Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253654 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Bhuwan Chander Tewari and 2 others
June 5 at 10:53pm ·

जोड़ घटाना की ई जिंदगी मा

जोड़ घटाना की ई जिंदगी मा
अखैर सब कुच घटी ग्याई
जोड़ी जोड़ी कया पाई मिल
जोड़ी जोड़ी कया पाई मिल
अखैर सब कुच घटी ग्याई
जोड़ घटाना की ई जिंदगी मा

कबी गुना व्हाई ये भग्या मा
कबी ये भग्या मा से वा भागी ग्याई
रैंदु कुच ना एक समान यख
बेल बेल मा सब यख बदली ग्याई
जोड़ घटाना की ई जिंदगी मा
अखैर सब कुच घटी ग्याई

राम बोल यख या श्याम बोल
दोई शब्दा को अर्थ यख एक ही व्हाई
कैल समझी ना कैल नि बिंगी
ऊ परित अबोली यख अपोरी रहाई
जोड़ घटाना की ई जिंदगी मा
अखैर सब कुच घटी ग्याई

जोड़ घटाना की ई जिंदगी मा ......................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 3 at 5:23am ·

कुच त बोल्दे

मन मेरु तू बोव्ल जी
भेद जीयु कु अपरू खोव्ल जी
देक इन ना तू भाना बना
य्खुलि बैठ ना अपरी छँवि तू लगा
मन मेरु तू बोव्ल जी
भेद जीयु कु अपरू खोव्ल जी

सब कुच च त तैमा दडियुं
किलै की च मन तू बस भैर बस्युं
इन सीकेसैरी ना कैरा जी
किलै लगा दील तिल अपरा मा पैरा जी
मन मेरु तू बोव्ल जी
भेद जीयु कु अपरू खोव्ल जी

तू कख कख रे मेरु जीयु भागी रे
हे पहाड़ी तू रैगे सदनी अभागी रे
तिथे यख कख ना मिल ध्याड़ी जी
कन कै तू खालु आच क्वादु बाड़ी जी
मन मेरु तू बोव्ल जी
भेद जीयु कु अपरू खोव्ल जी

बंदरों सुंघरूं सब स्यारी उजाड़ी रे
बांजा पौड़ीगे आच बाची पुंगड़ी सारी रे
अब कया करलु जीकोडी तू मेरु जी
सबु तिकड़म व्हैगे कंडली जनि घैरु जी
मन मेरु तू बोव्ल जी
भेद जीयु कु अपरू खोव्ल जी

मन मन मा सदनी इनि छँवि दडी रैगे
भेद मन का कबी ना ऐ मन कु भैर ऐगे
जियुंदगी मेरी इनि पहाड़ मा गै जी
कैल नि जाणी कैल नि यख मी समझी जी
मन मेरु तू बोव्ल जी
भेद जीयु कु अपरू खोव्ल जी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with यशपाल सिंह पुण्डीर
June 1 at 9:01am ·

देक कण लुटणा छिन

देक कण लुटणा छिन … २
जन व्हालु ये व्हैगै मेरु उत्तरखंड चीन
अापदा का बी लोको थे नि छौडि
देक कन ये निर्भगी जीकोडी का छिन

क्द्गा टक्का को पौडि यख एक कमरा बल
बतावा क्द्गा किलो रुपया यख दूध
ग्यारा गुलाब जामुन कु च सवाल
बिरयानी, चिकन ,बिशलरी कु स्नान

कन तेरु जमा अब मोरीगे गे
बकासुर कया तेर पोट्गी मा जगीगै
उत्तरखंड अधिकारियो कु देक मेनू कार्ड
मेरु व्हैगे उत्तराखंड कु अब बुरु हालु

करोड़ों का तू करगे इन वार पार
वै बी मेरा कैलाश बाबा केदार को घार
भूख पियाश घैल लोक नि देके ते हाल
तेन लगे दे फर्जी बिलों की भरमारा

