Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253654 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चल ईं थे भाषा बणा

दादी मेरी
बाब मेरु
मांजी सुणा
गढ़ देशा की गढ़ बोळी मेरी
चल ईं थे भाषा बणा

क्द्गा यखुली रैगे
क्द्गा यखुली कैगे
ईं गिची गिची थे अपरुँ अपरी
तू किलै बिराणी रैगे कैगे

आमा मेरी
बौज्यू मेरु
इजा सुणा
गढ़ देशा की गढ़ बोळी मेरी
चल ईं थे भाषा बणा

ढुंगा ढुंगा गारा गारा
चला म्यार दगडी हिटा
मीठी मीठी गढ़ बोली मेरी
कब आली ईकी बिन्सरी बेल मिथे बथा

बोडी मेरी
बोडा मेरु
नानू नौनी सुणा
गढ़ देशा की गढ़ बोळी मेरी
चल ईं थे भाषा बणा

बुराँस फ्योंली जाणि
ईंथे डाळी डाई खिला
काफल किन्गुडा हिंसाल
की जाणि रसीली दाणी बाणा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 9 at 7:11am · Edited ·

अपरी जग्वाली मा

अपरी जग्वाली मा
सदनी रैग्युं बैठी इनि मि
दुनिया कख भ्तेक कख बौडी ग्याई
मि रैग्युं वखि बैठी इनि मि

नि देक स्कू मि नि सै स्कू मि
अचकल फैशन का रंग ढंग
सदनी रैग्युं थगळयूँ लग्युं पैरी इनि
कुरता सुलार जबै अपरी सिल्यू मि

मेरु जीबन ये मेरा देबता पहाड़ का
ढुंगा ढुंगा मा मि रैग्युं बल तुम थे जप्ता
थकलु बजाई और्री जागर बी लगाई
मेरी ध्यै तू किलै रैगै ई बस मैमा

दोई बिसा माटू देक पुंगडु मेरु
कया खोलों कया मि लगोंलो
सोच्दा सोच्दा ई उमरी चली ग्याई
बंजा पड़ी अब ऐ हैसणा छन मैमा

अपरी जग्वाली मा
सदनी रैग्युं बैठी इनि मि
दुनिया कख भ्तेक कख बौडी ग्याई
मि रैग्युं वखि बैठी इनि मि

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 8 at 7:26am ·

ये लोक

हैंसो त हँसैंण नि दिंदा
ई दुनिया किले मिथे जीण नि दिंदा

जख देका तख भिर भिराण लग्यां
मिथे यखुली ऊ किले नि रैण दिंदा

माया कु मि चखुलु छों आकासा कु
ये आकासा मा मिथे ऊ किले उड्न नि दिंदा

अपरी छविं ईं ऊं सदनी लगान्दा रैंदा
मेरी छविं किले नि ऊ एक बारी सुणदा

हैंसो त हँसैंण नि दिंदा
ई दुनिया किले मिथे जीण नि दिंदा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 6 at 8:46am ·

क्वी नि मेरु पास अब

हो हो औ हो अ

क्वी नि मेरु पास अब
मेरु जीकोडी बोल्दी रैंदी
ये मन मेरा जब माया बसी
इले ई आँखि रुंदी रैंदी

दुक दुक सदनी इन
किले ऊ इनि कैंदी रैंदी
ध्यै किले कैकु बाण
इनि सदनी ऊ देंदी रैंदी

बच्न का कांडा अब
सदनी जिकोड़ो घोच्दो रैंदा
निर्भगी इन मन रे ऊ बान
किले सदनी उल्टो सोच्दो रैंदी

क्वी नि मेरु पास अब
मेरु जीकोडी बोल्दी रैंदी
ये मन मेरा जब माया बसी
इले ई आँखि रुंदी रैंदी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with AnjaNa Dobriyal
May 4 at 12:46am ·

अन्यारी राता मा

अन्यारी राता मा
तू कैले मेसै बाता

हेर त्यूं भूली
ऊ ह्यूँद व्हाली चूली
चमकन लागि हुली
जन रात गैना

अन्यारी राता मा
तू कैले मेसै बाता

चौख्टीय बाटू हेरि
फिर घिर ऐगे चौमास
यकुली परानु भूलि मेरु
झट छविं लगाण ऐजा

अन्यारी राता मा
तू कैले मेसै बाता

ऊ क्या देलो हैका शुख
वैकु नि रैगे अब अता पता
भैम व्हैगे थे मिथे भूली
झट तू दौड़ी की मै पास ऐजा

अन्यारी राता मा
तू कैले मेसै बाता

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 3 at 6:54am ·

अछोदो बैठी हुली बोई मेर

अछोदो बैठी हुली बोई मेर
ऐगि हुलु ओडल ऊ डाँडो पार
पुंगडु ओड़ा मा कु ऐन्ठू हुलु
इज्रान व्हैजा बांज पुंगड़ी मेरी

कटुला कटील भूमि म्यारी
कुल्यान्दा व्हैजा स्यारी स्यारी
गंग्लोडा कु गधेरा गोळ ढुंगा
गड्डी गोट ऊ गयुंवाडी कु सारा

मरसा तिल रीखु कि स्वगाडी
हल्दू आदु चणा और्री ऊ सुंठा
पिंडालू भांग्लू तैल्डू कु ऊ बाड़ा
खरक मरडा कु पसरया बग्वाल

गंज्याला घरया चोपडी छाछरो
गाड़ कु जवाडा छोप्न्य्या छर्रों
बिच्ल्या बुणया बीजवाड रौली
तप्पड भ्विमुंडा बिच्छा कु धार

अछोदो बैठी हुली बोई मेर ...............

