Modern Garhwali Folk Songs, Poems
उखेल (गढ़वाली कविता )
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रचना -- पराशर गौड़ ( जन्म - 1947 , मिर्चौड , अस्वालस्यूं पाव गढ़वाल )
Poetry by - Parashar Gaur
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
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इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती
म्यरा मरणा बाद , म्यरो मुल्क आजाद
ह्वालो भि त , कै ल्याखौ
रौं जब तक , देखे मिल सदांन
गरीबी भुकमरी असह्य अर डॉ
ईच हमरि जिंदगी , ई ह्वेइ हमरि मौ !
मी जना कथगै हवाला , मी जना ल्वाळा
जौन अपड़ी ब्वे तैं नि दे कबि सुख
तब तैका मन मा उठी होला बिकार
लगी होली गौंछी , सै होली चोट।
सद्दुवाओं का बदला निकळि होली बदुवा
बाणी -कुवाणी
उपाड यी लटला दे होली बळहंत्या
कै -कैल त खै होली घात
......
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नि नचाणि तुमन रौळ बौळ
नि नचाणी पट्टी गवाणी दिसा ध्याणी
लानत च तवैकु नि नचाणा जु तिल
म्यरा मुल्का का रैबासि लोक।
जब तू खुदेन्दी , उनि खुद्यो ,उनि हुंकार फुंकार
परचो मिन्न पर , मी क्या ?
पुजलो त्वै सर्या गढ़वाळ
तब होली थापना नै गढ़ की।
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( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
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