क्ख्क भोरिलो ये तू पाप
क्द्गा लीलू तू लोकों को सर्राफ
अब बाथ अब कया हुलु तेरु आच
तेरु नि रैगे अब भौल परबात

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षितकविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with यशपाल सिंह पुण्डीर
June 1 at 9:01am ·

देक कण लुटणा छिन

देक कण लुटणा छिन … २
जन व्हालु ये व्हैगै मेरु उत्तरखंड चीन
अापदा का बी लोको थे नि छौडि
देक कन ये निर्भगी जीकोडी का छिन

क्द्गा टक्का को पौडि यख एक कमरा बल
बतावा क्द्गा किलो रुपया यख दूध
ग्यारा गुलाब जामुन कु च सवाल
बिरयानी, चिकन ,बिशलरी कु स्नान

कन तेरु जमा अब मोरीगे गे
बकासुर कया तेर पोट्गी मा जगीगै
उत्तरखंड अधिकारियो कु देक मेनू कार्ड
मेरु व्हैगे उत्तराखंड कु अब बुरु हालु

करोड़ों का तू करगे इन वार पार
वै बी मेरा कैलाश बाबा केदार को घार
भूख पियाश घैल लोक नि देके ते हाल
तेन लगे दे फर्जी बिलों की भरमारा

क्ख्क भोरिलो ये तू पाप
क्द्गा लीलू तू लोकों को सर्राफ
अब बाथ अब कया हुलु तेरु आच
तेरु नि रैगे अब भौल परबात

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बालकृष्ण डी ध्यानी
9 hrs · Edited ·

मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया
नये सोच नये विचारों को गढ़ता
मै उस पर चलता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

पुराने को सँजोना था नये को अपनान था
मै उस में समन्वय को बिठाने को
मै उस पर चलता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

इस पथ पर और भी पहले पथिक चले होंगे
एक सड़क जो उनके क़दमों से बनी होगी
मै उस पर चलता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

मेरे पीछे पीछे और आयेंगे ये मुझको यकीन है
इस के पथ पे बिछे उन काँटों को
मै चुनता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी 
June 20 at 1:14pm ·

देकि रंग ये शहरा को

देकि रंग ये शहरा को
भुली गे भुल्हा रंग अपरू डैरा को

बरमंड चढ़ी गे अब ये जब टक्का जी
कैथे याद आणा कुच अपरू कका जी

दिल्ली मुंबई अब सारू भैर देश विदेश
प्रवासी बनिगे अपरू उत्तरखंड को हर बच्चा जी

सुप्नीय भोरी आँखों मा बल जब उड़णा का
बल कैल आणा यख भुंया पड़ी कांटा मिटणा को

सिकेसारी किर्मोला का रंगा सरया पहाड़ बिछ्यां
बल तैर बैठ्या छन सब का सब वैमा हिटणा को

मि ध्यानी बी वै बाटा मा हिटयूं
कै गिच से ध्यै लगूं ऊँथे परती की पहाड़े आणा को

देकि रंग ये शहरा को
भुली गे भुल्हा रंग अपरू डैरा को

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 12 at 5:58pm ·

ईं भरी दिल्ली मा

ईं भरी दिल्ली मा दिल्ली मा
जख देका वख एक उत्तराखंडी दिक् जालु
देक कि तेथे रे पहाड़ी ऊ बौग व्है जालु
ईं भरी दिल्ली मा

क्वी नि कैदु यख बात कैसे
कब और्री कनकै कि व्हैली अब मुलाक़ात तैसे
बिरनु बिरनु व्हैगे रे मुल्की बल अब तू
ईं भरी दिल्ली मा

बल अब लाट साहब व्हैगे तू
सूटबूट टै कु बल अब रखवालदार व्हैगे तू
पछाण कि बी मीथै अब अजाण व्हैगे तू
ईं भरी दिल्ली मा

कन तेर जामा अब मोरीगे
कन तैसे अपरू पहाड़ बल अब छूटिगे
पास रैकी बल अब तू दूर व्हैगे
ईं भरी दिल्ली मा ईं भरी दिल्ली मा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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फिर देका सुंदर ऐ फजल व्है जालि…।

