"जय भारत! जय उत्तराखण्ड!!"
"लड़ के लेंगे, भिड़ के लेंगे, ले के रहेंगे, उत्तराखण्ड"
"मडुवा-झंगोरा खायेंगे, उत्तराखण्ड बनायेंगे"
"उत्तराखण्ड राज्य हमारा जन्मसिद्द अधिकार है"
"एक ही नारा, एक ही जंग, उत्तराखण्ड-उत्तराखण्ड"
"आज दो, अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो"
"उत्तराखण्ड ने अब ठानी है, गैरसैंण राजधानी है"
"नही होता फैसला जब तक, जंग हमारी जारी है"
आज के परिप्रेक्ष्य में कुछ नारे
"पानी रोको, जवानी रोको, उत्तराखण्ड की बर्बादी रोको"
"ना भाबर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंण"
"उत्तराखण्ड ने अब ठानी है, सिर्फ गैरसैंण राजधानी है"
"प्रश्न यह नही है कि जिम्मेदारी कौन ओढता है,प्रश्न यह है कि हवाओ का रुख कौन मोडता है,हम सब एक लम्बे इन्तजार मे बैठे है,और बैठे रहने से कुछ नही होता!
"ना भाबर ना सैण, राजधानी सिर्फ गैरसैण!"
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मेरे एक अभिन्न मित्र श्री राजेन सावंत द्वारा उत्तराखण्ड आन्दोलन के इतिहास को एकत्र किया गया है, जो आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है...
१९३८ से पहले गोरखो के आक्रमण व उनके द्वारा किये अत्याचरो से अन्ग्रेजी शासन द्वारा मुक्ति देने व बाद मे अन्ग्रेजो द्वारा भी किये गये शोषण से आहत हो कर उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियो मे इस क्षेत्र के लिये एक प्रथक राजनैतिक व प्रशासनिक इकाई गठित करने पर गम्भीरता से सहमति घर बना रही थी. समय-समय पर वे इसकी मांग भी प्रशासन से करते रहे.
१९३८ = ५-६ मई, को कांग्रेस के श्रीनगर गढ्वाल सम्मेलन मे क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये एक प्रथक प्रशासनिक व्यवस्था की भी मांग की गई. इस सम्मेलन मे माननीय प्रताप सिह नेगी, जवाहर लाल नेहरू व विजयलक्षमी पन्डित भी उपस्थित थे.
१९४६: हल्द्वानी सम्मेलन मे कुर्मान्चल केशरी माननीय बद्रीदत्त पान्डेय, पुर्णचन्द्र तिवारी, व गढ्वाल केशरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के लिये प्रथक प्रशासनिक इकाई गठित करने की माग की किन्तु इसे उत्तराखण्ड के निवासी एवं तात्कालिक सन्युक्त प्रान्त के मुख्यमन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अस्वीकार कर दिया.
१९५२: देश की प्रमुख राजनैतिक दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम महासचिव, पी.सी. जोशी ने भारत सरकार से प्रथक उत्तराखण्ड राज्य गठन करने का एक ग्यापन भारत सरकार को सोपा. पेशावर काण्ड के नायक व प्रसिद्द स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्र सिह गढ्वाली ने भी प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु के समक्ष प्रथक पर्वतीय राज्य की माग क एक ग्यापन दिया.
१९५५: २२ मई नई दिल्ली मे पर्वतीय जनविकास समिति की आम सभा सम्पन्न. उत्तराखण्ड क्षेत्र को प्रस्तावित हिमाचल प्रदेश में मिला कर वृहद हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग.
१९५६: पृथक हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा ठुकराने के बाबजूद गृह मन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अपने बिशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुये हिमाचल प्रदेश की मांग को सिद्धांत रूप में स्वीकार किया. किन्तु उत्तराखण्ड के बारे में कुछ नहीं किया.
१९६६: अगस्त माह में उत्तरप्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों ने प्रधानमन्त्री को ग्यापन भेज कर पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग की.
१९६७: (१० - ११ जून) : जगमोहन सिंह नेगी एवम चन्द्र भानु गुप्त की अगुवाई में रामनगर कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र के विकास के लिये पृथक प्रशासनिक आयोग का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा.
२४-२५ जून, पृथक पर्वतीय राज्य प्राप्ति के लिये आठ पर्वतीय जिलों की एक "पर्वतीय राज्य परिषद" का गठन नैनीताल में किया गया जिसमें दयाकृष्ण पान्डेय अध्यक्ष एवम ऋशिबल्लभ सुन्दरियाल, गोविन्द सिहं मेहरा आदि शामिल थे.
१४-१५ अक्टूबर: दिल्ली में उत्तराखण्ड विकास संगोष्टी का उदघाटन तत्कालीन केन्द्रीय मन्त्री अशोक मेहता द्वारा दिया गया जिसमें सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह ने क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये केन्द्र शासित प्रदेश की मांग की.
१९६८: लोकसभा में सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह के प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग ने पर्वतीय नियोजन प्रकोष्ठ खोला.
