Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253881 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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छप छपि, दुक दुकी

छप छपि, दुक दुकी
क्ख्क लुकी हुली ये खुसी
झट दौड़ी कि ऐजा ये भूली
रौडी ले सुकी कुळैं पात्ति

कट कटी ,मूट मूटि
क्ख्क लुकी हुली ये हैंसी
कांडों कंडो मा हैंसदा फूल
तू झट देखि ऐजा ये भूली

रट रटी बक बकि
ये गीची किलै ना अब थकी
छँवि मा तू छँवि मिस्ल्दे
ऐकी बैठी जा बैंठलु पंक्ति

सज सजी रच रची
क्ख्क जाणी छे तू मेर भूली
रौडी रौडी कि हैंसि हैंसि की
बचै बचै कि कटै जाली ये जिंदगी

छप छपि, दुक दुकी ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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त ऐ बची जाली

पैडि लियां रोज अपरी गढ़वाली
गढ़ भाषा च ये न्यारी पियारी
दोई आखर तुम रोजी पैडि लेला
बिंगी लेला बोली लेला त ऐ बची जाली

निथर ये भी बोगी जाली
पलायन दगडी भागी जाली
अपर नौनु नौनी दगडी रे
दगड्या तू बचाले त ऐ बची जाली

देक बुरु ना मन्या भैजियों
देक दुसरु क्वी भी नि आन हुलु
हुमन कन जै भी अब कन जी
कैकु सारू नि लाग्न जी त ऐ बची जाली

सोची ले तू अब समझी ले
अपरी माटी अपरी भाषा मा बोलिले
बचे बचे अपरुँ दगड रे भेजी
इतगा स काम तू कैजे त ऐ बची जाली

बालकृष्ण डी ध्यानी
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तेर कंडो मा

तेर कंडो मा
खिल्दा फूल छों मि ऐ माँ
तू इनि सम्भली रखी सदनी
अपरी गोदी मा मिथे ऐ माँ
तेर कंडो मा...............

ना अपरी से मिथे कभी दूर कैर
ना कभी नारज व्है तू ना गुस्सा कैर तू माँ
तेर फ़िक्र मि भी कैदु ऐ माँ
पर अपरी माया थे जातौ बतौ नि सक्दु
तेर कंडो मा...............

तेरी आँखि सदनी में दगड बचंदि रैंदी
जीकोडी धड़ धड़ तेरी मिथे धिर बंधोंदी रैंदी माँ
तेर हाक सुनी की मि झट दौड़ी ते पास ऐजांदु
भूकी मिटदी ना दोई घास तेरा हाथा कु नि खान्दु
तेर कंडो मा...............

तू इनि सदनी अपरा हाथ मेर मोंड मसल दी रे
मि तेर दोइया खुठड़ियों मा सदनी इनि पौड़ी रालों
मि थे मिल जालु मेरु सर्ग यखी ये भुंया मा माँ
मि तेर खुठीयूं को धोयुँ पाणी जब रोज प्यालो
तेर कंडो मा...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
Yesterday at 12:32am ·

मुझको अब अपने पहाड़ों में से तुम

मुझको अब अपने पहाड़ों में से तुम आवाज़ ना दो,आवाज़ ना दो
जिसकी आवाज़ से मै लौटा आऊं वो मुझे प्यार ना दो वो प्यार ना दो

मैंने अपने दम पर कुछ कर गुजर ने की कसम खाई है
क्या खबर तुमको मेरे इस पथ पर कितनी कठनाई है
मैं लौटा आऊं कसम खा के तुम ऐसा ना करो तुम ऐसा ना करो

दिल ने मेरा सोचा है आस मेरी बांध गयी
मेरे हाथों की किस्मत की लकीर आज मुझसे कह गयी
अब इस तूफ़ान को तुम साहिल का किनारा ना दो किनारा ना दो

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी w
हे रे मना अ

हे रे मना अ..... मेरो मना अ.....
कया लाई तिल कया पाई तिल
बल कुच ना व्है हासिल
हे रे मना अ..... मेरो मना अ.....

अटक्यूँ राई अलझ्युं राई
कैकु बान तु रे इनि गिज्युं राई
किलै और्री कैकु खातिर रे
हे रे मना अ..... मेरो मना अ.....

सरग मा तू कभी खूब उडी
यख वख तिल खूब मार उडी
कभी फूलों मा कभी कांडों मा रे
हे रे मना अ..... मेरो मना अ.....

