Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253087 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 5
ये दीदा क्ख्क छे तू

ऐ पाडे मा
ये उकाले मा
ये दीदा क्ख्क छे तू
ये गढ़वाले मा
म्यारा गौं घारे मा
ये चढ़ते उकाले मा

खोजी खोजी
क्ख्क ना मिली
बौ बौजी यकुली दीकी
छनी गोठ्यारे मा
चौका पंतदेर छाले मा
ये दीदा क्ख्क छे तू
ये गढ़वाले मा

यक देकि वक देकि
दीदा मिल ते थे देक
क्ख्क क्ख्क देकि
हर्ची गे तू बिरडी गै
ये उंदरु का बाट जब तू चलगे
ये दीदा क्ख्क छे तू
ये गढ़वाले मा

ऐ पाडे मा
ये उकाले मा
ये दीदा क्ख्क छे तू
ये गढ़वाले मा
म्यारा गौं घारे मा
ये चढ़ते उकाले मा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 7
देक तेरा बाना

देक तेरा बाना
मी छोड़दुल सब
अब त छूची मानले
मेर छुईं अब

नि पीलू शराब
नि खेळलु तास
कैर मेरु बिस्वास
थम ले मेरु हात

रैललू ते दगडी
कबि नि कटलु तेरु बात
अच अबी से मिल
कैदेई ये बात की शुरवात

तू छे मेरी भगवती
तू मेरु सौंसार
ते छोड़िक की मिल
मिल जानू कै घार …… ३

एक उत्तराखंडी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 5
लाटा बोई बाटू हेरनी ऐजा

देख्णु बी नी कया कनु वहलु
लाटू मेरु दुधा को
केले रोसो वहलू किले नी आन वहलु
परती को ऐ पहाड़ को

देख्णु छों मी बाटू तेरु ऐ
तू ऐजा ऐ घार दौड़ी की
कब जान अब
ऐजालु व्ख जना कु संदेशो

देक देर नि कैर छुचा अबैर नि कैर
बची छी दोई सांसी
देक विं का छुटन से पैली
देके दे तेर मुखडी स्वानी सी

देख्णु बी नी कया कनु वहलु
लाटू मेरु दुधा को
केले रोसो वहलू किले नी आन वहलु
परती को ऐ पहाड़ को

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मी अज्ञान की तू अज्ञान

कैल नी जाणि
कैल नि समझे
कैल ये थे ना उकरी
ना ही गणे ना चिते सके
कैल नी जाणि
कैल नि समझे

ये पाड़ा की बोगादि पाणि
ये पाड़ा की भगदि जवानी

ना पढ़ी मि
ना आखर ज्ञान
मेरु सब यख
मिल क्ख्क जाणा

ये परम पिता ये मेरु पाड़ा
म्यारा पितृ तू ही मेरु भगवान

कन अजाणा
क्ख्क तेरु पछाणा
टक्कों दगडी बसी
बल तेरु सारू ध्यान

मी अज्ञान की तू अज्ञान
सोचले रे बंधू धेरी की ध्यान

कैल नी जाणि
कैल नि समझे
कैल ये थे ना उकरी
ना ही गणे ना चिते सके
कैल नी जाणि
कैल नि समझे

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी

अल्मोड़ा बजार

अल्मोड़ा बजार
की वा मदिरा वाली गली
सुबेर ब्योखोन रात
टुंडा पड्या छन यख झांजी

कन रीत जुडी यख
ठेकों दगडी कन पिरित लगि
कच्ची पक्की की खोज मा
अपरुँ की सुध बुध हर्ची

कु व्हालु इनि पड़यूँ
कया सुप्निया वहाला ऐक टुटियुं
कन बेसुध निरजक सियुं
किले ये अवतार धरियूं