फिर ऐग्याई हो अ हो अ
फिर ऐग्याई
ऐग्याई ये फजल
म्यारा पहाड़ो मा
म्यारा उकाळि उन्दरु मा
डाँडो को घारू मा
फिर ऐग्याई हो अ हो अ
ऐग्याई ये फजल

कन छै ग्याई हो अ हो अ
कन छै ग्याई
छै ग्याई ये रे फजल
ये सरया अकास मा
भर फाल मार चखुला सरग घर मा
फिर ऐग्याई हो अ हो अ
ऐग्याई ये फजल

उठ गै सरी धरती
कण उजाळु रे छैगे
जियु मेरु ये सरीर मेरु
कन जगी गे रे
फिर ऐग्याई हो अ हो अ
ऐग्याई ये फजल
.
अंधार ये छोड़ि कि
ऐगे ऊ सब दूर गई बाटा मोडिकी
क्वी नि बैठ्यूं अब यख हेर मा
सब बस्या अब अपरा अपरा डेरा मा
फिर ऐग्याई हो अ हो अ
ऐग्याई ये फजल

सुप्निया म्यार देख्या
जन इनि सच व्है जाई
मेरा पहाड़ों राम राज्य ऐ जाई
फिर देका सुंदर ऐ फजल व्है जालि…।

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हे कालिंका माँ तेर ढोर

हे कालिंका माँ तेर ढोर
मेरु सोर बस बल माँ तेर ओर
हे अल्मोड़ा की बालकुँवारी
जाग्रत व्हैजा माँ मेरु छोर

लखोरालखाल माँ बीरोंखाल
दैनि व्हैजा तू ये पुरू कुमो-गढ़वाल
राखी सबका माथा मा माँ तेरु हात
हम छ तेरा लाल माँ तू हमरी मात

कद्ग कद्ग दूर भटी माँ अयं तेरा घार
दर्शन दे बोई तेरु व्हालु हम पर उपकार
हाक देणु छे मि माँ कैर पूरी मेर पुकार
हर बरसा आलू मि आलू तेरु द्वार

हे कालिंका माँ तेर ढोर
मेरु सोर बस बल माँ तेर ओर
हे अल्मोड़ा की बालकुँवारी
जाग्रत व्हैजा माँ मेरु छोर

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देकि छे कबी तेर नजरि मा मिल

देकि छे कबी तेर नजरि मा मिल
मि मि तब वैमा दिके छे

ना देकि मिल तब कैमा बी
जब तेर नजरि मेर नजरि से मिलि छे

रूसै गैनी किले ऊ मैसे तेर नजरि
मेरी खतै तू ऐकि मि बथै सुनै जै

बौल्या बण्यूं तेर बाण मि फिरदु रैंदु
तेर मेर बाट तू फिर ऐकि मीथै बथै जै

देकि छे कबी तेर नजरि मा मिल
मि मि तब वैमा दिके छे

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हे कालिंका माँ तेर ढोर

हे कालिंका माँ तेर ढोर
मेरु सोर बस बल माँ तेर ओर
हे अल्मोड़ा की बालकुँवारी
जाग्रत व्हैजा माँ मेरु छोर

लखोरालखाल माँ बीरोंखाल
दैनि व्हैजा तू ये पुरू कुमो-गढ़वाल
राखी सबका माथा मा माँ तेरु हात
हम छ तेरा लाल माँ तू हमरी मात

कद्ग कद्ग दूर भटी माँ अयं तेरा घार
दर्शन दे बोई तेरु व्हालु हम पर उपकार
हाक देणु छे मि माँ कैर पूरी मेर पुकार
हर बरसा आलू मि आलू तेरु द्वार

हे कालिंका माँ तेर ढोर
मेरु सोर बस बल माँ तेर ओर
हे अल्मोड़ा की बालकुँवारी
जाग्रत व्हैजा माँ मेरु छोर

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