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ये गद्नि छम छम

कन बगनी हुली ये दीदी
ये गद्नि छम छम
कन बगनी हुली

ऊ ह्युंद चुल्युं मा
ये ऊंचा निसा डंडि-कांठि
अपरी अपरी लगादी वा
झट बिराणी व्है जांदी
कन बगनी हुली ये दीदी
ये गद्नि छम छम
कन बगनी हुली

चल जोंला
द्वि दीदी भूली
छकेकि विं की तस्बीर थे
यूँ आंखां मा टिपि ओंला
कन बगनी हुली ये दीदी
ये गद्नि छम छम
कन बगनी हुली

रोलां खोलों मा
हिंसालों दानी, डालों डालों मा
ढुंगा गारों मा लपक छपक कैकि
हैराली पस्यारी स्यारी स्यारी मा
कन बगनी हुली ये दीदी
ये गद्नि छम छम
कन बगनी हुली

देख ऐकि मेर माया कु चित्र
सरया पसरयूं च ये मेर पहाड़ मा
कैन ऐकि रंगी गै हुलु ये सारू
बस यख ऐकि एक रात मा
कन बगनी हुली ये दीदी
ये गद्नि छम छम
कन बगनी हुली

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ई दुनिया कु

ई दुनिया कु
यात्रा मा मि अलझिग्युं
समझे ना बिंगी ना मि
कन के मि ऐमा अटकीग्युं
ई दुनिया कु

कख भत्तेक ऐई ये बाटा
ये बाटा मा मि बिरदीगयुं
सुख दुःख की बरखा मा
यखुली यखुली मि भिगीग्युं
ई दुनिया कु

ना मि हैसणु चैंदु
ना मि अब रुणु चैंदु
कुच अपरू कु यख बिराणू
ऐ घोलमा अब यख पिसीग्युं
ई दुनिया कु

माछा मि बिन पाणी कु अब
अपरी अपरा मा तड़पीग्युं
ना उघडि स्की मेसे ऊ लुक्यां भेद
मि वै खोल मा अब लुकीगयुं
ई दुनिया कु .........

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 15 at 8:21am ·

पड़ै लिखै कया कनु जी

पड़ै लिखै कया कनु जी
जाणा भैर देश
ये गढ़वाल मा कया रख्युं च
ढुंगा गारा बच्या शेष

पड़ै लिखै कया कनु जी हो …अ

नक़्ल कैरी पास हुंया जी
टीचरों को मोरी गैत
एक टीचर सर्या स्कुल मा
अब व्हैगै पाड़ों की विद्या गैर

पड़ै लिखै कया कनु जी हो …अ

कन कै हुनु किले की हुनु जी
प्रगति नौ को बस ठेला म ठेल
करोड़ टक्का विज्ञापन मा फुकी गै
नेतों पुट्गी भोरीगे थेट

पड़ै लिखै कया कनु जी हो …अ

सब इनि ही अब सोचण जी
मिल बी किले मोडम धरण तेल
ई अब दुनिया तेल मलिस की
ज्याद बोव्ली हो जाली जेल

पड़ै लिखै कया कनु जी हो …अ

पड़ै लिखै कया कनु जी
जाणा भैर देश
ये गढ़वाल मा कया रख्युं च
ढुंगा गारा बच्या शेष

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दुई रुटी का बाना

दुई रुटी का बाना
लाटा दुई रुटी का बाना
क्द्गा ऊकाळ सैरी....... २
दुई रुटी का बाना

आच बी जबै
याद आंदि वा खैरी
बस तेर मुखड़ी देखिकी
मेरे दुःख सब बगे देन्दी
दुई रुटी का बाना

लखडु घासु को आंदा जाँदा
खुठी जबै जबै रुपै ऊ कांटा
ते बगत याद आंदि तेर भूकी पोटी
सब पीड़ा मेर बिसरी दिंदा
दुई रुटी का बाना

आच कोई बी नीच पासा
सब्यां छुट्यां जन सब धागा
अब बी जबै ऐ जांदू तै रैबार
विंच मेरु जियूं णु कु आधार
दुई रुटी का बाना

दुई रुटी का बाना
लाटा दुई रुटी का बाना
क्द्गा ऊकाळ सैरी....... २
दुई रुटी का बाना

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