यो गयो जमानो प्रीति को
कब आलू हो ....
यो गयो जमानो प्रीति को
कया दिन छ्या वा कया रात वा
बस होंदी छ्या तेरी ही बात वा
कब आलू हो ....
तू और्री मि दूजो ना कुई और्री
गदनी जनि बगदि पियार
होंदी छ्या मुलकात अपरि
कब और्री कख हर्चि गै हुलु सब
कब और कन परती को आलो अब
यो गयो जमानो प्रीति को ....
हैंसदरी तेरी मुखडी
कब अब देख्याली भग्यानी
ऊ ऊकाली उंदारु का बाटा मा
कब तू अब आली जाली भग्यानी
बैठ्युं छों आसा मा की कब आलो
यो गयो जमानो प्रीति को ....
तू ही मेरी बुरांसि की डाली को
ऊ लाल लाल बुरांस साथी
ऊ फ्योंली जनि छ्या अपरू साथ
किंगोडा काफलों को आस पास
फिरदा छ्या हम ऊंका साथ
हिट दा हिट दा गयौ अब कख
यो गयो जमानो प्रीति को ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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