Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253380 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दिल्ली सैर ऐ तू ना ऐ ना

ऐ जा ऐ भानुमती ऐ
दिल्ली सैर ऐ की घुमी जा ऐ
कनके की लगुलु ते दगड छुईं ऐ
ऐ की ऐ दिल्ली मा मिसी जा ऐ
टैम यख हर्ची रुपया वै खर्ची
तू बी ऐ खर्ची जा ऐ
ऐ जा ऐ भानुमती ऐ
दिल्ली सैर ऐ की घुमी जा ऐ

ना कैर ऐ बात ऐ ये पहाड़ की ऐ
पहाड़ मा क्या अब रैगे या ऐ
ये उन्दरु मन मेरु राम गे ऐ
ये उकलू सोची साँस फूली गे ऐ
तू बी ऐ फूली जा ऐ
ऐ जा ऐ भानुमती ऐ
दिल्ली सैर ऐ की घुमी जा ऐ

ना कैर ना कैर ऐ इनि भैर भितर ऐ
ये पहाड़ निच ऐ ऐ दिल्ली सैर च ऐ
यख निच आजादी दी ऐ अपरा बिचार की ऐ
ऐ खुट अपरा ना ऐ यख भैर धैर ऐ
ना रेगे अब ऐ बैठालूँ को ऐ सैर ऐ
ऐ जा ऐ भानुमती ऐ
दिल्ली सैर ऐ की घुमी जा ऐ

ना ऐ ना ऐ भानुमती ऐ
दिल्ली सैर ऐ तू ना ऐ ना
नि लगुलु ते दगड छुईं ऐ
ऐ दिल्ली मा ना ऐ ना
टैम यख हर्ची रुपया वै खर्ची
तू ना ऐ सब जाला खर्ची ऐ
ना ऐ ना ऐ भानुमती ऐ
दिल्ली सैर ऐ तू ना ऐ ना

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की

रडदा मनख्यूं की हेरदा अंन्ख्युं की
हरच दा अपरुँ की डुब दा दाणियों की
गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की.... २

आँखों माया की टक्कों काया की
धैये लगै गिची की बाटा हेटे खुठी की
गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की.... २

बैयठला पहड़ों की न्हना घारों की
बिस्या दा गद्नियुं की उजाडया सारियूं की
गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की.... २

बांदर सुंघरूं की उत्त्पात गुलदारों की
भूकी पोट्गी की हर्ची गे कुछैलि की
गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की.... २

सीं सरकार की बिसरी राजधानी की
वों शहीदों की ये मेरा उत्तराखंड की
गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की.... २

अखरा दा विकासा की टूट दा धागा की
बुज्दा विस्वास की वै आत्म साथा की
गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की.... २

रडदा मनख्यूं की हेरदा अंन्ख्युं की
हरच दा अपरुँ की डुब दा दाणियों की
गीत गानू मी ये बाँझ डण्डों की.... २


एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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संभाली नि सैकी मन

संभाली नि सैकी मन
किले तिल नि संभाली सकी बथा
जिकडो कु तू इन सरा सर मा
आंसूं किले बगाली बथा
संभाली नि सैकी मन......

खोजी खोजी तिले कख मन
कख कख खोजी तिल यख बथा
बथों दगडी कै अकास उडी
कै संगी तिल यख बगत बिता
संभाली नि सैकी मन......

एक दिनी सबल यख यकलु रै जाणा
तिल संभाली , खोजी की कया पान
सपनियु कु ये जग जंजाल मा
रे मन तिल खौलयूं खौलयूं रै जाण
संभाली नि सैकी मन......

हात पकड़ी कु ये मेरु मन
बथा कै बाटा कै उकाल उन्दार हिटान
मोरी जालु कया पालु मेरु मन
अब त अपरा थे तू खुद समजा दे
संभाली नि सैकी मन......

संभाली नि सैकी मन
किले तिल नि संभाली सकी बथा
जिकडो कु तू इन सरा सर मा
आंसूं किले बगाली बथा
संभाली नि सैकी मन......

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मिल जबै मीथै खोजी

मिल जबै मीथै खोजी
मी नी मिल मीथैई क्ख्क भी
कै बाटा मी हर्ची गयुं
खवैगे मेर लिखे वा पर्ची
मिल जबै मीथै खोजी ………

रै मी अपरी पास सदनी
अपरा थे भी नि मी जाणा पाई
कमै मिल खुभ ये टक्का
पर वोंको मोल भी नि मी जाणा पाई
मिल जबै मीथै खोजी ………

जीकोडी कण तेर दुकदुकी रे
अपरुँ दगडी भी तू नि रै पाई
रै सदनी ये सरीर भित्रा भितर
एक बेल तू भी कैगे मीथे बिराणि
मिल जबै मीथै खोजी ………

अब मिली त किले मिली मीथै
जब सब ध्यणी व्हैगै हैंक कैकि
जल्म मेरु इनि फुंड तू खती गैई
हाक मारू त मारू अब क्ख्क मी
मिल जबै मीथै खोजी ………

मिल जबै मीथै खोजी
मी नी मिल मीथैई क्ख्क भी
कै बाटा मी हर्ची गयुं
खवैगे मेर लिखे वा पर्ची
मिल जबै मीथै खोजी ………

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दिन बीती जाला

दिन बीती जाला हो हो
दिन बीती जाला ....... २
ये पहाड़ मा
ये म्यार गढ़वाल मा

बस तेर बाटो हेरी रे
कन तेरी ये देरी हो
ये उमरी भरी की खैरी
कब तक मिल इन सैरी रे

दिन बीती जाला हो हो
दिन बीती जाला ....... २
ये पहाड़ मा
ये म्यार गढ़वाल मा

आषाढ़ की भीगी बरखा रे
पुष्प माघ मोरी जानू जदू हो
चैत की मैना कु उल्यार मा
फागुन फूलों फुल्यार रे