सब चुप छन
निर्भगी हमुन क्या कन
खुद अपरी मवशी खातेनु
हमुल कया बोण

अल्मोड़ा बजार
की वा मदिरा वाली गली
सुबेर ब्योखोन रात
टुंडा पड्या छन यख झांजी

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चल दोइयाँ लौटी जूंला

दोई चंपत खिंची की ग्लोडी लगौदे रे दीदा
घोर जाना कु रस्तौ मीथै बथौदे रे दीदा

कन मत मौरी मेरी कन छोड़ी ऊं मि
ये उंदरु का बाटों मा कन दौड़ी ऊं मि....२

मेरु कान मरोड़ी दे रे दीदा घोर बौडी देदे
गढ़वाल जाणा कु रस्तौ मीथै बथौदे रे दीदा

यूँ नि ऊ स्थान जख मी जन्मी छों मी
कैल करण वख उधार जख कु ऋणी छों मी

ऐगै ईं दोई अन्ख्युं मा आंसूं पूछ दे रे दीदा
अपरी जलमभूमि मा चल दोइयाँ लौटी जूंला

दोई चंपत खिंची की ग्लोडी लगौदे रे दीदा
घोर जाना कु रस्तौ मीथै बथौदे रे दीदा

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देख्णु कया

देख्णु कया च
कया मीथै देके ग्याई
ऐ मेरी गीची
तू किले गप राई

अंडू अंडू बोल्यूं मि
मि किले फुंड ग्याई
ग्यानी ध्यानी मेरी
सब निखण व्हाई

कन बांजा पौड़ी
अक्लि सक्ली मा मेरी
ज़माना कु खुटु दगडी
किले मिल सिक्सरी काई

हरच्यूं छों यख
मि पुरता बिरडी ग्युं
कै बाटा ऐना घार
मि दीदों भूली गयुं

नि रैगै सैर
ये अब मेरा बाना
कै भाना ऐन मुल्क
ऐ मुख सात लुकी गयुं

देख्णु कया च
कया मीथै देके ग्याई
ऐ मेरी गीची
तू किले गप राई

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सै जा रे

सै जा रे सै जा रे सै जा रे
उठ्नु किले छे
कूच काम निच
बिना आटा दाला कु दाम निच
उत्तराखंड जनि कु धाम निच
तू सै जा रे सै जा रे सै जा रे

ना नियम च ना तेर पता
तू छे बस यख अलबत्ता
९ नवंबर २००० हजार जन्मी
१४ बरस वहगेने अब बी तू हर्ची
तू सै जा रे सै जा रे सै जा रे

राजधानी कु तेरु नौ निच
अपरा शहीदों कु बी डौर निच
कंन मची च ये घपला घप्ली
कच्ची तेर कप्ली फूटी तेर ढुंगी
तू सै जा रे सै जा रे सै जा रे

लमलेट सब नीरजक हुंया छन
पसरा पसरिक गिरिजक हुंया छन
चली तेर इनि पाड़ों नेतागिरी
सामसुम पाडा सब गौं रीता हुंया छन
तू सै जा रे सै जा रे सै जा रे

अब जगनू जगाणु क्वी
ये का माल थे खुभ दबानो क्वी
हलचल न कैर टूट जैली नींदि
पांच बरसा की जब चढ़ेगैली भेंडी
तू सै जा रे सै जा रे सै जा रे

सै जा रे सै जा रे सै जा रे
उठ्नु किले छे
कूच काम निच
बिना आटा दाला कु दाम निच
उत्तराखंड जनि कु धाम निच
तू सै जा रे सै जा रे सै जा रे

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 13
नी रेणू रे सदनी

नी रेणू रे सदनी ,कैल कैका पास रे
नि बांद रे गठरी ,झूठी यख आस की

खेल यख मण्ड्यूं च बाजी बिछी तास की
भेद मनखी उपजला जीत या हार की

स्वास मा चडी च नाड़ी या बीमार च
दवाई दारू लगीच तिमरदारी सुख्यं लखड़ु की

न देक देक भैर भीतर बी झाक तू
आंधार मा लुक्युं च बल यू भौला कु उजाळु च

कैल नि कमै पाई कैल नि जमै पाई
जीकोडी अल्जी रेगे बस माया कु मायाजालु च

नी रेणू रे सदनी ,कैल कैका पास रे
नि बांद रे गठरी ,झूठी यख आस की

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 12
जियू मेरु आच बैथि बैथि

कया सोच्न व्हालु
जियू मेरु आच बैथि बैथि
कैकू बाट हेनु व्हालु
कूच आनू व्हालु यख अपरू
कया सोच्न व्हालु

क्द्गा घाम चैई
चैत पूस मंगसिर ऐई गैई
दिन आंदा जांदा रैगे हो
जैकू बाटू हेनु ऊ ना ऐई
कया सोच्न व्हालु

धीर धैर ना इनि उकाल सैर
मेरी जीकोडी मेसै बोल
चल सड़की का बाटा बाटा
मिली जालु मीथे मेरु सैन
कया सोच्न व्हालु

रोटी सगा की पोट्गी
जियुंदगि की ई लपड़ा सपोड़ी
दोई दानी खैरी का मित्रा तेर बिना
मिल ना यख चैन से खै
कया सोच्न व्हालु

कया सोच्न व्हालु
जियू मेरु आच बैथि बैथि
कैकू बाट हेनु व्हालु
कूच आनू व्हालु यख अपरू
कया सोच्न व्हालु

एक उत्तराखंडी

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