१९७०: (१२ मई) तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान प्राथमिकता से करने की घोषणा की.
१९७१: मा० मान्वेन्द्र शाह, नरेन्द्र सिंह बिष्ट, इन्द्रमणि बडोनी और लक्षमण सिंह जी ने अलग राज्य के लिये कई जगह आन्दोलन किये.
१९७२: श्री रिषिबल्लभ सुन्दरियाल एवम पूरण सिंह डंगवाल सहित २१ लोगों ने अलग राज्य की मांग को लेकर बोट क्लब पर गिरफ़्तारी दी.
१९७३: पर्वतीय राज्य परिषद का नाम उत्तराखण्ड राज्य परिषद किया गया. सांसद प्रताप सिंह बिष्ट अध्यक्ष, मोहन उप्रेती, नारायण सुंदरियाल सदस्य बने.
१९७८: चमोली से विधायक प्रताप सिंह की अगुवाई में बदरीनाथ से दिल्ली बोट क्लब तक पदयात्रा और संसद का घेराव का प्रयास. दिसम्बर में राष्ट्रपति को ग्यापन देते समय १९ महिलाओं सहित ७१ लोगों को तिहाड भेजा गया जिन्हें १२ दिसम्बर को रिहा किया गया.
१९७९: सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेत्रत्व में उत्तराखण्ड राज्य परिषद का गठन. ३१ जनवरी को भारी वर्षा एवम कडाके की ठंड के बाबजूद दिल्ली में १५ हजार से भी अधिक लोगों ने पृथक राज्य के लिये मार्च किया.
१९७९: (२४-२५ जुलाई) मंसूरी में पत्रकार द्वारिका प्रसाद उनियाल के नेत्रत्व में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन. इसी में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना. सर्व श्री नित्यानन्द भट्ट, डी.डी. पंत, जगदीश कापडी, के. एन. उनियाल, ललित किशोर पांडे, बीर सिंह ठाकुर, हुकम सिंह पंवार, इन्द्रमणि बडोनी और देवेन्द्र सनवाल ने भाग लिया. सम्मेलन में यह राय बनी कि जब तक उत्तराखण्ड के लोग राजनीतिक संगठन के रूप एकजुट नहीं हो जाते, तब तक उत्तराखण्ड राज्य नहीं बन सकता अर्थात उनका शोषण जारी रहेगा. इसकी परिणिति उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना में हुई.
१९८०: उत्तराखण्ड क्रांति दल ने घोषणा की कि उत्तराखण्ड भारतीय संघ का एक शोषण विहीन, वर्ग विहीनऔर धर्म निरपेक्ष राज्य होगा.
१९८२: प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने मई में बद्रीनाथ मे उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रतिनिधि मंडल के साथ ४५ मिनट तक बातचीत की.
१९८३: २० जून को राजधानी दिल्ली में चौधरी चरण सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उत्तराखण्ड राज्य की मांग राष्ट्र हित में नही है.
१९८४: भा.क.पा. की सहयोगी छात्र संगठन, आल इन्डिया स्टूडेंट्स फ़ैडरेशन ने सितम्बर, अक्टूबर में पर्वतीय राज्य के मांग को लेकर गढवाल क्षेत्र मे ९०० कि.मी. लम्बी साईकिल यात्रा की. २३ अप्रैल को नैनीताल में उक्रांद ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नैनीताल आगमन पर पृथक राज्य के समर्थन में प्रदर्शन किया.
१९८७: अटल बिहारी वाजपेयी, भा.ज.पा. अध्यक्ष ने, उत्तराखण्ड राज्य मांग को पृथकतावादी नाम दिया. ९ अगस्त को बोट क्लब पर अखिल भारतीय प्रवासी उक्रांद द्वारा सांकेतिक भूख हडताल और प्रधानमंत्री को ग्यापन दिया. इसी दिन आल इन्डिया मुस्लिम यूथ कांन्वेन्सन ने उत्तराखण्ड आन्दोलन को समर्थन दिया.
२३ नबम्बर को युवा नेता धीरेन्द्र प्रताप भदोला ने लोकसभा मे दर्शक दीर्घा में उत्तरखण्ड राज्य निर्माण के समर्थन में नारेबाजी की.
१९८८: २३ फ़रवरी : राज्य आन्दोलन के दूसरे चरण में उक्रांद द्वारा असहयोग आन्दोलन एवम गिरफ़्तारियां दी.
२१ जून: अल्मोडा में ’नये भारत में नया उत्तराखण्ड’ नारे के साथ ’उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी’ का गठन.
२३ अक्टूबर: जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में हिमालयन कार रैली का उत्तराखण्ड समर्थकों द्वारा विरोध. पुलिस द्वारा लाठी चार्ज.
१७ नबम्बर: पिथौरागढ़ मे नारायण आश्रम से देहारादून तक पैदल यात्रा.
१९८९: मु.मं. मुलायम सिह यादव द्वारा उत्तराखण्ड को उ.प्र. का ताज बता कर अलग राज्य बनाने से साफ़ इन्कार.
