Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253155 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 29
जियु मेरु

जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

यख काय खोज्नु रे
अंधारों ये बाटे मा रे
उजाळु बन उडी जा रे
कुच निच यख रख्युं तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

अपने ई छाल मा मेलेली
वख ई सरी माया पसरी च
कन हिरदय त्यारू रे
निठुरु निठुरु कै बान ये
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

परखे बसे बरसाकी
मेरु दुःख मेरु पासे रे
कैल ने सम्झेरे
जियु मेरु कण घेरु तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 28
आच सुबेर

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

ध्यै लगणु तिथे
कैथे व्हालु बुलाणु
छोड़ि कि गै छे
कु ऊ खुठा पैल भैर

चल खुठा चल
चल छूछा चल

अपरा बाना
खूब सोची तिल
वैका बाण
कब सोच्ण तिल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

जन मि छोड़ी गयुं
ऊनि ईं छे कया तू
आँखि मा दाड़ी तेरी
ऊनि मुखडी छे मेंमा

चल खुठा चल
चल छूछा चल

खेल ई लुलू
ते दगडी भेंटि ई दुलू
मासाण माटी मा मेर
बालपाणा ते देक ई लुलू

चल खुठा चल
चल छूछा चल

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
बालकृष्ण डी ध्यानी with Rajeshwar Uniyal and 27 others
1 hr · Edited ·

मै ना भूलूंगा

मै ना भूलूंगा
ना तुम को भूलने दूंगा
वो रात है वो ही रात की बात
वही बात मै दोहराता रहूंगा
मै ना भूलूंगा
ना तुम को भूलने दूंगा

आयी फिर वही रात है
२ अक्टूबर १९९४ की बात है
ना मिला इंसाफ पहाड़ को
मुजफ्फरनगर कांड बरसी को
मै ना भूलूंगा
ना तुम को भूलने दूंगा

जलती रहे मशाल
इस दिल बदन के जान में
इस चिंगारी को ना बुझने दूंगा
अपना हक उन से लेके रहूंगा
मै ना भूलूंगा
ना तुम को भूलने दूंगा

आज वो काला दिन है
वो अन्धेरा अब भी मेरे प्रतिबिम्ब है
इन्साफ तराजू ना झुकने दूंगा
हे उत्तराखंड तेरे लिये लड़ता रहूंगा
मै ना भूलूंगा
ना तुम को भूलने दूंगा

वो अब भी आते सपने मेरे
वो अब भी मुझ से सवाल करते हैं
उनका वो हाल अब भी तड़पता है मुझको
खून के आँसूं वो मुझको रूला जाता है
मै ना भूलूंगा
ना तुम को भूलने दूंगा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
बिरदयू गयुं

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

छन कया नशा छै
वीं केशा कि लगुली वे रात कली घटा छे
नि छे वे रात पौड़ी जुन की जुन्याली
विं की मुखडी ही बनिगे पुन्याली
विं पुन्याली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

दंत पंक्ति की रेघा मा
विं परेली की रेशा मा
कन भाग मेरु अटगि
विं की बिन्दुली मा जै अटकी
विं बिन्दुली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

मिल बी कै दे सिकेसैरी
विंल जबै मिथे देकि
हैंसि विं ग्लौड़ी देक मेर ग्लौड़ी हैंसि
विं थे देक ना बान बाद मा मेर क्ख क्ख दौड़ी भैंसी
विं हैंसि देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी shared a link.
Yesterday
घुगुती घुरोण लगी

घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

डंडी कांठियुं को ह्यू , गौली गे होलु
म्यारा मैता को बॉन , मौली गे होलु
डंडी कांठियुं को ह्यू , गौली गे होलु
म्यारा मैता को बॉन , मौली गे होलु
चकुला घोलू छोड़ी , उड़ाना व्हाळा
चकुला घोलू छोड़ी , उड़ाना व्हाळा
बेठुला मैतुड़ा कु , पैठना व्हाळा
घुगुती घुरोण लगी
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

दंडीयुं खिलना होला , बुरॉन्सी का फूल
पठियुं हैंसणि होली , फ्योली मोल मोल
दंडीयुं खिलना होला , बुरॉन्सी का फूल
पठियुं हैंसणि होली , फ्योली मोल मोल
कुलरी फुलपाटी लेकि , देल्हियूं देल्हियूं जाल
कुलरी फुलपाटी लेकि , देल्हियूं देल्हियूं जाल
दगड्या भगयान थड्या , चौपला लागला
घुगुती घुरोण लगी हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

तिबारी मा बैठ्या व्हाळा बाबाजी उदास
बटु हेनी होली माजी , लगी होली सास
तिबारी मा बैठ्या व्हाळा बाबाजी उदास
बटु हेनी होली माजी , लगी होली सास
कब म्यारा मैती औजी , देस भेंटि आला
कब म्यारा मैती औजी , देस भेंटि आला
कब म्यारा भाई बेहनो की , राजी ख़ुशी ल्याला
घुगुती घुरोण लगी हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

गढ़वाली गीत नरेंद्र सिंग नेगी का
बस अनुवाद किया है गढ़वाली भाषा को बढ़वा देने के लिये

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी shared हिन्दी गीता कु ये च गढ़वाली बोळ संस्करण तुम थै कंण लग जी's video.
October 4 · Edited
1
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु

मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,
बसंत ऋतू मा जैई , बसंत ऋतू मा जैई
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,
बसंत ऋतू मा जैई , बसंत ऋतू मा जैई

हैरा बण मा बुरांस का फूल , जब बनाग लगाना होला
बीता पखों तें फ्योलिं का फूल , पिंगला रंग माँ रंग्यणा होला
लैयाँ पैयाँ ग्वीराळ फूलु न, लैयाँ पैयाँ ग्वीराळ फूलु न ,
होली धरती सजी देखि ऐई …
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....

