Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253462 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फ़ैलयुं भ्रष्टचार

घार घार फ़ैलयुं भ्रष्टचार
दूँण णी मार पहली बाण
गद्दी मा बैठयुंच सरताज
गढ़ का हूँयांच बुरा हाला

पल्याँन मार से गढ़च परेशान
गामा खाली पड़यां छन अब ये धाम
कामणी धणी मार्ग बंद छन
जाण हमुला जाण कैका घार
गढ़ का भी हूँयांच बुरा हाला

महंगाई बडगे ना रहगे कुछ काम
उजड़ा पडी डंडी बंजा पुंगडी गढ़ धाम
सरकार पडी सीयीं च हमरी
घुस खैणी बगैर कुछ ना अब कम
गढ़ का भी हूँयांच बुरा हाला

लुट माची च लुट याखा अब
जावा जख भी अब ये धाम
बिता दीणु याद रेगै बीती वो बात
बल कब आलो पहाडमा ये प्रभात
गढ़ का भी हूँयांच बुरा हाला

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ना पीयु

ना पीयु शराब दिदो
न पीयु शराब ये चीज ख़राब दिदो
ना पीयु शराब ...२

बिखरी गैणी कुटमदरी
जैण पी शराब दिदो ...२
ना पीयु शराब ....२

होशणी रैण जब
तिल ये पी चीज ख़राब दिदो...२
ना पीयु शराब ...२

सोच जर गड़देश की
कैको कण ऐका नाम खराब दिदो ...२
ना पीयु शराब ...२

बात बेटी ब्वारी की
छुटा नुँना नुँनी को करो याद दिदो .....२
ना पीयु शराब ...२


रहलो उपकार तुम्हरो गढ़ भूमी मा
तुम णी पीयां शराब दिदो ....२
ना पीयु शराब ...२

ना पीयु शराब दिदो
न पीयु शराब ये चीज ख़राब दिदो
ना पीयु शराब ...२

बालकृष्ण डी ध्यानी
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हुयंद जम्युंचा ये गढ़ मा

सवेर ये गढ़ देशा मा
हुयंद पड़युं ये पहाड़मा पहाडमा
बुरंस खिला तेयुं डालियुं मा
हुयंद बिछों फुल पंखी मा
सवेर ये गढ़ देशा मा ..........

चंमकण लगी पत्ती पत्ती
जाण वहाली रत्ना की कणडी
कंण शरर्म्यणी लज्जाणी वा
राता की जण छुंयीं लगादी वा
सवेर ये गढ़ देशा मा ..........

हुयंद जम्युंचा ये गढ़ देशा मा
रुल्युं गदनीयुं का भेषा मा
गढ़ छुडी की दूर गयांन उंचा उड़यां
पखा पखा आकाश का रेघा मा
सवेर ये गढ़ देशा मा ..........

हुन्दु णी जंमदु ये परदेशा मा
यकुली यकुली मण का गेडा
एक गेडा मण का गेडा मेरा
गढ़ मा छुडों ऐक पैला गेडा जी
सवेर ये गढ़ देशा मा ..........

सवेर ये गढ़ देशा मा
हुयंद पड़युं ये पहाड़मा पहाडमा
बुरंस खिला तेयुं डालियुं मा
हुयंद बिछों फुल पंखी मा
सवेर ये गढ़ देशा मा ..........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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राजधनी गैर सैण

दिण रैण इण गैणी
पहाडा की दाशा णी बदली
णी बदली गैणी
आपरा आपरा मा लगी रैणी
दिण रैण इण गैणी

पहाड़ की प्रगती
इण कखक लुकी गैणी
पहाड़ का बाटा देखा देखी मा
उन्दारू का बाटा मा सर रुअडी गैणी
दिण रैण इण गैणी

क्रांती का बाटा सब बंद हुयेगैणी
१० बरस हुयेगैणी उत्तरखंड बणेकी
क्रांतीकरीयुं को सपुनिया की राजधानी
गैरसैण पहाड़ मा कखक लुकी गैणी
दिण रैण इण गैणी

विपद च या व्यथा च ये गढ़ की
या मेर या मेरा लोगों की सब चुप बैठयांछण
हाथ मा हाथ धरी की प्रगती मार्ग मा बाधा बाणयाछन
दूँण अस्थाई-स्थाई राजधानी मा प्रगतीणीच मेर गढ़ की
दिण रैण इण गैणी

कब आलो ओ दीण कब आलो ओ सवेरा
कब जगाला लोग कब मंगला आपरा हक
एक नयी जन-क्रांती की जरुरत छा आजा
को पैलु व्हालो जो ये ये क्रांती मशाला जगवालो
दिण रैण इण गैणी