एक जगह किले दडयूं ना राई
लकपक …२ छपाक तिन किले काई
बल तिन जिंदगी को बारा बजै द्याई रे
हे रे मना अ..... मेरो मना अ.....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 5 at 9:21pm ·

बड़ बड़ी मेरी बोई की

बड़ बड़ी मेरी बोई की
पियारी सी छुईं में मि डूब जांदू जी

पियारी सी छुईं में मि डूब जांदू जी
बड़ बड़ी मेरी बोई की

मेथे तेन जीबन दी
दी द्वि साँसों को सारो
तेरु द्वि दुधा को धारु बोई जी
बरसे इनि अमृत सारो
अंख्यों कू मि तारो तेरु
सुणा दे सारो कथा तेरी
बैथ्यूछों तेरु खुथु धरु

बड़ बड़ी मेरी बोई की
पियारी सी छुईं में मि डूब जांदू जी

पियारी सी छुईं में मि डूब जांदू जी
बड़ बड़ी मेरी बोई की

एक ही बेल मा वा
काम धानी अनेक कै जांदी वा
द्वि हाथो द्वि अन्खोंयों
में थे सुप्निया हजार दे जांदी वा
कर करी ऊ नोटों छुईं दगडी
मिथे जीना सिखांदी वा

बड़ बड़ी मेरी बोई की
पियारी सी छुईं में मि डूब जांदू जी

पियारी सी छुईं में मि डूब जांदू जी
बड़ बड़ी मेरी बोई की

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी 
September 4 at 10:49am ·

पढ़े लिखे कया पाई तिल

पढ़े लिखे कया पाई तिल
बल जब अनपढ़ ही राई दिल

मेर जिंदगी कू फाड़ी बिल
दोई घास कू गफा तू गैई गिल

झिलमिल -२ व्हाई झिल
लात खुटे खैई क़मरी हैगे भिर

तेर पढ़े नि मेर घर लड़ै लगे
स्कुल गुरूजी घोर बोई बाबो नि छलै

सच बोल दे ये पहाड़ ल कया पाई बल
तू बिदेश मा मि यख पड़यूँ ठर

पढ़े लिखे कया पाई तिल
बल जब अनपढ़ ही राई दिल

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 3 at 3:09pm ·

कख भति लाई तिल ये चांदी को हिमाला

कख भति लाई तिल ये चांदी को हिमाला
श्वेत रंग मा रंगदेनी तिन कर दियो कमाल
ये मेरो पहाड़ा मेरो पहाड़ा …… २

अल्जाद्याई दिल तिल ये कांडों का घारा
बारा मैना फुटिगे यख बारा तरका का धरा

कख भति लाई तिल ये मखमली मौल्यारा
हैरा रंग मा रंगगैनी यख हैरा हैरा बोग्याला
ये मेरो पहाड़ा मेरो पहाड़ा …… २

परित इन जमैगैनी तिल गीत इन लगैगैनी
लोककला ये मेर पहाड़ का तू खूब नचैगैनी

कख भति लाई तिल ये सोना कू श्रृंगारा
घाम इनि झल्कनु जनि हो गुलबंद कु चम्कारा
ये मेरो पहाड़ा मेरो पहाड़ा …… २

नका नथुली कू घेर कथा ये अब लगनी चा
माया की गेढ़ मा मिथे बांध ले जानी

कख भति लाई तिल ये ज्वानि कू उमाला
ते बान खिंडी खेली मिल अब ये सारू गढ़वाल
ये मेरो पहाड़ा मेरो पहाड़ा …… २

कख भति लाई तिल ये चांदी को हिमाला
श्वेत रंग मा रंगदेनी तिन कर दियो कमाल
ये मेरो पहाड़ा मेरो पहाड़ा …… २

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 2 at 2:00pm ·

मेरु पुंगडीयुं कू प्याज

मेरु पुंगडीयुं कू प्याज
तू छूछा किलै हुंय च नाराज
रुपै मिल तै थे बड़ेई भी मिल
फूल खिले ते पर खंदे की तब पाई मिल
मेरु पुंगडीयुं कू प्याज …

में से जबेर बिछड़ी गै तू प्याजा
तै बगत छे तू भुंय ही भुंय मेर गैल्या मेरा मित्रा
दूर जैकी तिल कद्ग अबरी दा आसमान च छुयाँ
बाथ दे तू अब बैठ्युं कै काला बाजार
मेरु पुंगडीयुं कू प्याज …

समान्य नजरि मा मचेगे तू रगरायाट
उथल पुथल तू कैगै उंका खाणा कु भांड
मैना कु बजट मा लगै ई दिल तैंन ऐसा उचाट
कन ये दिस जाल उबरयूं च अब ये सवाल
मेरु पुंगडीयुं कू प्याज …

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 30 at 12:04pm ·

कन नजरि बदली ये बोई कन नजरि बदली या

कन नजरि बदली ये बोई कन नजरि बदली या
१६ बरस ज्वानि कु लागि कन नजरि बदली या

फूली बुरांसा ये पहाड़ बोई कन नजरि बदली या
अंख्यों देखेन सबुका हवस कन नजरि बदली या

कांडों मा गिजी च जिंदगी बोई कन नजरि बदली या
येमा और्री अब अल्झी गेन कन नजरि बदली या

येई जब ज्वानि कू उमाल बोई कन नजरि बदली या
येन ही मचैई सब यख बवाल कन नजरि बदली या

जबै निबदलली ई नजरि बोई कन नजरि बदली या
राम राज नि आलू ये पहाड़ कन नजरि बदली या

बालकृष्ण डी ध्यानी
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