रंगीला फागुन होल्येरूं की टोली , डंडी काण्ठियों रंग्यणी होली ,
कैका रंग मा रंग्युं होलु क्वीई , क्वी मणि -मन मा रंग्श्याणी होली
किरमिची केसरी रंग की बार किरमिची केसरी रंग की बार ,
प्रेम का रंगों मा भीजि ऐई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....

बिन्सिरी देलिओं मा खिल्दा फूल , राति गाऊं -गाऊं गीतेरुं का गीत ,
चैता का बोल , औजियों का ढोल, मेरा रौंतेला मुलुकेय की रीत ,
मस्त बिगरैला बैखुं का ठुमका ,मस्त बिगरैला बैखुं का ठुमका
बांदूं का लसका देखि ऐई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....

सैना दमला अर चैते बयार, घस्यारी गीतों न गुन्ज्दी दांडी
खेल्युं मा रंग -मत ग्वेर छोरा , अत्कडा गोर घामडांडी घंडी ,
उखी फुंडेय होलु खत्युं मेरु भी बचपन उखी फुंडेय होलु खत्युं मेरु भी बचपन
उकरी सक्ली ते उकरी की लैई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,बसंत ऋतू मा जैई
बसंत ऋतू मा जैई
बसंत ऋतू मा जैई


गढ़वाली गीत नरेंद्र सिंग नेगी का
बस अनुवाद किया है गढ़वाली भाषा को बढ़वा देने के लिये

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
तेर माया मा

तेर माया मा,हैंस ना पाऊं
तेर माया माँ ,रुन नि पाऊं

ये जीकोडी की तेरी दुकदुकी मा
वो तेर परेली छपकेनि मा
पिरित से मेर ते र पिरित जोडना पाऊं

ईं आँखा मा,देका ना पाऊं
ईं गिची दगडी ,बोल ना पाऊं

वो नीलू सरगा ऊ बगदी गद्नि
हैरा भैरा बग्याल ते समन देक ना पाऊं
बौल्या मी तेरु रूपा कु जुनि से चमकी नि पाऊं

ये बाँयां मा पकड़ी नि पाऊं
ते थे य हिरदय अंग्वाल नि ले पाऊं

यकुलु मेरु प्रेम याकलू चली
वे तेर बाट ते मेर बाटा मिलि नि पाऊं
बैठ्युं रुं ते थे हे राम हक़ नि दे पाऊं

तेर माया मा,हैंस ना पाऊं
तेर माया माँ ,रुन नि पाऊं

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 29
जियु मेरु

जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

यख काय खोज्नु रे
अंधारों ये बाटे मा रे
उजाळु बन उडी जा रे
कुच निच यख रख्युं तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

अपने ई छाल मा मेलेली
वख ई सरी माया पसरी च
कन हिरदय त्यारू रे
निठुरु निठुरु कै बान ये
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

परखे बसे बरसाकी
मेरु दुःख मेरु पासे रे
कैल ने सम्झेरे
जियु मेरु कण घेरु तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 28
आच सुबेर

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

ध्यै लगणु तिथे
कैथे व्हालु बुलाणु
छोड़ि कि गै छे
कु ऊ खुठा पैल भैर

चल खुठा चल
चल छूछा चल

अपरा बाना
खूब सोची तिल
वैका बाण
कब सोच्ण तिल

चल खुठा चल
चल छूछा चल

जन मि छोड़ी गयुं
ऊनि ईं छे कया तू
आँखि मा दाड़ी तेरी
ऊनि मुखडी छे मेंमा

चल खुठा चल
चल छूछा चल

खेल ई लुलू
ते दगडी भेंटि ई दुलू
मासाण माटी मा मेर
बालपाणा ते देक ई लुलू

चल खुठा चल
चल छूछा चल

आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
October 6
बिरदयू गयुं

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

छन कया नशा छै
वीं केशा कि लगुली वे रात कली घटा छे
नि छे वे रात पौड़ी जुन की जुन्याली
विं की मुखडी ही बनिगे पुन्याली
विं पुन्याली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

दंत पंक्ति की रेघा मा
विं परेली की रेशा मा
कन भाग मेरु अटगि
विं की बिन्दुली मा जै अटकी
विं बिन्दुली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

मिल बी कै दे सिकेसैरी
विंल जबै मिथे देकि
हैंसि विं ग्लौड़ी देक मेर ग्लौड़ी हैंसि
विं थे देक ना बान बाद मा मेर क्ख क्ख दौड़ी भैंसी
विं हैंसि देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22