Author Topic: Articles & Poem by Sunita Sharma Lakhera -सुनीता शर्मा लखेरा जी के कविताये  (Read 28740 times)

Sunita Sharma Lakhera

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धर्मांध लोग
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दिलों पर वज्रपात , बंट गए आम जन !
धर्म पर हुआ उत्पात , नफरत छीने अमन !!

तलवार रक्त पिपासु , काटे केवल अंग !
हृदय प्रेम बसाइए , जोड़े सबके मन !!

सड़कें हैं लहूलुहान , हर माँ रोए अब !
मानव फसले काट , मिलता चैन कब !!

अहम् मिटाए मानवता , बढ़ाता नफरत बस !
मिटा दो भेदभाव , माँ पुकारती अब !!

रास्ट्रहित सिद्धांत, सदैव दिखे अब !
भारत की पावन धरा, महकेगी ही तब !!

Sunita Sharma Lakhera

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प्रतिज्ञा
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स्वतन्त्र देश के सत्ताधारी ,
विवेकहीन और अहंकारी ,
परतंत्र की बेड़ियाँ  भुला चुके ,
सत्ता के मद में कुत्सित व्यापारी ,
भूल गए अमर शहीदों को ,
असंख्य अनामी बलिदानियों को ,
जिनके लहू से सनी पवित्र माटी ,
भुला दिया  सभी ने  हल्दी घाटी ,
देश गौरव की प्रतिज्ञा भुला चुके ,
स्वार्थ के आगे सब बिक चुके ,
देशभक्ति का जज्बा सिमट गया ,

मात्र  दो दिवसों में संविधान के लिये ,
सब प्रतिज्ञायें क्यो याद की जाती ?
खून के आंसू रोती मासूम जनता ,
वादों की राजनीति कर ,
ऐशगाह में जो जीवन संवारे,
वतन अपना जो बेच रहे ,
उन निर्लज्ज संतानो ने ,
माँ भारती का सकून छीन लिया ,
पल पल दुश्मन घात लगाए बैठे और वे ,
देश को छिन्न भिन्‍न करने में मगन ,[/color]
स्वाधीनता को डाल फिर खतरे में ,
उठो अब सभी को जागना होगा और फिर
अमर शहीदों को दिए वादे  ना भुलाना और ,
उन पाखंडियों की वोटों की राजनीति से बचना सीखो ,
जनता को ही अब क्रांति स्वर बनना होगा ,
आयेगा फिर वह युग जरूर ,
जब जनता ही करेगी  नव युग का
स्वच्छ  ,शांती व प्रगतिशील भारत का नवनिर्माण  !

____________________[/color][/color][/size]

Sunita Sharma Lakhera

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साहित्य सृजन
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एक ग्रंथ छुपा सभी के अंतस में ,
माँ शारदे की कृपा बरसने से ,
खुलता सृजन कपाट ..
जिससे निकलते असंख्य ....
कल्पना के पंछी जो ...
शब्दों की शक्ल में ..
अंकित होते कागजों में ....
पर ये मात्र पन्ने नहीं ......
होता सृजनकर्ता का कोमल हृदय ,
जो है सवेदनाओ का अनूठा संसार ,
पर शायद वह नहीं जानता कि ..
साहित्य सृजन नहीं सरल ,
जो आज हैं उनसे होता संघर्ष निरंतर ,
अपने अस्तित्व की तलाश में ,
सहने पड़ते हैं असंख्य ...
वक़्त के थपेड़े ..
साहित्यकारों के व्यंगबाण...
बनते है जो अवरोध ,
एक चट्टान की भांति,
उस नदी पर जो ...
मनमौजी है ,सरल है ,
नहीं जानती कि..
साहित्य क़ी डगर है कठिन ,
सागर तक पहुंचने में
उसे पार करने हैं ,
छोटे से बड़े सभी ,
अडिग प्रहरियों को ,
जो समझते हैं ...
सीमा को अपनी धरोहर ,
भ्रम में जीते जो अक्सर कि..
उनसे अच्छा व सच्चा कोई नहीं है ,
नहीं समझते जो सृष्टि का नियम ...
जो कल थे वे आज नहीं हैं ,
जो आज हैं , उन्हे भी पीछे हटना होगा ...
वैसे ही जैसे ....
बागों में पड़े पीले पत्ते
और वृक्षों के नवीन हरे पत्ते ,
ही दे देते हैं उत्तम सीख !

Sunita Sharma Lakhera

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बेटियाँ
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हर आँगन की तितली होती है बेटियाँ ,
चंचल पर आँखों की पुतली होती बेटियाँ ,
ममता की छाँव तले पलती सँवरती बेटियाँ,
पिता के विस्तृत हृदय का प्रतिबिम्ब बेटियाँ !

