पढ़ाई लिखाई, संचार के बढ़ते कदमों, शहरों से हर परिवार के जुड़ने से हमारी भाषा को चोट पहुच रही है खैर विकास का असर तो होता है /
मुन्गर= (मुदगल) कपडे धोने वाला लकडी, खेतो मे जब भोणी लगते है तो किलो को गाड़ने के लिए
प्रयोग होता है
हल्मर्च= सिल बटे मे पिस कर बनाया जाने वाला मसाला
खाकार= ठंडे इलाके मे ओस जम जाती है और बर्फ की तरह सफेद दिखाती है/
गाड़= नदी (चौमास मे गाड़ गधेर भरी रह्ये )
भोणी= गाय और बकरी को खेतो मे बाधते है फिर अगले दिन दूसरे खेत मे (यह भादो असोज के महीने
मे ही लगते है गेहू की फसल के लिए )
दिकोंन= ओढ़ना ( अरे य नान भौ से गो यके दिकोन दिदियो)
बाधव = बादल
धुवार= रोशनदान (पिछाडी पखाम हुच हो महाराज)
सबेली= मकानों के बाहरी दीवाल पर पाथारो का छजा
दंयार= छत का आगे का किनारा (ढलान वाली छत का)
बर= रसी (चाननी बाधने के लिए मजबूत रसी लाओ, बैलो को इधर उधर लाने लेजाने के लिए रसी)
खारी= जाल (घास, गोबर ले जाने के लिए रस्सियों से बना होता है)
मसदै= दाल दलने वाली चकी, ( यह आटे वाली चकी से छोटी होती है )
khim