कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Geeta Chandola and 126 others
December 30, 2014 at 4:47am ·
मेरु पहाड़ मेरु संगे
मेरु पहाड़ मेरु संगे
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने
कन कांडा पौड़ी यख
तू बी क्ख्क रौडी गे गंगे
यूँ ह्यूं चलूँ थे यकलू
तू बी क्ख्क छोड़ी गे गंगे
अपरू झोळू अपरू संगे
भगा अपरू ना मिलने
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने
इन जली हम यकुला ही
क्वी हम थे ठंडो करी ना पैई ना
घुम्या दोई यकुलाई ये
अपरा क्वी यख छेई ना
जनी ये घाम जनि छाया
एक साथ जनि कबी ना मिलने
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने
कन जुनि ये कन जुनि मी
कै बाटा मा हम हिटण ना लग्यां
ना मिली मी ना मिली ये हम थे
जो बाटा कबि हुम्लु थे बनया
क्ख्क बिरदी व्हाली वा माया
ये जिकोडी हम थी मिलली ना
दुकी पण क्वी नि संगे
सुक ना देकि यक कबि हमने
मेरु पहाड़ मेरु संगे
यकलु यो यकलू मी
ना क्वी हम थे मिलने
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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