Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253214 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
October 7
ऐ जा ऐ आंसू ऐ

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

उमली उमल सरै जालु
अपर ये दिन बी कटे जालु
ना हेर ये बाटा ये
क्वी नि आनु ये पाड़ा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

भेंटि जा ये ग्लोडी ये
लुनु खारु नि छोड़ि जा ये
बडुळि मा छे ये रेघा ये
सांकि कि तिस बुझै जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

तेरी विपदा ये तिल जाणा ये
तेरी खैरी ई तिल ही खाणा ये
ना कैर ये भीतर भैर ये
आंसूं मेर बोल्यूं माणी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
October 7
ऐ जा ऐ आंसू ऐ

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

उमली उमल सरै जालु
अपर ये दिन बी कटे जालु
ना हेर ये बाटा ये
क्वी नि आनु ये पाड़ा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

भेंटि जा ये ग्लोडी ये
लुनु खारु नि छोड़ि जा ये
बडुळि मा छे ये रेघा ये
सांकि कि तिस बुझै जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

तेरी विपदा ये तिल जाणा ये
तेरी खैरी ई तिल ही खाणा ये
ना कैर ये भीतर भैर ये
आंसूं मेर बोल्यूं माणी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
October 6
बिरदयू गयुं

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

छन कया नशा छै
वीं केशा कि लगुली वे रात कली घटा छे
नि छे वे रात पौड़ी जुन की जुन्याली
विं की मुखडी ही बनिगे पुन्याली
विं पुन्याली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

दंत पंक्ति की रेघा मा
विं परेली की रेशा मा
कन भाग मेरु अटगि
विं की बिन्दुली मा जै अटकी
विं बिन्दुली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

मिल बी कै दे सिकेसैरी
विंल जबै मिथे देकि
हैंसि विं ग्लौड़ी देक मेर ग्लौड़ी हैंसि
विं थे देक ना बान बाद मा मेर क्ख क्ख दौड़ी भैंसी
विं हैंसि देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

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October 5
घुगुती घुरोण लगी

घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

डंडी कांठियुं को ह्यू , गौली गे होलु
म्यारा मैता को बॉन , मौली गे होलु
डंडी कांठियुं को ह्यू , गौली गे होलु
म्यारा मैता को बॉन , मौली गे होलु
चकुला घोलू छोड़ी , उड़ाना व्हाळा
चकुला घोलू छोड़ी , उड़ाना व्हाळा
बेठुला मैतुड़ा कु , पैठना व्हाळा
घुगुती घुरोण लगी
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

दंडीयुं खिलना होला , बुरॉन्सी का फूल
पठियुं हैंसणि होली , फ्योली मोल मोल
दंडीयुं खिलना होला , बुरॉन्सी का फूल
पठियुं हैंसणि होली , फ्योली मोल मोल
कुलरी फुलपाटी लेकि , देल्हियूं देल्हियूं जाल
कुलरी फुलपाटी लेकि , देल्हियूं देल्हियूं जाल
दगड्या भगयान थड्या , चौपला लागला
घुगुती घुरोण लगी हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

तिबारी मा बैठ्या व्हाळा बाबाजी उदास
बटु हेनी होली माजी , लगी होली सास
तिबारी मा बैठ्या व्हाळा बाबाजी उदास
बटु हेनी होली माजी , लगी होली सास
कब म्यारा मैती औजी , देस भेंटि आला
कब म्यारा मैती औजी , देस भेंटि आला
कब म्यारा भाई बेहनो की , राजी ख़ुशी ल्याला
घुगुती घुरोण लगी हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैत की
बॉडी बॉडी आये गै ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की

गढ़वाली गीत नरेंद्र सिंग नेगी का
बस अनुवाद किया है गढ़वाली भाषा को बढ़वा देने के लिये

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
October 1
तेर माया मा

तेर माया मा,हैंस ना पाऊं
तेर माया माँ ,रुन नि पाऊं

ये जीकोडी की तेरी दुकदुकी मा
वो तेर परेली छपकेनि मा
पिरित से मेर ते र पिरित जोडना पाऊं

ईं आँखा मा,देका ना पाऊं
ईं गिची दगडी ,बोल ना पाऊं

वो नीलू सरगा ऊ बगदी गद्नि
हैरा भैरा बग्याल ते समन देक ना पाऊं
बौल्या मी तेरु रूपा कु जुनि से चमकी नि पाऊं

ये बाँयां मा पकड़ी नि पाऊं
ते थे य हिरदय अंग्वाल नि ले पाऊं

यकुलु मेरु प्रेम याकलू चली
वे तेर बाट ते मेर बाटा मिलि नि पाऊं
बैठ्युं रुं ते थे हे राम हक़ नि दे पाऊं

तेर माया मा,हैंस ना पाऊं
तेर माया माँ ,रुन नि पाऊं

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अब भी !!! ***** दिनांक ०१/०८/२०१४ ****** भाग १/१००
August 1, 2014 at 4:46am

अब भी !!! 

 

 

दिनांक ०१/०८/२०१४

 

 

भाग १/१००

 

 

बस इतना ही काफी है  अब भी !!!