१९९०: १० अप्रैल: बोट क्लब पर उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति के तत्वाधान में भा.ज.पा. ने रैली आयोजित की.
१९९१: ११ मार्च: मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड राज्य मांग को पुन: खारिज किया.
१९९१: ३० अगस्त: कांग्रेस नेताओं ने "वृहद उत्तराखण्ड" राज्य बनाने की मांग की.
१९९१: उ.प्र. भा.ज.पा. सरकार द्वारा प्रथक राज्य संबंधी प्रस्ताव संस्तुति के साथ केन्द्र सरकार के पास भेजा. भा.ज.पा. ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी पृथक राज्य का वायदा किया.
3rd week of December, 1991:During his visit to Haldwani - Nainital, Shri N.D. Tiwari rejected the demand for a separate State in NATIONAL INTEREST
भारतीय क्ष्रमजीवी पत्रकार संघ के उत्तर प्रदेश सम्मेलन मे उत्तराखण्ड राज्य की मांग का समर्थन किया गया. National Movement for States Re-organisation Demand Committee की स्थापना के लिये आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन की समाप्ति पर २५ अप्रैल को नई दिल्ली में संसद सदस्य डा० जयन्त रैंगती ने कहा "छोटे और कमजोर समूहों को राजनैतिक सत्ता में भागीदार बनाने का काम कभी पूरा नहीं किया गया." कल्याण सिंह सरकार ने केन्द्र सरकार को याद दिलाया कि उत्तारांचल राज्य की मांग स्वीकार न किये जाने के कारण पर्वतीय क्षेत्र की जनता में असंतोष पनप रहा है और अलगाव वाद की भावना घर करती जा रही है.
मार्च १९९२: हल्द्वानी में, नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखण्ड राज्य का पुन: बिरोध किया.
27th February, UTTARAKHAND BANDH called by "Mukti Morcha"
April 30, 1993: Jantar Mantar : Rally organised by "Uttaranchal Pradesh Sangharsh Samiti"
6th May, 1993: New Delhi: ALL PARTY MEETING was held in which various senior leaders participated.
१९९३: ५ अगस्त को लोक सभा में उत्तराखण्ड राज्य के मुद्दे पर मतदान. ९८ सदस्यों ने पक्ष में व १५२ ने विपक्ष में मतदान किया.
१९९३: २३ नबम्बर: आंदोलन को नई दिशा देने के लोये दिल्ली व लखनऊ की सरकारों पर ब्यापक जन दबाव बनाने के लिये "उत्तराखण्ड जनमोर्चा" का गठन नई दिल्ली में. इसके प्रमुख आंदोलनकारी - जगदीश नेगी, देब सिंह रावत, राजपाल बिष्ट व बी. डी. थपलियाल आदि थे.
१९९४: २४ अप्रैल: दिल्ली के पूर्व निगमायुक्त बहादुर राम टम्टा के नेत्रत्व में रामलीला मैदान से संसद मार्ग थाने तक बिराट प्रदर्शन.
१९९४: २१ जून: तात्कालिक मु.मं. मुलायम सिंह की सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य गठन हेतु "रमाशंकर कौशिक" की अगुवाई में एक उपसमिति का गठन किया. इस समिति ने आठ पर्वतीय जनपदों को किला कर एक प्रथक राज्य ’उत्तराखण्ड’ बनाने के लिये ३५६ प्रष्ठों की एक एतिहासिक रिपोर्ट सरकार को सौंपी. इसमें राजधानी ’गैरसैंण’ बनाने की प्रबल संस्तुति की गई.
१७ जून, १९९४: मुलायम सरकार ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट शिक्षण संस्थानों में लागू करने की अधिसूचना जारी की जिससे उत्तराखण्ड में राजनैतिक भूचाल आ गया और उत्तराखण्ड राज्य की मांग को नया जीवन प्रदान किया.
२२ जून, १९९४: मुलायम सरकार ने उत्तराखण्ड के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव नियुक्त करने की घोषणा की.
११ जुलाई, १९९४: पौडी में उक्रांद का जोरदार प्रदर्शन - ७९१ लोगों ने गिरफ़्तारी दी.
२ अगस्त, १९९४: पौडी में, वयोवृद्द नेता मा० इन्द्रमणि बडोनी के नेतृत्व में आमरण अनशन प्रारम्भ.
७,८, एवम ९ अगस्त, १९९४ : पुलिस का लाठी चार्ज. पूरे उत्तराखण्ड में प्रखर राज्य जनांदोलन का बिगुल बजा.
१० अगस्त, १९९४: श्रीनगर में उत्तराखण्ड छात्र संघर्ष समिति का गठन.
१६ अगस्त, १९९४: उत्तराखण्ड राज्य के लिये संसद की चौखट, जंतर मंतर पर उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों का ऎतिहासिक धरना प्रारम्भ हुआ जो उत्तराखण्ड आंदोलन संचालन समिति व बाद में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के नाम से बिख्यात हुआ. दिल्ली,हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के तमाम आंदोलनकारी संगठन इससे जुड गये.