दिण रैण इण गैणी
पहाडा की दाशा णी बदली
णी बदली गैणी
आपरा आपरा मा लगी रैणी
दिण रैण इण गैणी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ना पी बीडी बारड़

ना पी ना पी बीडी बारड़ ना पी
बीडी च ख़राब कराइल सहेत ख़राब
बुअडी मुंडारु बारड़ बीडी तेरी
छुड़ दै बारड़ अब तक बगत नी गयाई
बारड़ बीडी तेरी बीडी तेरी .........२

गुडगुडी को गुड़हट वख भी तम्बोकोख की बात
कण बीगाडी जीन्दगी को प्रभात ये बारड़
फिनका फिनका जलणी तेरी जीकोडी तेरी
ये बारड़ सुनले बुअडी की बात
ना पी ना पी बीडी बारड़ ना पी
बारड़ बीडी तेरी बीडी तेरी .........२

तू पीअली बीडी छुटा नुआण सीखैसैर करलु
ये बीमारी सब गढ़ थै लागली बारड़
बोल्यु मान ये बारड़ मेरु छुड़ ये बीडी का साथ
ना ऊड़ ना ऊड़ सुटा ना कर ना कर ईणी बात
ना पी ना पी बीडी बारड़ ना पी
बारड़ बीडी तेरी बीडी तेरी .........२

टोपलो धरी कपाला की सुनले बात ये बारड़
जीवण को बच्च्यां बस अब दिन चार
नाती नात्नी दगडी हंस खेली की बीता दिन चार
छुड साथ तम्बाखू को ये जड़ सर्वनाशा को ये बारड़
ना पी ना पी बीडी बारड़ ना पी
बारड़ बीडी तेरी बीडी तेरी .........२

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कण कंडा पुअडी

कण कंडा पुअडी कुटम्बदरी मा
मेर जींदगाणी मा
कण कंडा पुअडी...........
ये सरकार मा ये मंहगाई मा

बाल बच्चा छिन तास-बीड़ी मा
सब गीचा छन उपरा पाडी मा
कण कंडा पुअडी...........
ये स्कूला मा ये शीक्षा मा

घार मा बीठाया छन दाण
जवांन तुंड दारू का ठेकों मा
कण कंडा पुअडी...........
ये डाणडों मा उजाड़ पुंगडों मा

नलकुप लगा गैण गाम गाम
पाणी नीच बुंदा तीसा सरीयुं मा
कण कंडा पुअडी...........
ये कलशी मा ये रुलोयुं मा

बिजली बाण टेहरी गाम हाटायी
फिर भी लैट घार णी बल्याई
कण कंडा पुअडी...........
लोड शैडींग मा ये बिजली मा

सड़की सड़की बाणी गैनी
चो डाणड़ का पुओंरों तक
कण कंडा पुअडी...........
जीप गाडी मा ये रीटा सड़कीयुं मा

कण कंडा पुअडी कुटम्बदरी मा
मेर जींदगाणी मा
कण कंडा पुअडी...........
ये सरकार मा ये मंहगाई मा

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भजन मंडल उत्तराखंड

चल दिदो चल भुलीयुं घर घर जोंला
घर घर मा भगवती को जयकार लोगों ला
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

बुआडी डोल्की बाजा भुली मंजीरा उठा
जर जोशमा दिदिओं माता थै बुला
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

आयी भजन टोली मेर गढ़ बेटी ब्वारीयुं की
दिदो ओंक का प्रयास मा अब हाथ बाटा
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

गढ़वाल ना अब मुंबई दिल्ली हुगे सुरवात
माँ का नाम को जयकर अब हर जगे जगे साथ
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

मै मंदिर खुला छुड आयी भक्ती की धुन मै
पहड़ो मा बैठी मेर भगवती माँ भजनों थै तू भी गै
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

गाम गाम शहर शहर भक्ती गंगा बाँहों ला
गढ़ देश की माँ भगवती तेरी आरती करों ला
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

मै भी आयुं भुलूह तुम भी अब साथ साथ आव
हर की पाड़ी मा हर की पाडी मा वख ल्गोंला जयकार माँ का हर की पाडी मा
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

पहाडी भजनं माला मा बोगता जा
हर गंगे हर गंगे धुन अपने मन से गाता जा
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

चल दिदो चल भुलीयुं घर घर जोंला
घर घर मा भगवती को जयकार लोगों ला
जय माता दी जय माता दी बोल ता जा

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संस्क्रती

नाका की नथुली देख
कंण भली सजली......२
माथा का मांग टीका बल
कण भलो लगदो .....२
संस्क्रती मेर बांची चा
गढ़ देशा बेटी बावरी मा
नाका की नथुली ..........