नील गगन तक पहुँचने में सक्षम् होती है ,
घर का हर दुख संताप ये हर लेती हैं !

धीरज धर्म के साथ हर फ़र्ज़ निबाहती हैं ,
दो कुल की लाज बचाती मुस्कुराती है ,

बुढापे का दृढ़ सहारा होती हैं बेटियाँ ,
पिता का आत्मसंबल होती हैं बेटियाँ ,
मांगती बस प्यार व विश्वास बेटियाँ ,
भाईयों संग पढ़ना बढ़ना चाहती बेटियाँ !

ससुराल की मान मर्यादा को बढ़ाती है ,
जीवन का हर फ़र्ज़ खूब निबाहती हैं !

घर के बुजर्गों को हर दम सहारा देती हैं ,
अपने अरमानो को भूल, हौसला वह बढ़ाती है !

बहुओं को भी मानो अब सभी बेटियाँ ,
अपनी बेटी जैसे स्वतंत्र रहे पराई बेटियाँ ,
समाज का कल ,आज और कल हैं बेटियाँ ,
तितली सी पूरे घर आँगन की शान होती बेटियाँ !

Sunita Sharma Lakhera

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माँ
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माँ अपने आप में सम्पूर्णता लिए हुए एक ऐसा शब्द जिसका वर्णन करना भी एक परम सौभाग्य का विषय है माँ के बारे में अपने अंतर्मन से पूछें कौन है और क्या है , तो उत्तर आएगा माँ हमारे जीवन की वह अमृतधारा है जो दिव्य है ,अतुलनीय ,अकथनीय है ! जन्म से मृत्यु तक हमारे सुख दुःख की सच्ची संगिनी होती है माँ ! हर व्यक्ति के जीवन में माँ का स्थान उसके नजरिए पर निर्भर करता है ! हमारे जीवन का प्रतीक माँ गर्भ से लेकर हमारे सम्पूर्ण जीवन संचालिका होती है ! माँ की ममता वह सागर जिसकी थाह न कोई ले सका है, न ही कभी ले सकेगा ! माँ ,जीवांश से जीवन देने और जीवन देने से लेकर विभिन्न आयामों की कुशल संचालिका होती है ! माँ की ममता अतुलनीय ,अकथनीय होती है ,वह बच्चों का जीवन संबल होती है ! हर घर आँगन की अनुराग होती है माँ ! वह जीवन के हर कष्ठ झेलकर भी अपने बच्चों की ख़ुशी ढूंढ लेती है ! हम स्वय जिसका अंश हैं उसका ऋण तो चुकाना कल्पना से परे है ! ईश्वर हर स्थान पर नहीं पहुँच सकता इसलिए उसने अपने कार्य माँ को सौप दिया !
माँ की समवेदनाएं अतुलनीय होती है जिसमें उसका ध्यान योग अर्थात टेलीपथी सबसे प्रबल होती है ! मानव हो या पशु पक्षी योनि माँ की तपस्या का कोई मोल नहीं है ! माँ को अपने बच्चे के प्रति समवेदनाएं चौबीस घंटे स्पन्दित होती रहती हैं जैसे इंसान तो इंसान गाय भी मीलों दूर जंगल में भी अपना ध्यान अपने बछड़े पर लगाये रहती है ,घर पर उसके रभाने पर वह भी उससे अपनी आवाज मिलाकर घर लौट आती है ! असल में माँ की ममता को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है - मुर्गी छाप , कछुआ चाप और कुञ्ज छाप ! मुर्गी अपने अन्डो को अपने स्पर्श से जगत में लाती है , कछुआ अपनी निगाहों से अपने अण्डों को सेककर इस दुनिया में लाती है तो इन सब में सर्वोतम तपस्या कुञ्ज पक्षी का होता है जो अपने ध्यान योग से अपने बच्चो को जगत में लाती है जबकि वह स्वय अपने अंडो से कोसो दूर रहती है ! माँ के इस ध्यान में अतुलनीय शक्ति है कि उसके बच्चे संसार के किसी भी कोने में हो उसके तन मन से बस अपने बच्चों की मंगल कामना में समर्पित रहता है !अपने बच्चों के मन के हर जज्बात को सम्भाल लेने में माँ की भूमिका सर्वोपरी है !
प्रसिद्ध माताओं में अग्रणीय जीजाबाई शौर्यता का प्रतीक , अहिल्याबाई होलकर न्याय का प्रतीक और पन्ना धाई अपने राज्य सेवा धर्म में त्यागी सेविका के रूप में इतिहास में सदा याद रखी जाती है ! हमारी संस्कृति में वसुंधरा को माता कहा गया है ! हम भारतवासी अपनी जन्मभूमि को माँ मानते है जो पूरी दुनिया में एक मिशाल है ! हम सभी बड़े गर्व से स्वय को माँ भारती की सन्तान मानते है !
