Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253807 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhishma Kukreti
Yesterday at 6:21pm ·
Modern Garhwali Folk Songs, Poems
हमरो हक हमम द्या ( गढ़वाली कविता -)
रचना -- तोताराम ढौंडियाल ( जन्म - 1940 , बांसी , ढौंडियालस्यूं , पौ 'ग )
Poetry by - Totaram Dhoundiyal
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-
इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती
हमारी कूड़ि इ काखम्
कुळै डाळीइ जड़म्
लीसै तैं टंग्युं गिलास
एक छ्वटु नौनु
अपणी ब्वै कि तिडीं खुट्यूं तैं
एक बूँद लीसो ल्याणू कनु प्रयास
चट्टाआं .....छक्कड़ अर जुर्माना पड़ि गे
वु ननो भिवरी कै भयम पड़ि गे
जनो बिजोग पड़ि गे
वैका बुबाम बुनु वो -
यो सरय्या जंगळ ठ्यकादारम बिक्युं,
हमर हक यख नी !
अरे ! ... ! जौं जंगळऊं तैं दादा , पड़दादूँ बटि
नाती -नंतान , पूति -संतान नौना सि छां सैंतणा !
आज हम बिना पुछ्याँ
कलकत्ताs सेठम कनकै बिकाणा ?
यख हमरो हक कख छ ?
क्य ई वन नीति छ ?
त जन नीति क्य छ ?
टक लगै सुणि ल्या !
हमरो हक हमम द्या !
तब रैली यूँ जंगलुँ की अंद्वार ,
निथर जिद्दम होलू खंद्वार !

-
( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
Poetry Copyright@ Poet
Copyright @ Bhishma Kukreti interpretation if any


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jitendra Rai 

मित्रों एक साथ गढ़वाली और हिंदी में अपनी काव्य रचना आपके समक्ष रख रहा हूँ।
"चिट्ठी"
Jitendra Rai.
चिट्ठी पत्र्युंकु चिट्ठी पत्रियों का
जमनु नी अब। जमाना नहीं अब।
पर आज बी जांदू मि, पर आज भी जाता हूँ मैं
रोज पोस्ट ऑफिस, रोज पोस्ट ऑफिस,
कि नौना कि कि बेटे की
क्वी पुराणि चिट्ठी, कोई पुरानी चिट्ठी
डाक विभागेकि डाक विभाग की
गल्ति से गलती से
नि पौंछि नहीं पहुंची
ह्वाली आज तक। होगी आज तक।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उखेल (गढ़वाली कविता )
-
रचना -- पराशर गौड़ ( जन्म - 1947 , मिर्चौड , अस्वालस्यूं पाव गढ़वाल )
Poetry by - Parashar Gaur
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-
इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती
म्यरा मरणा बाद , म्यरो मुल्क आजाद
ह्वालो भि त , कै ल्याखौ
रौं जब तक , देखे मिल सदांन
गरीबी भुकमरी असह्य अर डॉ
ईच हमरि जिंदगी , ई ह्वेइ हमरि मौ !
मी जना कथगै हवाला , मी जना ल्वाळा
जौन अपड़ी ब्वे तैं नि दे कबि सुख
तब तैका मन मा उठी होला बिकार
लगी होली गौंछी , सै होली चोट।
सद्दुवाओं का बदला निकळि होली बदुवा
बाणी -कुवाणी
उपाड यी लटला दे होली बळहंत्या
कै -कैल त खै होली घात
......
xxx
नि नचाणि तुमन रौळ बौळ
नि नचाणी पट्टी गवाणी दिसा ध्याणी
लानत च तवैकु नि नचाणा जु तिल
म्यरा मुल्का का रैबासि लोक।
जब तू खुदेन्दी , उनि खुद्यो ,उनि हुंकार फुंकार
परचो मिन्न पर , मी क्या ?
पुजलो त्वै सर्या गढ़वाळ
तब होली थापना नै गढ़ की। -
( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
Poetry Copyright@ Poet
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Bhishma Kukreti
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उखेल (गढ़वाली कविता )
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रचना -- पराशर गौड़ ( जन्म - 1947 , मिर्चौड , अस्वालस्यूं पाव गढ़वाल )
Poetry by - Parashar Gaur
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इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती
म्यरा मरणा बाद , म्यरो मुल्क आजाद
ह्वालो भि त , कै ल्याखौ
रौं जब तक , देखे मिल सदांन
गरीबी भुकमरी असह्य अर डॉ
ईच हमरि जिंदगी , ई ह्वेइ हमरि मौ !
मी जना कथगै हवाला , मी जना ल्वाळा
जौन अपड़ी ब्वे तैं नि दे कबि सुख
तब तैका मन मा उठी होला बिकार
लगी होली गौंछी , सै होली चोट।
सद्दुवाओं का बदला निकळि होली बदुवा
बाणी -कुवाणी
उपाड यी लटला दे होली बळहंत्या
कै -कैल त खै होली घात
......
xxx
नि नचाणि तुमन रौळ बौळ
नि नचाणी पट्टी गवाणी दिसा ध्याणी
लानत च तवैकु नि नचाणा जु तिल
म्यरा मुल्का का रैबासि लोक।
जब तू खुदेन्दी , उनि खुद्यो ,उनि हुंकार फुंकार
परचो मिन्न पर , मी क्या ?
पुजलो त्वै सर्या गढ़वाळ
तब होली थापना नै गढ़ की।

