Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253807 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरा पहाड़ की बात और कुच चा

मेरा पहाड़ की बात और कुच चा
नि बोल सकदु ना बिंग सकदु विंको स्वाद कुच और्री चा
मेरा पहाड़ की बात और कुच चा

शीर्ष पर हिमाला बस्युं चा
यूँ ह्युं चुलं यूँ डंडा कन्डोंमा घिरियूं चा
क्या बात कैरुं विंकी मि विंकी बात ही कुच और चा
कन बगनी गंगा की धारा
छ्ल छ्ल क नु मेरु पियार कुच और चा

मेरा पहाड़ की बात और कुच चा
नि बोल सकदु ना बिंग सकदु विंको स्वाद कुच और्री चा
मेरा पहाड़ की बात और कुच चा

ये नीलू सरग ये खुलु आक्स
ये रंगमत यख चौधिस् मौल्यार
हर एक फूलों मां वा हैंस्दी रैंदी विंकी बात ही कुच और चा
ढोल दामो झुमैलो छोलिया कि ये बयार चा
मेरु मुलका मेर लोक नृत्य गीतों कु रास्यांण चा

मेरा पहाड़ की बात और कुच चा
नि बोल सकदु ना बिंग सकदु विंको स्वाद कुच और्री चा
मेरा पहाड़ की बात और कुच चा

यख भगवती कू मंडाण
पितृ देबों कू ठों और्री जागर कू जगाण
ब्यो बारात मेल खोलों पिंगली जलेबी बाल मिठै विंकी बात ही कुच और चा
मीठा किन्गोड़ा काफल हिंसोलों कू ये पहाड़
मेरु मैता सौरास कु एक जनि लाड पियार

मेरा पहाड़ की बात और कुच चा
नि बोल सकदु ना बिंग सकदु विंको स्वाद कुच और्री चा
मेरा पहाड़ की बात और कुच चा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नि बिसरलो नि बिसरलो

नि बिसरलो नि बिसरलो
द्वि अक्टूबर ये मेरु उत्तराखंड

कन बिसरलो कन बिसरलो
मातृ जननी को लाज मेरु खंड

कैल बिसरण देन कैल बिसरण देन
निर्दोष मनखी पर ये अत्त्याचार

ऐग्याई ऐग्याई फिर कलो दिन
जिकडो च सबकु खिन -भिन

नई चेनु हम थे तुमरी शोक सभा
मुलायम मायवती थे तू दिला सजा

नि बिसरलो नि बिसरलो
द्वि अक्टूबर ये मेरु उत्तराखंड

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 30 at 5:23pm ·

भुल्दा मनखी

जिकोड़ो दियू ये माया संभाले ना
जुनि थे ये बाटा भाये ना …… २

दूर बाटा खूब भागी ये सहेरा कू …… २
मन नि लागि यख अखेरा कू

उड़ दा चखुला बल उड़ा दा जा
तिल संसार कथये न समझी पायो रे

भुल्दा मनखी बल तू भुल्दा जा
तिल अपरू परायु नि जनि पायो रे …… २

द्वि दिना की ये दुनिया रे …… २
फिर बी अक्ल दाढ़ तेरी नि आये रे

बगदा पानी बल बगदी जा
कैल तेथे यख ना समझी पायो रे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 29 at 9:48am ·

व्हैग्याई डिजिटल

व्हैग्याई डिजिटल
देश व्हैग्याई डिजिटल
फेसबुक अपरा मुखडी
मुखडी देख रंग ग्याई
व्हैग्याई बल डिजिटल … २

पाणी नि मिल्नु
बिजली नि अब तक ऐई
बांज पौड़ी गे सारी पुंगड़ी
बल कैल चरण ये मा हैल
व्हैग्याई बल डिजिटल … २

भूख नंगा अब भी छिन
रोजगार क्ख्क च जरा बोल्दिन्
बेरोजगारों की फौज खड़ी
स्मार्ट मोबाईल हौस बड़ी
व्हैग्याई बल डिजिटल … २

मिल त कुछ नि बोलण
अब त डिजिटल ही चलण
देखा मुखडी अपरी अपरी सजै
कन देखेणु भुलु मि भी बतै
व्हैग्याई बल डिजिटल … २

