केदारनाथ आपदा
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समय कहाँ कब .....
किसी के लिए ठहरता है ,
थम जाती हैं ....
यहाँ केवल सांसे ,
प्राकृतिक हो ....
या अप्राकृतिक ,
रूह का देह को ..
त्यागने की परंपरा ,
फिर ब्रह्मलीन हो जा जाना ,
जहां शायद वेदनाओं की ,
पाषाण धरती न हो ,
केदार घाटी की भांति जो ,
पत्थरों का शहर बन गया ,
प्यासी रूहें भटक रही है ,
अपनों की तलाश में ,
जीवन की आस में ,
जैसे हर पत्थर के नीचे ..
लिख दी गई हो ...
दम तोड़ती तड़पती ....
अनगिनत मार्मिक दास्तान ,
जिनका इतिहास भूगोल ,
जानने के लिए फिर ...
असंख्य बेरोजगारों को ...
रोजगार मिल ही जायेगा ,
क्योंकि आपदा का असर ,
लोगों के जेहन में ,
साल छह माह ही रहता है ,
फिर समय चक्र में सबको सब ,
भुलाने की विवशता ही तो है ,
पुराने दर्द पर मरहम बोझ लगने लगता है ,
हर पल नवीन हादसों का इंतज़ार करती ,
मानवता वक़्त के साथ ढलती जाती हैं ,
वेदनाओं के नए सफर के लिए ।
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सादर श्रद्धा सुमन अर्पित ।