आज आधुनिक समाज में माँ का सम्मान कदाचित घट रहा है ! व्यक्ति के जीवन मूल्यों में विकृति दिखने लगी है ! जिस माँ की चरण वन्दना से दिन प्रारम्भ होता था आज उसका तकरीबन हर घर में तिरस्कार हो रहा है ! जिस माँ ने उसकी पैदाइश से लेकर उसके हर आह में साथ दिया आज बच्चे अपने दायित्व से मुह मोड़कर अपनी ही माँ को दो वक़्त की रोटी , प्यार के दो बोल और थोडा सा आसरा देने से कतराने लगे है ! जिस माँ ने अपने जीवन की अनगिनत रातें हमे सुख देने में काट दी थी आज उसी के बीमार होने पर हम उसके लिए एक रात जगना तो दूर ,उसके सिराहने के पास बैठने तक का समय नहीं निकाल पाते ! जिस माँ के ऋण से मुक्त होना असम्भव माना जाता था आज इसी तथाकथित समाज में उसे तिरस्कार ,वृद्धा आश्रम का रास्ता व् मानसिक आघात मिल रहा है ! व्यक्ति के जीवन की आधार माँ का बुढापा बच्चों को बोझ क्यूँ लगता है ,जब वह शैशवकाल में हमारा साथ देती है तो हम अपने कर्तव्यों से क्यूँकर मुह मोड़ना चाहते है !बच्चे तो स्वार्थान्ध होकर उसे अपने प्रत्येक कार्य की उपलब्धी का साधन मात्र मानते हैं ! परिवार की सम्बल माँ सदैव कुपोषण का शिकार होती रही है ,अल्पायु में उसे भाँती भाँती की बीमारियाँ घेर लेती हैं किन्तु तब भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आता !
ऐसा नहीं है कि माँ का नकरात्मक पहलू न दिखता हो ! आधुनिकता की मार माँ की भूमिका में नारी में दिखने लगा है ! आज नारी कुछ आवश्यकताओ की पूर्ती या फिर अपने महत्वकांक्षाओ की पूर्ती हेतू माँ की भूमिका से मुह मोड़ने लगी हैं ! बच्चों का लालन पालन क्रेच ,आंगनबाड़ी के हवाले कर अपने कर्तव्यों की इति समझ रही है ! जो समय बच्चा अपनी माँ के आँचल में गुजारता है वह समय तो आधुनिक माएँ आफिस या क्लबों को दे रही हैं जिसका नतीजा बच्चों में संस्कारहीनता स्पष्ठ दिखने लगी है ! आज जो समाज का नैतिक पतन हो रहा है उसमें कहीं न कहीं माँ की भूमिका से नारी का मुह मोड़ना दृष्टीगोचर हो रहा है ! अपने स्वार्थ और नाम ख्याति की पूर्ती की इच्छा में वह अपने बच्चो को जीविका का साधन बनाते हुए उन्हें वक्त से पहले परिपक्व बनाने वाले क्षेत्रों की ओर प्रेरित कर रही है ! माँ ही ममतान्ध में अपने ही घर परिवेश में भेदभाव के बीज बोती है ! बेटियों को बेटों के सामने कम आंकना ,आज गम्भीर विकृतियों को जन्म दे रही है ! आज के वर्तमान परिवेश में माँ का दायित्व निबाहती नारी को रुढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर समयनुसार स्वय को बदलना होगा ! समभाव से बच्चों का लालन पालन ,संस्कारों से परिपूर्ण एक स्वस्थ समाज की ओर अग्रणीय भूमिका निबाहनी होगी ! माँ आखिर माँ ही होती है ,वह कभी कुमाता नहीं हो सकती , बेटी हो या बेटा सब को दे समान दुलार ! बेटी बहू में उपजी वर्षों की खायी को पाटने का अधिकार है नारी अधीन जो कभी न कभी माँ की भूमिका में आती है !
अंत में वस्तुत: माँ जैसे आलोकिक शक्ति से स्मरण मात्र से न केवल हमारे कष्ठ हल्के हो जाते है अपितु उसके दर्शन मात्र से
प्रफुलित हो जाता है ! हमारे वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, स्मृतियां, महाकाव्य, उपनिषद आदि सब ‘माँ’ की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं।वेदों में ‘माँ’ को ‘अंबा’, ‘अम्बिका’, ‘दुर्गा’, ‘देवी’, ‘सरस्वती’, ‘शक्ति’, ‘ज्योति’, ‘पृथ्वी’ आदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावा ‘माँ’ को ‘माता’, ‘मात’, ‘मातृ’, ‘अम्मा’, ‘अम्मी’, ‘जननी’, ‘जन्मदात्री’, ‘जीवनदायिनी’, ‘जनयत्री’, ‘धात्री’! श्रीमदभागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि ‘माताओं की सेवा से मिला आशिष, सात जन्मों के कष्टों व पापांे को भी दूर करता है और उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा का कवच का काम करती है।’ इसके साथ ही श्रीमदभागवत में कहा गया है कि ‘माँ’ बच्चे की प्रथम गुरू होती है।‘ आप सभी को सादर शुभकामनाएं कि हर घर में होगा माँ का सम्मान , भारत माँ का अडिग रहेगा मान सम्मान !