 

 

सुबह की भोर , दिन की धुप या फिर रात की तड़प कुछ कह जाती है जाते जाते नये रंग  नये रूप नये संग के लिये वो अब भी आतुर , विलक्षण है वो प्रतिमा एक अंकित छाप छोड़कर या उसे गृहीत करती हुयी  आगे निकल जाती है अब भी

 

 

किरण के रेशों से प्रकाशित ,ध्वनि के तरंगों से उमंगित या फिर वो  हवा के उत्तेजना में आंदोलित वो धरा अब भी

 

 

पेड़ों का यूँ झुक जाना कलियों का सकुचाना और फूल  खिल कर सुगंध फैलाकर फिर मुरझा जाना ये सील सिला चला जा रहा है सदियों से अब भी

 

 

एक चक्र है जो सैदव गतिमान , वो चल जा रहा है जाने कब से  सब दिख रहा फिर चक्षु  के आवरण की  कोपलें बंद क्यों अब भी

 

 

सब देके चले जा रहें यंहा चाहे जो कुछ है पर  वो कुछ भी लेके कोई यंह से नही गया अब भी

 

 

सत्य असत्य  पाप पुण्य  स्वर्ग नरक ना देखा है किसी ने ना कोई उस के  बारे में  बता  पायेगा सही से अब भी

 

 

बस एक प्रकाश है वो निश्छल प्रहर दर प्रहर  अब भी

 

 

सतत जारी  है

 

 

# बालकृष्ण धि. ध्यानी

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October 7
ऐ जा ऐ आंसू ऐ

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

उमली उमल सरै जालु
अपर ये दिन बी कटे जालु
ना हेर ये बाटा ये
क्वी नि आनु ये पाड़ा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

भेंटि जा ये ग्लोडी ये
लुनु खारु नि छोड़ि जा ये
बडुळि मा छे ये रेघा ये
सांकि कि तिस बुझै जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

तेरी विपदा ये तिल जाणा ये
तेरी खैरी ई तिल ही खाणा ये
ना कैर ये भीतर भैर ये
आंसूं मेर बोल्यूं माणी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

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October 6
बिरदयू गयुं

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

छन कया नशा छै
वीं केशा कि लगुली वे रात कली घटा छे
नि छे वे रात पौड़ी जुन की जुन्याली
विं की मुखडी ही बनिगे पुन्याली
विं पुन्याली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

दंत पंक्ति की रेघा मा
विं परेली की रेशा मा
कन भाग मेरु अटगि
विं की बिन्दुली मा जै अटकी
विं बिन्दुली देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

मिल बी कै दे सिकेसैरी
विंल जबै मिथे देकि
हैंसि विं ग्लौड़ी देक मेर ग्लौड़ी हैंसि
विं थे देक ना बान बाद मा मेर क्ख क्ख दौड़ी भैंसी
विं हैंसि देके कि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

हुंयुँ छों तुण्ड बरसाता मा
मि विं बरखा की रात मा
मिली जबेर तेर नशेली नजरि मेर नजरि
बिरदयू गयुं
मि बिरदयू गयुं ऊँ अदा बिच बाट मा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Parashar Gaur and 45 others
6 hrs · Edited ·

अपरा पाड़ों मा ह्युंद पोड़ी गे होलू

अपरा पाड़ों मा ह्युंद पोड़ी गे होलू
कै कोयेडु कै कुल्हण वो घाम लुकियूं होलू

डंडा धारा घार दार सब गरठियुं होलू
जदु दगडी सबी कु कामकाज थमी होलू

टैम टेबल हर्ची हर्ची सुबेर ब्योखोन होलू
आग तपदा तपदा छूईं मा बेल हर्ची गै होलू

नींदि नि सबी थे अपरू अंग्वाल लेलीं होलू
मेरु पाड़ा सन्कुली निरजक सै गै होलू

अपरा पाड़ों मा ह्युंद पोड़ी गे होलू
कै कोयेडु कै कुल्हण वो घाम लुकियूं होलू

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Mahesha Nand Gaur and 102 others
December 9 · Edited ·
·

जब से देखी तेरी मुखडी

जब से देखी तेरी मुखडी
मा वा जून की जुन्याली
अंधारू उजाळु व्है जांदी
जब वा आपरी नजरि मिलांदी
जब से देखी तेरी मुखडी

माया इनि लगोंदी छुची
आँखों दगडी वा इनि ब्चांदी
दन्त पंक्ति हैंसी देख्दा देख्दा
विं ग्लोडी ये दिल लुची जांदी
जब से देखी तेरी मुखडी

बांदों मा की बांद छे या
सरगा बाटू ऐ क्वी तू अछेरी
मी बना दे अपरू जीतू बग्वाल
मेर बांसुरी व्हैगे अब से तेरी
जब से देखी तेरी मुखडी

क्या क्या जतन करू मी
कण कणके ते थे मी मनेऊ
कब तेरी मया व्हाली मेरी
दिन राती तेरा सुप्निया सजेऊँ
जब से देखी तेरी मुखडी

जब से देखी तेरी मुखडी
मा वा जून की जुन्याली
अंधारू उजाळु व्है जांदी
जब वा आपरी नजरि मिलांदी
जब से देखी तेरी मुखडी

एक उत्तराखंडी

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