Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253913 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता नं-28
___________

जन बगुला कि नज़र माछों फर्
बिराला कि नज़र बस मूसों फर्
जन कुकरा कि नज़र हडगों फर्
कांणा कि नज़र रोटि का टुकड़ों फर्
उन्नि वूंकि भि नज़र सिर्फ वोट बैंक फर्

जन गुर्रा कि नज़र बिचरा मिंढकों फर्
छिप्वड़ा कि नज़र कीड़ा-मकड़ों फर्
जन सौला कि नज़र मुंगर्र्यट्ट फर्
स्याला कि नज़र कुल कुखड्यट्ट फर्
उन्नि वूंकि भि नज़र सिर्फ वोट बैंक फर्

जन बाघा कि नज़र चरदु बखरु फर्
गरुड़ा कि नज़र म्वरयुं-मुर्र्युं ढाँगु फर्
जन रिक्का कि नज़र रिक्वाल फर्
सुंगरा कि नज़र कुल ग़िज़ार फर्
उन्नि वूंकि भि नज़र सिर्फ वोट बैंक फर्

जन भूखा कि नज़र एक गफ्फ़ा फर्
बंण्यां कि नज़र बस अपुड़ नफ्फ़ा फर्
जन दरोल्या कि नज़र मुर्गा कि टांग फर्
बांमणा कि नज़र सिर्री अर् रांन फर्
उन्नि वूंकि भि नज़र सिर्फ वोट बैंक फर्

जन सासुकि नज़र ब्वारि कु फैशन फर्
नौंना कि नज़र माता जि कि पेंशन फर्
जन ब्वारि कि नज़र मैता कि खबरों फर्
नात्यों कि नज़र चॉकलेट कुरकुरों फर्
उन्नि वूंकि भि नज़र सिर्फ वोट बैंक फर्

नोट:- इस कविता का दादरी कांड (U.P.) से कोई सम्बन्ध नहीं है।

©® सर्वाधिकार: धर्मपाल रावत
ग्राम- सुन्दरखाल, ब्लॉक- बीरोंखाल
जिला- पौड़ी गढ़वाल-246169.

05.10.2015

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पाटी...पुत्या

घुट्या पुत्या पाटी अर बुखल्या
कम्यडु खडिया हरचिन दगडया
कच्ची एक पक्की एक धारों धारी गेन
एल.के जी यू.के.जी नर्सरी ह्वेन
ईमला निबंध हरची सुलेख
अंग्रेजी क जमन मा हरची आलेख
पहाडा बैराखडी हरची सिलेट
बुये बाब ह्वेगेन मम्मी डैड
चटाई हरची यैगेन कुर्सी
बगदी हवा मा मौडर्न गुरजी
गुणा भाग क कठिन सवाल
मौबेल मा हल करना छन गुरजी
हरची पंद्रह अगस्त २६ जनवरी
गांधी जयंती की प्रभात फेरी
शहीदों की हुंदी छै गौं गौं मा जय जयकार
गौं गौं मा घुमदी छे स्कूल्यों की टोली
पैली निशुल्क शिक्षा लालटेन बाली क
रात मा भी पढांद छ्या गुरजी
अब त चंट छात्र भी तबी पास ह्वालु
जब ट्युसन पढण कुन गुरजी म जालु
घुट्या पुत्या पाटी बुखल्या
कम्यडु खडिया हरचैन दगडया
कच्ची एक पक्की एक धारों धारी गेन
एल.के जी यू.के.जी नर्सरी.......

सर्वाधिकार सुरक्षित @लेखक सुदेश भटट(दगडया) की प्रकाशनाधिन पुस्तक "धै"बिटी साभार

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरी बात राई में दगडी ..........

मेरी बात राई में दगडी
वहै गे प्रभात देख कै दगडी
कण रात ग्याई मि जंणदू
अपरू दुःख मि अफि सरदु
मेरी बात राई में दगडी ..........

बैठ्युं राई अपरि मि
कोई नि आई यखरि मा मि
कैल नि अब मि ध्यै लगे
दूर भ्तेकी बी वेळ नि बचे
मेरु स्वास में मा राई
में दगडी ही वा यखुली ग्याई
मेरी बात राई में दगडी ..........