रीती रीवाज पहाडा का
लोकगीत गढ़ देशा का
बिंदी गढ़ की गोल गोल
आंखी तो अब बल बोल
गोलबंद गला हार देखा
कनुडी झुमका बात देख
संस्क्रती मेर बांची चा
गढ़ देशा बेटी बावरी मा
नाका की नथुली ..........

ढोल दमौं माशु बाजा
तुर्री ढोलकी रणसिंघा गाजा
दौर थाली भंकोरा को साथ
तबला हारमोनियम ताला
उत्तराखण्ड लोक वाद्यय यन्त्र
संस्क्रती को ये बाटा ये भुली
संस्क्रती मेर बांची चा
गढ़ देशा बेटी बावरी मा
नाका की नथुली ..........

मंगलस मार्तिअल
खुदेड झोड़ा थड्या
पंवारस मेलान्चोली मा
जड़युं मोती को हारा
गढ़ लोक संगीत मा
लगा दे अब चारचांदा ये बांदा
संस्क्रती मेर बांची चा
गढ़ देशा बेटी बावरी मा
नाका की नथुली ......

लंग्विर नृत्य, बरदा नाटी
पांडव नृत्य ,शोतिया त्रिबल लोक नृत्य
को छाट़ा को ये प्रभात
लगा दे रसा गढ़ा आजा
मी थै भी नचा दे आजा
दागडीयुं अब साथ दे जरा
संस्क्रती मेर बांची चा
गढ़ देशा बेटी बावरी मा
नाका की नथुली ......

नाका की नथुली देख
कंण भली सजली......२
माथा का मांग टीका बल
कण भलो लगदो .....२
संस्क्रती मेर बांची चा
गढ़ देशा बेटी बावरी मा
नाका की नथुली ..........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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गढ़देशा गढ़वाला

बस यादों को आपने सीमट ने मे लगा हों
दुर जा चुके उन्हे पास बोलाने मै लगा हों

एक कोशिश है उसको निभा रहा हों
अपने आप से मै खुद को मिला रहा हों

रिक्त गढ़ देख देख कर अंशुं बहा रहा हों
पैरो को खुद आपने मैदान ओर भागा रहा हों

पल पल अपनी बैचनी खुद ही बड़ा रहा हों
सत्य दमन छुड असत्य को पंनपा रहा हों

वेदना कैसी क्यों अकेले ही छटपट रह हों
एक कोने बैठे बैठे खुद से बड बाड रहा हों

चिंता पर बडे बड़े भाषण मै पड़ रट रहा हों
पडने के पश्चात ही दूजे पल मै भुल रहा हों

कथनी और करनी मै कैसा द्वुंद मचा आज
गढ़ देश मेरा मुझे दुर खड़ा खड़ा देखा रहा है

पलायन के प्रश्न पर सब मचल मचल रहा है
अंतकर्ण दुर जाकर अब अकेला विहल पड़ा है

धुंदली सी परछाई अब साथ साथ चलती है
गीले तकिये मै अब मेरे साथ साथ बहती है

देवभुमी तेरी याद बस इस दिल मे बस्ती है
पर अपनी बस्ती गढ़ से दुर ही क्यों सजती है ?

इस बात पर मै भी आज निर उत्तर हो जाता हों
युवा को ओर उनके मन को आज मै टटोलता हों

भगीरथी सा मै अब उस गंगा को खोजता हों
मेरे पापों का त्रर्पण कैसे उस आत्म ढोंहणडता हों

बस यादों को आपने सीमट ने मे लगा हों
दुर जा चुके उन्हे पास बोलाने मै लगा हों

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विभुषणम

चादर छनी छनी
गगन तनी तनी
प्रतीक स्थलतंम स्थलतंम
भारतंम जयती जयती
चादर छनी छनी..............

जग जननी जननी
भुमी गणणी गणणी
भग्या विधाता विधाता
मुखंम विभुषणम विभुषणम
चादर छनी छनी..............

हिन्दु स्थानाम सुंदरम सुंदरम
सुंग्धीत पुष्पीतम पुष्पीतम
समधुर विभूषितंम विभूषितंम
जल विनायकंम विनायकम
चादर छनी छनी..............

पहाडम विशालतम विशालतम
चोटीनम पुजीयात्म पुजीयात्म
देवभुमी गढ़वालम गढ़वालम
उर्जाम मुक्ततंम मुक्ततंम
चादर छनी छनी..............

चादर छनी छनी
गगन तनी तनी
प्रतीक स्थलतंम स्थलतंम
भारतंम जयती जयती
चादर छनी छनी..............

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