Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253654 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देक कण लुटणा छिन

देक कण लुटणा छिन … २
जन व्हालु ये व्हैगै मेरु उत्तरखंड चीन
अापदा का बी लोको थे नि छौडि
देक कन ये निर्भगी जीकोडी का छिन

क्द्गा टक्का को पौडि यख एक कमरा बल
बतावा क्द्गा किलो रुपया यख दूध
ग्यारा गुलाब जामुन कु च सवाल
बिरयानी, चिकन ,बिशलरी कु स्नान

कन तेरु जमा अब मोरीगे गे
बकासुर कया तेर पोट्गी मा जगीगै
उत्तरखंड अधिकारियो कु देक मेनू कार्ड
मेरु व्हैगे उत्तराखंड कु अब बुरु हालु

करोड़ों का तू करगे इन वार पार
वै बी मेरा कैलाश बाबा केदार को घार
भूख पियाश घैल लोक नि देके ते हाल
तेन लगे दे फर्जी बिलों की भरमारा

क्ख्क भोरिलो ये तू पाप
क्द्गा लीलू तू लोकों को सर्राफ
अब बाथ अब कया हुलु तेरु आच
तेरु नि रैगे अब भौल परबात

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 31 at 6:56am ·

स्वार्थी व्हैगे मेरु मन

स्वार्थी व्हैगे मेरु मन
बल अब तिल कया कन
जीकोडी मेरी तू बथा दे
बल अब तिल कया बोन
स्वार्थी व्हैगे मेरु मन..............

ये जीयु मेरु तू ढुंग व्हैगे
बल अब तिल कया कैथे सरन
जिंदगी ये सदनी उधारे की
बल अब तिल कया इनि कटण
स्वार्थी व्हैगे मेरु मन..............

ना त कैकि सुण दू रे
बल अब तिल कया कैथे धोका दिन
माया की तेर पोटली भरी
बल अब तिल कया इथे कख ले जाणा
स्वार्थी व्हैगे मेरु मन..............

न दिक दू तेथे क्वी अब
बल अब तिल कया कैथे कन देकन
काला चश्मा पैरी की ये लाट सहाबा
बल अब तिल बी ये मसान मा हि जलणा
स्वार्थी व्हैगे मेरु मन..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ये मेरु यख्लु कु यात्रा

ये मेरु यख्लु कु यात्रा
कख जाणा व्हाली
मिथे कख ले जाणा व्हाली
हिट दी रै तू हिट दी गै

मि पर नि राई जोर मेरु
ये रुनझुनी आंसू मेरा
किलै की मि रुलाण हुला
दूर भ्तेक मिथे धै लगाणा व्हाला

ज्यून की रात वा
और्री ऊ दोपरी कु घाम रे
क्वी नि रैंदु देदु यख साथ रे
यख्लु हर एक कु बाट रे

तध्योड़ ऐगे अब बरखा
बरखा बरमाऊ दगडी पौडी माथा
ब्याखुली कु ऊ झड़ सर सर
रिउणी छुलार बौगी गे झर

ये मेरु यख्लु कु यात्रा
कख जाणा व्हाली
मिथे कख ले जाणा व्हाली
हिट दी रै तू हिट दी गै

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अपरी छविं लगाणा हुली

अपरी छविं लगाणा हुली
दिन रात वीं छविं थे रट्यानी व्हाली
म्यारा पहाड़ थे हसाणा रुलाणा हुली
मेर सौंजडया थे नींदि नि आणि हुली
अपरी छविं लगाणा हुली .......

बैठी हुली प्यारी ड्यार मा
ख्वैगे हुली वा म्यारा प्यार मा
खुद विंथे मेर अब आणि हुली
मिथै ऊ अपरा पास बोलाणी हुली
अपरी छविं लगाणा हुली .......

क्द्गा दिन राति इनि आला जाला
चौमासा अपरी पिरती की छविं लगाला
ये हेर का दिन प्यारी मेरी इनि बीती जाला
परती जब आलू मि तब ये बुरांस फुलला डाला डाला

अपरी छविं लगाणा हुली
दिन रात वीं छविं थे रट्यानी व्हाली
म्यारा पहाड़ थे हसाणा रुलाणा हुली
मेर सौंजडया थे नींदि नि आणि हुली
अपरी छविं लगाणा हुली .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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जबै चढ़ी गे दारू

मुंड, कपाळ जबै चढ़ी गे दारू
फूटग्यु म्यारु बरमंड सारू

नाक मा जबैर नाची दारू
हे दारु दीदा दे दे दारू ऐगे दारू की बास

झट छूटी गे गिची लौल
यख वख मिथे तिडे दे ये दारू ने आच

मुखड़ी मा मेरु बारा बज्यां
बाळ म्यारा यख वख तिडयां सज्यां

दारु बिगेर मि बौवा मुया हुँयां
हे दारु ने मेरु सारू गढ़वाल लुटयूँ

जुकुड़ी मुखुडी मेरी लगानि छँवि
लूणा कु चुरा मिल सर जिबे मा धारा

रीता किसा मेरा करदा सवाल
कुटमदरी का म्यारा व्हैगे बुरा हाल

गौळु मा जब म्यार ऐ छैगे ये दारू
रँगमत्ति ललांग्या वहैगे मेर घुंडु क्वीनु

इत्गा व्हैकि मिल क्वी सिख नि ल्याई
खत्म मेरु जीबन दीदा इनि सुधि ग्याई

मुंड, कपाळ जबै चढ़ी गे दारू
फूटग्यु म्यारु बरमंड सारू

बालकृष्ण डी ध्यानी
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भैम व्हैगे

