियों ने हिन्दुस्तानी मुस्लिम भाइयों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। ३० मई १९३० को टिहरी रियासत में स्वाई क्षेत्र में वन अधिकारों की लडाई जनता ने लडी तथा इस लडाई में करीब २०० लोग शहीद हो गए। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा गठित आजाद हिन्द फौज में उत्तरांचल से काफी लोग भर्ती हुए। सन् १९३२ तथा १९३४ के बीच वस्त्रों का बहिष्कार और ऋषिकेश में शराब विरोधी आंदोलन हुए। सन् १९३८ में श्रीनगर-गढवाल में राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें पण्डित जवाहर लाल नेहरु और विजय लक्ष्मी पण्डित आदि ने भाग लेकर आंदोलन को तेज किया। जागृत गढवाल संघ ने १९३८ में सरकार द्वारा बढाए गए लगान का विरोध किया। सन् १९४०-४१ में कुमाऊॅ कमिश्नरी में सत्याग्रह आंदोलन हुआ, जबकि देहरादून में २३ फरवरी, १९४१ को टिहरी राज्य मण्डल के तत्वावधान में श्रीदेव सुमन ने टिहरी रियासत
(Source-
http://atulayabharat.com)