कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 9 at 7:11am · Edited ·
अपरी जग्वाली मा
अपरी जग्वाली मा
सदनी रैग्युं बैठी इनि मि
दुनिया कख भ्तेक कख बौडी ग्याई
मि रैग्युं वखि बैठी इनि मि
नि देक स्कू मि नि सै स्कू मि
अचकल फैशन का रंग ढंग
सदनी रैग्युं थगळयूँ लग्युं पैरी इनि
कुरता सुलार जबै अपरी सिल्यू मि
मेरु जीबन ये मेरा देबता पहाड़ का
ढुंगा ढुंगा मा मि रैग्युं बल तुम थे जप्ता
थकलु बजाई और्री जागर बी लगाई
मेरी ध्यै तू किलै रैगै ई बस मैमा
दोई बिसा माटू देक पुंगडु मेरु
कया खोलों कया मि लगोंलो
सोच्दा सोच्दा ई उमरी चली ग्याई
बंजा पड़ी अब ऐ हैसणा छन मैमा
अपरी जग्वाली मा
सदनी रैग्युं बैठी इनि मि
दुनिया कख भ्तेक कख बौडी ग्याई
मि रैग्युं वखि बैठी इनि मि
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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