ये अंधारु उजाळु को खेल
बिठे नि पाई मि विं दगडी मेल
झुक झुक कैकि दिस ऐई गैई
छूटी ग्याई मेर ज्योंदगी की रेल
सज नि आई या खेल नि पाई
दूर बैठिक मि बस देख्दी राई
मेरी बात राई में दगडी ..........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ईशारा से मैं बुलन्दी

आँखि दगड आँख मटकण दि
ईशारा से मैं ऊ बुलन्दी
औ बांदा ईशारा से मैं बुलन्दी
बता दे ये बांदा तेरु नौ क्या च

कण छुईं लगान्दी दिल लुछी जांदी
माया से भोरी ऐ बोरी
मिल अपरी कंधामा ते सरयाँण
बता दे ये बांदा तेरु गौं क्या च

कण तै पर माया लगाण
कण तै थे आधु बाटू पर अढ़ण
अपरी आप समझे दे मिथे
छुछि अपरू जियु को भेद बता दे

ईशारा से मैं बुलन्दी
हे बांदा मे ईशारा से मैं बुलन्दी
ईशारा से मैं बुलन्दी ……ईशारा से मैं बुलन्दी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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नि बिसरलो नि बिसरलो

नि बिसरलो नि बिसरलो
द्वि अक्टूबर ये मेरु उत्तराखंड

कन बिसरलो कन बिसरलो
मातृ जननी को लाज मेरु खंड

कैल बिसरण देन कैल बिसरण देन
निर्दोष मनखी पर ये अत्त्याचार

ऐग्याई ऐग्याई फिर कलो दिन
जिकडो च सबकु खिन -भिन

नई चेनु हम थे तुमरी शोक सभा
मुलायम मायवती थे तू दिला सजा

नि बिसरलो नि बिसरलो
द्वि अक्टूबर ये मेरु उत्तराखंड

बालकृष्ण डी ध्यानी
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भुल्दा मनखी

जिकोड़ो दियू ये माया संभाले ना
जुनि थे ये बाटा भाये ना …… २

दूर बाटा खूब भागी ये सहेरा कू …… २
मन नि लागि यख अखेरा कू

उड़ दा चखुला बल उड़ा दा जा
तिल संसार कथये न समझी पायो रे

भुल्दा मनखी बल तू भुल्दा जा
तिल अपरू परायु नि जनि पायो रे …… २

द्वि दिना की ये दुनिया रे …… २
फिर बी अक्ल दाढ़ तेरी नि आये रे

बगदा पानी बल बगदी जा
कैल तेथे यख ना समझी पायो रे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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दूर यंहा इस परदेश में

दूर यंहा इस परदेश में
चल आज तुझे अपनों से मिला दूँ
बैठे बैठे आज तुझे मैं
अपने देश पहाड़ से मिला दूँ

मेरे शब्द तब तृप्त होंगे
आँसूं तुम्हारे इन पर जब दिल से बहेंगे
सुनते रहना और सुख पाना
बीते पल जब तुम्हें आ के मिलेंगे

बीच बीच में तुम अब हंस भी लेना
इतना सुन्दर गहना तुम यूँ ना खोना
बनाया खिलाया है इसे अपने पहाड़े ने
प्रति रूप हो बस तुम उस दर्पण के

अंतिम पंक्ति में बस इतना कहना है
सोच तुमने क्या दिया है बस लिया है
देने की भावना जब तक ना जागेगी
व्यर्थ मेरा लिखना तुम्हरा सुनना है

दूर यंहा इस परदेश में ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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उत्तराखंड मेरा

उत्तराखंड मेरा उत्तराखंड मेरा
अभिमान मेरा स्वाभिमान मेरा

कुमाऊंनी-गढ़वाली भाषा मेरी
मस्तक पर देश के प्रेम की वो रेखा

हिमालय पहाड़ों की ये श्रेणीयाँ
पहाड़ी सीने में बजती है वो वीणा

पराक्रम की ये भूमि मेरी
शूरवीर की नहीं है यंहा कमी

माधव भंड़री का इतिहास बोलता है
चन्द्रसिंह गढ़वाली चंदा बन डोलता है

सुनते हैं रमी बहूरानी की हम गाथा
कितने सर झुकते हैं बद्री-केदार के द्वार

जाती धर्म यंहा पर अनेक हैं
रहते हैं बन के सदा हम एक यंहा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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आज की बात कुछ और्री च

आज की बात कुछ और्री च
तुमरो साथ कुछ और्र च

तुम बोल्दिना, मुख खोल्दिना
ये मुलकात कुछ और्र च
आज की बात कुछ और्री च

बैठी रयां दगडी म्यारा तुम
तुमरो पियार कुछ और्र च
आज की बात कुछ और्री च

बिंग नि सकदु बोल नि सकदु
ये जीयु की बात कुछ और्र च
आज की बात कुछ और्री च

ढुंगा गारों को मेरो संसार
मयाल्दु मेरु पहाड़ कुछ और्र च
आज की बात कुछ और्री च

आज की बात कुछ और्री च
तुमरो साथ कुछ और्र च

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
8 hrs ·

मुल्क बणाई

कैका बणा मुल्क बणाई कै बणा
छोड़िकि जाणा छन किलै सब भाई कै बणा

कैका बणा गोली मिल यख खाई कै बणा
तेरा आंख्युं ल बल आंसूं चुलैई कै बणा

कैका बणा मेरो रौंतेलों मुल्का कै बणा
अप्रि ब्यथा वैल खुद किलै लगैई कै बणा

कैका बणा मिन भाणा बनेई कै बणा
कैथे सुणाण मिल यकुली हे राई कै बणा

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