क्या बोलूं में अब तेथे
क्या बोलूं में अब तेथे
ये जीकोडी का भेद कन के तैसे उघडू मि
एक तरी जरा .. ...कख भागी जानि छे
रोक जा सुण जा तो ये मेर जियू की बात
ये मेरी शर्म्याली ये मेरी लजयाळी
सेब की जनि ये तेर च मुखडी लाल
वै पर सुनहर सुना का छै ये तै मा बाळ
बिरला की आँखी तेर क्या बोलानि च
देनी रैंदी छे वा रोज मि थे किलै कि हाक
ये मेरी शर्म्याली ये मेरी लजयाळी
प्रेम की मेर तू पैली पैली ऋतू छे
अलगद ऐगे तू सुरुक ये जिकोडीमा
इनि बरसी तेर मै पर प्रेम की बरखा
ये जिकोड़ो मेरो जनि पैल बारी धड़की
ये मेरी शर्म्याली ये मेरी लजयाळी
एक तरी जरा .. ...कख भागी जानि छे
रोक जा सुण जा तो ये मेर जियू की बात
ये मेरी शर्म्याली ये मेरी लजयाळी
क्या बोलूं में अब तेथे
ये जीकोडी का भेद कन के तैसे उघडू मि
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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