कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with यशपाल सिंह पुण्डीर
June 8 at 7:57am ·
बुरांस खिल्युं चा
बुरांस खिल्युं चा
ये गेल्या देक बुरांस खिल्युं चा
लाल रंगा मा खिल ग्याई देक
देक कन हैंसणुं चा , बुरांस खिल्युं चा
डंडा डंडा मा कांडा कांडा मा
बुरांस खिल्युं चा औ बुरांस खिल्युं चा
अपरी मा देका जख तख देका
नजरी गैं वख तख देखा
पहाड़ सज्युं चा ,बुरांस खिल्युं चा
माया मेरी माया तेरी कैन लगिचा
ढुंगा देशा मा चल देकणु बुरांस खिल्युं चा
हरा हरा पाती जगमगण लगगै बाती
यूँ ह्युं चलूँ चांटी गद्नि का बाटी
भोरीगे साऱ्या घाटी ,बुरांस खिल्युं चा
जिकोड़ो मेरु मेसै कैनु लग्युंचा
तँसूँ तिस बुझाण ऐजा यख बुरांस खिल्युं चा
गलोड़ी का रंग बुरांस का संग
ऐबार छूछा तै थे रैबार पठ्यूं चा
आँखा फूटगे मेरु फिर देकणु ,बुरांस खिल्युं चा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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