Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253549 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 7 at 10:37pm ·

बाकी कुछ याद नही

वो स्कूल
वो जमाना
वो पनघट
वो आम का पेड़
वो स्कूल मेरा पुराना
वो याद है पहला दिन
वो अब भी मुझे
वो पाणी सैण स्कूल में जाना
वो उम्र कुछ पांच ,छह होगी
वो बस्ते अंदर स्लेट खडु थे
वो साथ एक पोटली बांध रखी थी
वो कुछ घी रोटी ,गुड़ के टुकड़े थे
वो बंधा था मेरी माँ ने
वो पोटली उसने अपने स्नेह से
वो स्कूल के उस पहले दिन में
वो बस याद है अब इतनी बाकी
वो स्कूल की
वो बीच की छुट्टी
वो बैठ था मध्यान में
वो आम के पेड़ तले अकेल
वो हाथ में थी
वो ही गुड़ और रोटी माँ की
वो स्वाद
वो अब भी जुबान में मेरे
वो मेरी माँ के स्नेह की
और बाकी कुछ याद नही

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
3 hrs · Edited ·

कुछ तो उनमें बात होगी

कुछ तो उनमें बात होगी
जो मन मेरा कुरेदता है रह रहकर मुझे
धड़कन पल पल उनकी मेरे साथ होगी
जो धड़कता है दिल मेरा जब ऐसे
कुछ तो उनमें बात होगी …… २

आँखों में छपी उनकी छाप होगी
इसलिये तो ये बरसात होगी
छम छम बरस रही है जो आँखों से
वो उनकी ही तो याद होगी
कुछ तो उनमें बात होगी …… २

कुछ अलग है वो बिलकुल सबसे अलग
इसलिये तो वो मेरे इतने करीब होगी
साँस की ये रफ़्तार मेरी अब कहने लगी है
वो मेरे कहीं आस पास ही होगी
कुछ तो उनमें बात होगी …… २

मै ना जानो क्या कहते होंगे लोग इसे
इस अहसास को वो ना जाने क्या नाम देंगे
बस मेरे दिल की ये बहती भावना है
उसके अहसास को वो बस मेरे साथ रहने देंगे
कुछ तो उनमें बात होगी…… २

कुछ तो उनमें बात होगी
जो मन मेरा कुरेदता है रह रहकर मुझे
धड़कन पल पल उनकी मेरे साथ होगी
जो धड़कता है दिल मेरा जब ऐसे
कुछ तो उनमें बात होगी…… २

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 14 at 8:23pm · Edited ·

पहाड़ पत्थर

खाली खाली सा देखने लगा
कुंठित मन अब खुद से कहने लगा है

दर्पण साफ़ और स्वच्छ था कभी मेरा
अब मैला सा वो क्यों लगने लगा है

तन्हाई तो बात करेगी जरूर मुझसे
लेकिन वो भी अब चुप रहने लगी है

देखों जिधर भी सन्नाटा सा पसरा है
वीराना वीराने से अब जा खटका है

पहले तो गुफ्तगू होती थी अक्सर
लेकिन वो मुलाकातें अब पीछे छूटी हैं

अब तो डर कहीं यूँ ना खो जाये हम
पहाड़ थे कहीं पत्थर ना हो जाये हम

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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वैन बी त एक सुप्निया देखी हुलु

वैन बी त एक सुप्निया देखी हुलु
वैका पहाड़ी कबीत वैका हुला
वैन बी त एक सुप्निया देखी हुलु

जाणा छे दूर वै भ्तेक दूर भांडी दूर
कबीत ऊ दूर गयां वै का पास पैतण हुला
वैन बी त एक सुप्निया देखी हुलु

वैकि ब्यारा तब वैकि हुली
जबै वैकि दीदी भूली वैका पास ना यकुली हुली
वैन बी त एक सुप्निया देखी हुलु

जब वैकि खुद तेथे लगी व्हाली
घुघूती घुरेली बुरांस वैका पास फुलेली व्हाली
वैन बी त एक सुप्निया देखी हुलु

ऐई आस मा ऊ कबी भ्तेक बैठ्युं छया
वैकी जग्वाली मा सदनी आप्ड ही छया
वैन बी त एक सुप्निया देखी हुलु

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
 
काफल लगे हैं पकने

काफल लगे हैं पकने
बुरांस लगे हैं वो खिलने
धुप लगी जब पिघलने
पहाड़ लगे अब सजने

नित नया रूप धर लेता
वो सारे दुःख हर लेता
जब लीची लगे ललचाने
फिर पहाड़ लगे बुलाने

काँटों काँटों पे बहार आयी
फूलों ने ली फिर अंगड़ाई
उजाड़ आज कैसा खिला
कोई बिछड़ा हो उससे मिला

गर्मी में चहल पहल होती
वो साल भर का इंतजार होता
आमदनी कुछ मेरी होती
चेहरा पे सबका निखार होता

चार महीनों की वो रौनका
झट तुरंत समाप्त हो जाती
फिरा ना कोई संगी साथी
मै ही दूल्हा मै ही बाराती

काफल लगे हैं पकने। .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
3 hrs · Edited ·

