दूर यंहा इस परदेश में
दूर यंहा इस परदेश में
चल आज तुझे अपनों से मिला दूँ
बैठे बैठे आज तुझे मैं
अपने देश पहाड़ से मिला दूँ
मेरे शब्द तब तृप्त होंगे
आँसूं तुम्हारे इन पर जब दिल से बहेंगे
सुनते रहना और सुख पाना
बीते पल जब तुम्हें आ के मिलेंगे
बीच बीच में तुम अब हंस भी लेना
इतना सुन्दर गहना तुम यूँ ना खोना
बनाया खिलाया है इसे अपने पहाड़े ने
प्रति रूप हो बस तुम उस दर्पण के
अंतिम पंक्ति में बस इतना कहना है
सोच तुमने क्या दिया है बस लिया है
देने की भावना जब तक ना जागेगी
व्यर्थ मेरा लिखना तुम्हरा सुनना है
दूर यंहा इस परदेश में ...............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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