Sunita Sharma Lakhera

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चकबंदी
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हरियाली है अमृत , जीने के लिए ,
फैलाओ अब इसे ,खुशहाली के लिए !

पहाड़ हो रहे सूखे , खाली खेत सभी ,
जनजीवन खतरे में , सोच रहे सभी ,
पेड़ों बिना धरा सूनी , सो हुए खाली ताल,
हरियाली है अमृत , जीने के लिए !!

पेड़ों बिना सुधार नहीं , सपने उजाड़ते रहेगी ,
सदा बादल फटते रहेंगे ,बाढ़ आती रहेगी ,
विनाश लीला रुके , सबक बना सबके लिए .
हरियाली है अमृत , जीने के लिए !!

स्वपनो की हो क्यारी ,सुंदर हो सबके घर ,
चकबंदी की हो तैयारी , पहुंचे संदेश घर -घर ,
हिमालय हो सुरक्षित , यही जरूरी सबके लिए
हरियाली है अमृत , जीने के लिए !!
_______________________________सुनीता शर्मा
सभी आदरणीय सदस्यों को सादर नमस्कार !

Sunita Sharma Lakhera

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द्याखो उत्तराखंड राज भाषा कु सवाल च
हेर रोज यें विषै पन हूँद बवाल च
मनखी बंटी छ्न अपरि अपरि पार्टी मा
जैब्र तक एक नी व्हाल स्वाणु ख्याल च
__________________सुनीता शर्मा

Sunita Sharma Lakhera

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राजनैताओं पण गीत ल्याखान गाण सौंग च
अपर नाम उँक पैथर चमकाण सौंग च
मनखी आज यी दुकानदारी मा अगणे छ्न ..
यन लिखवारुं से हमर संस्कृति डूबण सौंग च !
_____________सुनीता शर्मा

Sunita Sharma Lakhera

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चुनाव
___________
चुनावी प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ,
हर आँगन से एक उम्मीदवार है ,
जीवन की सच्ची राह चुनने में ,
आज अनिश्चिताओं का दौर है !

पार्टियों की नित नयी चतुराई में ,
हमेशा जनता ने मात खाई है ,
देश का सच्चा नायक चुनने में ,
आज फिर असमंजस का दौर है !

जाति साम्प्रदाय की बेड़ियों में ,
आज भी जन जीवन जकड़ा है ,
अपना अपना स्वार्थ भुनाने में ,
आज भी षड्यंत्रों का दौर है !

फिर चुनावी हलचलों के शोर में ,
आम आदमी बना आज खास है ,
बढ़ते प्रलोभनो की मृगतृष्णा में ,
चारों तरफ प्रश्नो का दौर है !

Sunita Sharma Lakhera

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ये चित्र पहचानो नहीं कोई ख्याली है
सदियों से इसने की हमारी रखवाली है
हिमालय से ही बँधा अपना ये जीवन
इसकी छटा भी देखो कितनी निराली है
ऊँची नीची सुन्दर है पर्वत श्रेणियाँ अनेक
घाटियों में फैली होती जिसके हरियाली है
झरनो जलप्रपातों से दृश्य कितना मनोरम
मैदानो को मिलती हरदम जिससे खुशहाली है
सर्प सी इठलाती बलखाती सड़के पगडंडियाँ
जीवनदायिनी हवा यहाँ शुद्ध व मतवाली है
धरती माँ का उपकार रहेगा हम सब पर
जिसने किस्म किस्म की वनस्पतियाँ पाली हैं
मद मानव रहा है सदियों से स्वार्थी यहाँ
प्रकृति पर जिसके हस्तक्षेप से बदहाली है

 

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