कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 21
ये ईजा
कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन
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बगदि हि गैई बगदि हि गैई उमरी की रेल
सम्लोंणाया रैगे बस गैल
कैल नि लगे सकिंन
दियू बाती जनि बल्दी ही रैई
हम आंधरा रैगे बस छैल
कैल नि लगे सकिंन
बोल्दा रंयां सब बचादा…२ चली गयां
चुप रैगे हम आपरी ही दैर
कैल नि लगे सकिंन
कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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