दिन बीती जाला हो हो
दिन बीती जाला ....... २
ये पहाड़ मा
ये म्यार गढ़वाल मा

यख समा सुम वार-पार रे
सास ब्वारी रोजी को टांटा बार हो
हुक्कों की गूंजी गुडगुडहाट मा
नान छोरों को राखलादार मा

दिन बीती जाला हो हो
दिन बीती जाला ....... २
ये पहाड़ मा
ये म्यार गढ़वाल मा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
January 7 ·
·

नारंगी की दाणी ये

नारंगी की दाणी ये
कन खाणा हुला भगयान
इंथे बैठी सोली सोली की ये

खटी-मीठी खुदी ये
द्वी दिन का समलौण दिन
समधोला ह्वे गेनी ये

सब एक नि रैंदा ये
अकास धरती कब एक वैंदा रे
मगृजाळ कु रच्यूं ये फेरु ये

क्ख्क हर्ची बिरडी गे ये
मेरु गौं मेरु पहाड़ कु बाटू रे
मेरु गढ़ ऐ उत्तराखंड ये

नारंगी की दाणी ये
कन खाणा हुला भगयान
इंथे बैठी सोली सोली की ये

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Bhishma Kukreti and 143 others
January 3 ·
·

क्ख्क लुकी गयं तुम

ऐ रे गेल्या ......
क्ख्क लुकी गयं तुम
मेरी जिकोड़ी चुरेकी
बुरडी व्हैग्युं मि यख
तुमरि बाटा हेर हेरी की
ऐ रे गेल्या ……

कन के हर्ची ऐ मेर जिकोड़ी
तुम दगडी नजरि मिलेकी
अब नि रे ये मेर दुक दुकी
अब त व्हैग्याई बस जी तेरी

ऐ रे गेल्या ......
क्ख्क लुकी गयं तुम
मेरी जिकोड़ी चुरेकी
बुरडी व्हैग्युं मि यख
तुमरि बाटा हेर हेरी की
ऐ रे गेल्या ……

कन जादू के तैन
ये मेर निर्भगी काया पर
में पास व्हैकि बी
नि रैगे औ अब मेरी

ऐ रे गेल्या ......
क्ख्क लुकी गयं तुम
मेरी जिकोड़ी चुरेकी
बुरडी व्हैग्युं मि यख
तुमरि बाटा हेर हेरी की
ऐ रे गेल्या ……

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Geeta Chandola and 127 others
December 30, 2014 at 4:47am ·

मेरु पहाड़ मेरु संगे

मेरु पहाड़ मेरु संगे
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने

कन कांडा पौड़ी यख
तू बी क्ख्क रौडी गे गंगे
यूँ ह्यूं चलूँ थे यकलू
तू बी क्ख्क छोड़ी गे गंगे
अपरू झोळू अपरू संगे
भगा अपरू ना मिलने
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने

इन जली हम यकुला ही
क्वी हम थे ठंडो करी ना पैई ना
घुम्या दोई यकुलाई ये
अपरा क्वी यख छेई ना
जनी ये घाम जनि छाया
एक साथ जनि कबी ना मिलने
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने

कन जुनि ये कन जुनि मी
कै बाटा मा हम हिटण ना लग्यां
ना मिली मी ना मिली ये हम थे
जो बाटा कबि हुम्लु थे बनया
क्ख्क बिरदी व्हाली वा माया
ये जिकोडी हम थी मिलली ना
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी 
दूर तक विं सड़की का छोर मा

कु हुलु आनु व्हालु
ये दंडी काण्ठियों मा
हेर दी मेरी आंखी हेर दी
दूर तक विं सड़की का छोर मा

हेरी ले दी ईं आंखी दगड्या मेरी
बिजी जाली ये तांसी बी मेरी
सुकी व्है जालु ये परान मेरु
देके जालु क्वी मेरु तेरु आन व्हालु

सरी माया भोरी ले ईं दंडी मा
उजाळु वहैगे अबै ईं कंठी मा
देक मयादार मुखडी कु हेर
छूछा लाटा मेरा अब ना कैर देर

कद्ग दिन बीती गयां
ना पत्री ना क्वी ठौर रैबार अंयां
कन व्हालु कया खाण व्हालु
मेरे पोट्गी लथड़ु वख कन रैण हुलु

कु हुलु आनु व्हालु
ये दंडी काण्ठियों मा
हेर दी मेरी आंखी हेर दी
दूर तक विं सड़की का छोर मा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी 

किले मी हुलु बैठी रुनु

अब बी मै मा कया च बांकी
मी नि जण दूं मै कया इन दडयूं
किले लगी हुली बडुळि ईं तांसी
ये जीकोडी किले झुरनी व्हाली
अब बी मै मा कया च बांकी

डाला की छैयां मिली की बी
किले ई सरीर मेरु इन ऊफानु हुलु
कूच इन दडी व्हालु ये बगता ने बी
अब भैर ऐकि ऊ मि थे किले डराणु हुलु
अब बी मै मा कया च बांकी

इन धगुली टूटी इन दगड़यों मेरी
टूटी की वा क्ख्क बोगी ग्याई
अच कल लगणि जन काणी मेरी
इन काणी अब यख कैंकी ना हो
अब बी मै मा कया च बांकी

तपरणु मी यकुलि अपरी अपर मा
अपरी आगी मा मी छों अब जलणु
किले भागी अपरी मुल्क देश छोड़ी
अब पछतैकी किले मी हुलु बैठी रुनु
अब बी मै मा कया च बांकी
.
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