भैम व्हैगे भैम व्हैगे
ये पिपला डाला भुंयां
जरा सी ब्याळ रति गै
मि थे ज्सक बैठी गे
और्री मि थे भैम व्हैगे
जस गुलदार लुक्युं हुलु वख
पिश्च बैठ्युं व्हालु तख
कण जाणा अद रति वै बाटा बौबा अब
भैम व्हैगे भैम व्हैगे
ये पिपला डाला भुंयां
मि थे भैम व्हैगे

लिंबू मिर्च फिरै व्हालु
कैल ऊचाँड निकेल हुलु
कैका बान कैल कया कै हुलु
मेर मन दैर भैर दैर
छलु नि निकाल नि सकै उकेर
कन जिकडो घेर ये दैर
ये नरसिंग मेर तू अब रक्षा कैर
थकलू डमरू जागर लागि फेर
फिर बी नी भगे सकी दैर
भैम व्हैगे भैम व्हैगे
ये पिपला डाला भुंयां
मि थे भैम व्हैगे

कया कन
मिल अब कख जाणा
सब बाट मा मेरु लग गे अब फेर
फिर बी जीकोडी बैठी रे ये दैर
मेरा पहाड़ मा जबै छै अंधेर
मि सिन्कोली अब ऐ जांदू ड्यार
कन उच्चताप हुँयां च मेरु
कन बिरदयूं म्यारु सारू खेळ
भैम व्हैगे भैम व्हैगे
ये पिपला डाला भुंयां
मि थे भैम व्हैगे

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बल मेर तेर टक्कों की गड्ढी

कैल लुकै कैल दबै
कैल छपै खुल्मखुला
राई ना वैका पास बी
राई ना वा मेरा पास बी

टक्कों की गड्ढी टक्कों की गड्ढी
बल मेर तेर टक्कों की गड्ढी

कद्ग राखि
मिल इथे संभळि बल
राई ना ऊ मेरा पास बी
राई ना ऊ तेरा पास बी

टक्कों की गड्ढी टक्कों की गड्ढी
बल मेर तेर टक्कों की गड्ढी

ई अग्ने अग्ने
मि पिछने पिछने
आई ना ई कैक हाथ बी
आई ना ई कैक साथ बी

टक्कों की गड्ढी टक्कों की गड्ढी
बल मेर तेर टक्कों की गड्ढी

क्द्गा इनि पलै मिथे
घौर गौं देश सब छुडे मिथे
अब क्वी नि मेरु पास जी
यखुली रैग्युं मि यख आच जी

टक्कों की गड्ढी टक्कों की गड्ढी
बल मेर तेर टक्कों की गड्ढी

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ये बी यखा कु रच्यु खेल चा

आच-कल म्यारा पहाड़े मा
ढोल दामू की धूम चा
ब्योला ब्योलि ब्यो लग्युं
बरातियों की मौज चा

देसी बिदेसी ब्रांड दारू की
आच-कल खुभ बिक्री चा
नचेडा नच नचेकी तुण्ड
अत पत खुठा लेतेड चा

घाम कु हुयूँ च लत पत
छर छर छयूँ च यख वख
धिंगतालु की थाप मा
कन मचयूँ देक झख छप चा

मद मस्त छईं छे पहाड़
कोक सोडा पानी निट कु यु मेल चा
जियुंदगी यख द्वि दिना की
ये बी यखा कु रच्यु खेल चा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 9 at 7:37am ·

रे मलेथा देक तू बी .......

कया बदली गे
म्यारा पहाड़ों मा
ब्याल मिल फिर देक्यली
कुच नि बदली यख
कुच नि बदली
पैली जनि ही वा रैग्याई
वै हाता मा बी डंडा छ्या
ये हाता मा बी डंडा च
वैल बी मारी मिथे
यैल बी मिथे मऱ्याली
मि थे समझी की बिमारी
म्यारा हात
इनि सदनी रैगे रीता
सड़की की बस मेरी लागि फेरी
आंदोलन बस आंदोलन
म्यारा भग्या म रैगे सदनी
कया बदली गे
म्यारा पहाड़ों मा
रे मलेथा देक तू बी .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with यशपाल सिंह पुण्डीर
June 8 at 7:57am ·

बुरांस खिल्युं चा

बुरांस खिल्युं चा
ये गेल्या देक बुरांस खिल्युं चा
लाल रंगा मा खिल ग्याई देक
देक कन हैंसणुं चा , बुरांस खिल्युं चा

डंडा डंडा मा कांडा कांडा मा
बुरांस खिल्युं चा औ बुरांस खिल्युं चा
अपरी मा देका जख तख देका
नजरी गैं वख तख देखा
पहाड़ सज्युं चा ,बुरांस खिल्युं चा

माया मेरी माया तेरी कैन लगिचा
ढुंगा देशा मा चल देकणु बुरांस खिल्युं चा
हरा हरा पाती जगमगण लगगै बाती
यूँ ह्युं चलूँ चांटी गद्नि का बाटी
भोरीगे साऱ्या घाटी ,बुरांस खिल्युं चा

जिकोड़ो मेरु मेसै कैनु लग्युंचा
तँसूँ तिस बुझाण ऐजा यख बुरांस खिल्युं चा
गलोड़ी का रंग बुरांस का संग
ऐबार छूछा तै थे रैबार पठ्यूं चा
आँखा फूटगे मेरु फिर देकणु ,बुरांस खिल्युं चा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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