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मि ऊनि कि ऊनि ही रेग्युं जी

मि ऊनि कि ऊनि ही रेग्युं जी
सुपन्या मेरा बुनि ऊ बुनि ही रैगे जी

कया पाई यख कया खोई मिल बल
दोई आँखि सन्तोस नि पाई बस रोई बल

अपरा ना क्वी यख ना क्वी बिराण जी
ये भेद जानि कि बी मि किलै अजाण राई जी

रात गुजरी गे अब ये दीना की बारी ऐई बल
अंधारु बितीगे किलै की मेरो ऊजाळू नि ऐई बल

आंख्युं समण सब चित्र चलोमांन जी होणा छन
जिकोडि माया सब किलै कि ऐमा सब पिसण छन

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मेरी बात से ..........
मेरी बात से तू इतगा नराज ना व्है
बैठ मेर समण मे सै तू दूर ना जै
मेरी बात से ..........
ये निरबगि पोटगि का बणा
बल टक्का छंन हम थे कमणा
रोटलो चोंवल भूजि लेकि
ये पियारी भूकी पोटगि कू भूक मिटाणा
बात मेर समझ जै इतगा नराज ना व्है
बैठ मेर समण मे सै तू दूर ना जै
मेरी बात से ..........
शौक चढ़ी छे मिथे की मि ते थे छोड़ीकि जोलों
ते छोड़ीकि मि तू बता मि कन कै यखुली रोलों
यूँ ना सतों मिथे यूँ ना ये जिकुड़ी झुरो
तू ही रामी छे मेरी तू ही छे रौतेली
इतगा झूठ नखरा ना कैर सुदी नराज ना व्है
बैठ मेर समण मे सै तू दूर ना जै
मेरी बात से ..........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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किलै कि समज मा नि ऐई
अबी बी मिथे मि
किलै कि समज मा नि ऐई
बिरदयूं ही रेगे मि
किलै कि खुद थे मि खोज नि पाई
अबी बी मिथे मि ........
ये आँखा बी नि छन मेरा
वे बी व्है गे अब बिराण
खोज्नु छे वै थे पैल मिथे
वैल खोजी दयाई पैल ऐ जमणा
अबी बी मिथे मि
कै पर करुलो मि भरोसा
जबै अपरि परी भरोसा नि राई
धोक दयूं छे मिल अपरि थे छकैकि
अब पछतानु छे तू अब किलै कि
अबी बी मिथे मि
देवों की भूमि छे वा मेरी पियारी
मि वै दगडी बी लाडा पियार नि कैर पाई
अब रिटनु छों मि यक्ला यकुलू
कख बी मिल अब धार नि पाई
अबी बी मिथे मि
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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तर ऊ हैरी का आँखा कैका छन
पछाँण बी मि छों
में से अजाण बी मि छों
कदगा .... २ खोज मि मिथे
यख हरच्युं बी मि छों
टूटी गे छे वे धागा
विं परी अल्जी गेढ बी मि छों
ऊ उंदरु का बाटू बी मि छों
ऊ उकालो को चढ़े बी मि छों
ये मौल्यार ये फुल्यार मेरा छन
ये भुकी और्री तिसी बी मि छौं
ये पोटगी को सुकसुकहाट बी मि छों
औरी वैकि कबलाहट बी मि छों
सुख बी मेरा दुःख बी मेरा छन
हैंसदी आँखि मेरी रुंदरी बी मेरी च
सबी का सबी यख मेरा छन
तर ऊ हैरी का आँखा कैका छन
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मिथे ....तैथै
हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे ....तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... २
खली जिबान च मेरो
समण चार दिवाल
इन सातो ना मिथे
आस क्षण मां टूट तिल
ब्याकुल सुप्नीयुं का
चखुला हर्ची जाला
जिकोडी को ये इच्छा थे
अपरी बसमा रखु काद्गा ...... अ
हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे .... तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... ३
जीकोडी को इच्छा को
इनि सुपनियु का घोल
जीकोडी को सरगा मां
इनि चखलों का गीत
जीकोडी को गौं मां
इनि दोइयों को अपरो सैर
लेंन दया तुम हमार जीकोडी थे स्वास अपरी ...... अ
बालकृष्ण डी ध्यानी
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