Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253155 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जियु मेरु

जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

यख काय खोज्नु रे
अंधारों ये बाटे मा रे
उजाळु बन उडी जा रे
कुच निच यख रख्युं तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

अपने ई छाल मा मेलेली
वख ई सरी माया पसरी च
कन हिरदय त्यारू रे
निठुरु निठुरु कै बान ये
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

परखे बसे बरसाकी
मेरु दुःख मेरु पासे रे
कैल ने सम्झेरे
जियु मेरु कण घेरु तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
Yesterday
आच सुबेर

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

ध्यै लगणु तिथे
कैथे व्हालु बुलाणु
छोड़ि कि गै छे
कु ऊ खुठा पैल भैर

चल खुठा चल
चल छूछा चल

अपरा बाना
खूब सोची तिल
वैका बाण
कब सोच्ण तिल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

जन मि छोड़ी गयुं
ऊनि ईं छे कया तू
आँखि मा दाड़ी तेरी
ऊनि मुखडी छे मेंमा

चल खुठा चल
चल छूछा चल

खेल ई लुलू
ते दगडी भेंटि ई दुलू
मासाण माटी मा मेर
बालपाणा ते देक ई लुलू

चल खुठा चल
चल छूछा चल

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 27
किले

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

कित्गा निर्मल कित्गा सुंदर
पाड़ा हमारू गौं घार हमारू

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

पुंगड़ो की माया डालों की साया
हेरालु डंडों कंठों कैन यख बसाया

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

बगदी अलकनंद भागीरथी माँ नंदा
बोई गंगा की धारो कैल बग्यू

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

आम अखरुट लीची किन्गोड़ा
बुरांस फ्योंली कैल पक्याो कैल फ़ुल्यो

किले नि जाणा पाई
किले नि पछाण पाई

हरी कु द्वारा बद्री केदार को घार
उकलू छोड़ी किले मेरु मन उंदार

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

कित्गा निर्मल कित्गा सुंदर
पाड़ा हमारू गौं घार हमारू

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 26
बटयूँ छों

तुकड्युं बटयूँ छों
कै का बान अटक्यूँ छों
कैल जाणा
कैल उड़े ले जाणा
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

कबी गौं कबी दून मा
कबी लून कबी रुन मा
नि जाणा मिल ये देब्तों
कखक कख मि अटक्यूँ छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

जीकोडी कि तुकड़ मा
आंख्युं की रटन मा
बोल्यूं की गिच्न मा
अपरुँ कि रिसण मा किस्क्युँ छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

देर मा अबेर मा
बौल्या परित कि फेर मा
टक्कों की रेस मा
खाली किसों की जेब मा रच्यूं छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

तुकड्युं बटयूँ छों
कै का बान अटक्यूँ छों
कैल जाणा
कैल उड़े ले जाणा
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 25
तै सति तै बान

मीनी त तै दगडी
कुच वादा करयां छिन
ऊँ वादों थे पुरु कना कुन
अपरू घार गढ़वाल छोड़ी च

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

ना मि मतलबी छों
ना मि फरेबी छों
जै बाटो मि बड़ो हुंयां
ऊँ बाटों थे तै बान छोड्या छन

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

आणो मिल परती आन
सुप्निया मिल तेरा सात सजाणा
ये मेर सौंजडया ये मेर सति
यकुली तै बिन मिल कन कै रै पान

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

मीनी त तै दगडी
कुच वादा करयां छिन
ऊँ वादों थे पुर कैना कुन
अपरू घार गढ़वाल छोड़ी च

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 24
ओ मेरी भैना

खुद मेरी तिथे....ऐ कि नि ऐ
ओ मेरी भैना
बालापण का खेल ते थे रुले की नि रुले
ओ मेरी भैना

याद आणु मी थै
रखड़ि कु धागो तेरु
ऊ बत्ती कु उजाळु मा
कपाली हल्दू लगणु तेरु
ओ मेरी भैना

छुटपन की खोड़ी
हमलू कै छे थोडी थोडी
भूकी हमरी पोट्गी
भूक मिटे हमुन ऊ तिमला तोड़ि
ओ मेरी भैना

दोई भैइयों की
एक बगेरेली मेरी भैना
सौरास जैकी भैना
भूली गे तू दोई मैता कु गैना
ओ मेरी भैना

खुद मेरी तिथे....ऐ कि नि ऐ
ओ मेरी भैना
बालापण का खेल ते थे रुले की नि रुले
ओ मेरी भैना

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 22
ऐगे जाडो

ऐगे जाडो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी जाडो ऊँ हिंवाली चूलों
ऐगे जाडो

कन कोयेड़ी छैईंचा
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी कोयेड़ी ऊँ डंडों कंठों
ऐगे जाडो

पिरित लागो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी पिरित ऊँ शरमे ग्लोडी
ऐगे जाडो

झुमैलु लगो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी झुमैलु ऊँ मेरु गौंऊं
ऐगे जाडो

ऐगे जाडो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी जाडो ऊँ हिंवाली चूलों
ऐगे जाडो

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 26
बटयूँ छों

तुकड्युं बटयूँ छों
कै का बान अटक्यूँ छों
कैल जाणा
कैल उड़े ले जाणा
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

कबी गौं कबी दून मा
कबी लून कबी रुन मा
नि जाणा मिल ये देब्तों
कखक कख मि अटक्यूँ छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

जीकोडी कि तुकड़ मा
आंख्युं की रटन मा
बोल्यूं की गिच्न मा
अपरुँ कि रिसण मा किस्क्युँ छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

देर मा अबेर मा
बौल्या परित कि फेर मा
टक्कों की रेस मा
खाली किसों की जेब मा रच्यूं छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

तुकड्युं बटयूँ छों
कै का बान अटक्यूँ छों
कैल जाणा
कैल उड़े ले जाणा
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 27
किले

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

कित्गा निर्मल कित्गा सुंदर
पाड़ा हमारू गौं घार हमारू

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

पुंगड़ो की माया डालों की साया
हेरालु डंडों कंठों कैन यख बसाया

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

बगदी अलकनंद भागीरथी माँ नंदा
बोई गंगा की धारो कैल बग्यू

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

आम अखरुट लीची किन्गोड़ा
बुरांस फ्योंली कैल पक्याो कैल फ़ुल्यो

किले नि जाणा पाई
किले नि पछाण पाई

हरी कु द्वारा बद्री केदार को घार
उकलू छोड़ी किले मेरु मन उंदार

किले नि जाणा पाई
नि पछाण पाई

कित्गा निर्मल कित्गा सुंदर
पाड़ा हमारू गौं घार हमारू

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 28
आच सुबेर

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

ध्यै लगणु तिथे
कैथे व्हालु बुलाणु
छोड़ि कि गै छे
कु ऊ खुठा पैल भैर

चल खुठा चल
चल छूछा चल

अपरा बाना
खूब सोची तिल
वैका बाण
कब सोच्ण तिल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

जन मि छोड़ी गयुं
ऊनि ईं छे कया तू
आँखि मा दाड़ी तेरी
ऊनि मुखडी छे मेंमा

चल खुठा चल
चल छूछा चल

खेल ई लुलू
ते दगडी भेंटि ई दुलू
मासाण माटी मा मेर
बालपाणा ते देक ई लुलू

चल खुठा चल
चल छूछा चल

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

एक उत्तराखंडी

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