वो कविता

वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता
अभी तक ना लिखी
ना सोची किसी ने अभी तक
ना देखी ठीक से
अब तक
सब सामने थी पसरी
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

काटों पे
खिलते फूल देखे
दुःख में भी
हँसते वो कैसे लोग देखे
आँखें वो भीगी
यादों में डूबी
रातों का वो इंतजार
सुबह वो बेकरार
ना लिख पाया मै
अब तक
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

भूख है वो
प्यासा है वो
अपने सपनों का साँचा है वो
वो उसकी तड़प
वो उसकी वेदना
ना जान पाया कोई
ना उससे सबक ले पाया कोई
लिखने बैठे हैं सब पर
उसे ठीक से ना लिख पाया कोई
रह गया वो
रह गयी मेरी अधूरी
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

कितने मौसम आये यंहा
वो चले गये
कुछ भीगा कुछ सुखा कर
वो चले गये
अब भी बैठी है वो
बिरह की सूली पर
अपने लोगों की वो बोली पर
रंगी तीन रंग की डोली पर
जल रही है अपनों की होली पर
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

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बालकृष्ण डी ध्यानी
7 hrs ·

चलो बाबा केदार के द्वारे

चलो बाबा केदार के द्वारे
वहीँ बाबा अब बैठे मिलेंगे हमारे
ऊंचा हिमाला
बाबा घर है
आये बाबा आज अपने द्वारे
चलो बाबा केदार के द्वारे

छह महीनो के बाद
आये उखिमठ से सज धज डोली में आज
संग गढ़वाल राइफल के गाजे बाजे
वैदिक मंत्रोच्‍चार और भक्‍तों के जयकारे
चलो बाबा केदार के द्वारे

१२ ज्योतिर्लिंगों के तुम हो स्वामी
सुनलो प्रभु आज अब अर्ज हमारी
ना हो जाना अब खफा तुम हमसे
गर कोई भूल चूक हो गयी हमारी
चलो बाबा केदार के द्वारे

चलो बाबा केदार के द्वारे
वहीँ बाबा अब बैठे मिलेंगे हमारे
भर लो भक्‍तों सब अपने अपने
सुखों की झोली कर के सारे दुख किनारे
आये बाबा आज अपने द्वारे
चलो बाबा केदार के द्वारे

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी 
तेर धौंपेली चरखा मा

तेर धौंपेली चरखा मा
भिग गयुं माया बरखा मा

गाढ़, गधेरों, नौलों मा
आड़ू-बेड़ू-घिंघारू डालु तौला मा

छापडि धरि इन मोडमा
कनुलि जा बैथि कनुडी ज्वड मा

छोइ बांसी को पाणी यु
छोरी कन ऐगे ते ज्वानि यु

सियोनी रीती तेर मांगा ये
मंगदरी व्हाली मेरु ऊ साथ ये

बाबा अबेर ना कैर पिठ्याँ की
नथुली तौलि गे सोना की

सयाण बौल सैय कु
यकोलू ना जै तू डंडा कु

तेर धौंपेली चरखा मा
भिग गयुं माया बरखा मा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
 

ऐजा अपरा गुनियार मा

गौ का बाट हेरना छिन
बाट त्यारा देइली का
रुवाट ,भात,दाव खाणा ऐजा
ऐजा अपरा गुनियार मा

यख वख जख तख
सरया समासुम पसर्युं छा
उडियार मा लुक्युं बाघ
सौत जनि अब लग्न्युं छा

जिकुड़ी छुई सुणा ले
अब अपरी कनुडी उघड़ेकी
बोई बौबा हटगी टूटगे
गोरु भैन्सू अब हकिकी

तेरा झूठी सौ ऐकि की
हरैगो सारू खैना पाणी
त्यरछाँ उकाव चैडचैडी
पच्छाण बल्द ज्योड़ सी

एगदरी मोरी मा मेरु
यखुली ये उजियो अन्यार रे
भियो लागु हौळ राति मा
दुपारी गै घाम उकाल मा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कैका खुठा कख ग्या छन

कैका खुठा कख ग्या छन
कैका पुठा कख रड्या छन
क्वी बी नि अब जणदू रे
मेर बात क्वी बी नि अब मणदू रे

कया हाल कैगे ,सब छत्यानास व्हैगे
ईण तुड़म तुड़ा कैरी की ,तू कैकु काम कैगे
दोई घुठि तेरी ,ई देसी बिदेसी की
तेर कुटम दरी थे ,छीतर बितर कैगे

इन तुण्ड हुंयुँ छे ,तू कख कख मोर्युं छे
ब्यो बरती रौलों खोलों मा बेधुंद पड़युं छे
नि रे गै निर्भगी तेर सोचना कु शोर
अक्ला मा चढ़ी गे तेर दुरु सिरमौर अ

हैरीग्युं मि अब जीती गे तू
ना बात सुणा मेरी पर इं थैली थे तू छोड़ी दे
कन हालु कैगे मीथै बै हालु कैगे
अपरा नि तर अपरुँ का बाना सोचि ले

कैका खुठा कख ग्या छन
कैका पुठा कख रड्या छन
क्वी बी नि अब जणदू रे
मेर बात क्वी बी नि अब मणदू रे

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