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 27 at 8:19pm ·

देखी छे क्या तिन

देखी छे क्या अ अ अ तिन न न अ
इन मौल्यार कख बी इन उल्यार कख बी
देखी छे क्या तिन

मुखडी विंकी बात कैनी देख,मेरु जीकोडी दख-दख्याट रे
मेरु जीकोडी दख-दख्याट रे
कैल नि बिंगी माया विंकी, मेरु माया कु रगरायट रे
मेरु माया कु रगरायट रे
मैसे ही तो बात कैर मैसे ही तू भेंट कैर
सुबेर सुबेर तू मैसे ही तू सुरवात कैर
देख ना तू कै और्री मेरो आँखा दगडी अपरू आँखा चार कैर

नि राई जियु मेरु पास ,कख लुक्युं हुलु वो आज रे
कख लुक्युं हुलु वो आज रे
उजाली रूप तेरु चाँद जनि ,चकोर सी किलै हुग्युं आज रे
चकोर सी किलै हुग्युं आज रे
मि मी नि राई कख हर्ची गयुं मि आज रे
खोजणा मि थे मेरा अपरा पराया
नि रेंगयुं मि अपरू का पास रे, नि रेंगयुं मि अपरू का पास रे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 26 at 8:17pm ·

कन बरखा पोड़ली ,कब बरखा पोडाली

कन बरखा पोड़ली ,कब बरखा पोडाली
ना तोड़ा दीदा,ना इन यूँ कटा ,यूँ डलियुं …… २

बरखा नि पौडी बल देबता रुस्युं चा
ऐ बार पाणि बिस्युं चा बल देबता रुस्युं चा
बांज पौड़ी धरती बल देबता रुस्युं चा
अपरू घार अपरू देश तिसालु बल देबता रुस्युं चा

नि मानी मिल मेर गलती बल देबता रुस्युं चा
बस मेर च ये हलगर्जि बल देबता रुस्युं चा
बस चल ल मेर यख मर्जी बल देबता रुस्युं चा
बस मि छों और्री कोई ना बल देबता रुस्युं चा

बल चेत जा रे अभी कख देबता रुस्युं चा
तेर निकल जाल रे सब गरमा कख देबता रुस्युं चा
जब तिसलु व्है जाली ये धरती कख देबता रुस्युं चा
बस मोरी जालू तब प्राणी कख देबता रुस्युं चा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कन बिसरलो कन बिसरलो
मातृ जननी को लाज मेरु खंड

कैल बिसरण देन कैल बिसरण देन
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ऐग्याई ऐग्याई फिर कलो दिन
जिकडो च सबकु खिन -भिन

नई चेनु हम थे तुमरी शोक सभा
मुलायम मायवती थे तू दिला सजा

नि बिसरलो नि बिसरलो
द्वि अक्टूबर ये मेरु उत्तराखंड

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भुल्दा मनखी बल तू भुल्दा जा
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व्हैग्याई डिजिटल
देश व्हैग्याई डिजिटल
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पाणी नि मिल्नु
बिजली नि अब तक ऐई
बांज पौड़ी गे सारी पुंगड़ी
बल कैल चरण ये मा हैल
व्हैग्याई बल डिजिटल … २

भूख नंगा अब भी छिन
रोजगार क्ख्क च जरा बोल्दिन्
बेरोजगारों की फौज खड़ी
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मिल त कुछ नि बोलण
अब त डिजिटल ही चलण
देखा मुखडी अपरी अपरी सजै
कन देखेणु भुलु मि भी बतै
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मुझे मेरे जिंदगी का भागीदार

उसकी ओर मेरे कदम
अपने आप बढ़ जाते हैं
मुझको समझ नहीं आता
लेकिन रस्ते भी भावना समझते हैं
ऐश्वर्य की चाह मुझको
सपने मेरे साहसी हैं
ऊँची उडी आकाश पर टकराये
वो भी अब बलशाली हैं
किताबों का बोझा मेरा
उठाये और सराये क्या ?
उडी मार के लड़खड़ाये
वो मुझ से संभलेगा क्या ?
निशाना अचूक स्थिर उसके हाथ
तीक्ष्ण विचारों के तीर
छेदन किया क्या उसके बुद्धी को
मेरे धनुष की वो तान
खिल गये हास्य उसके
नम्रता के शृंगार
उसके तेजस्वी आँखों में दिखे
मुझे मेरे जिंदगी का भागीदार

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