Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253377 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरु जिकोड़ो में संग बोल्दी ना
मेरु जिकोड़ो में संग बोल्दी ना
मेरु जिकोड़ो में संग किलै बोल्दी ना
भेद मन का में संग किलै खोल्दी ना
मेरु जिकोड़ो में संग बोल्दी ना
कदगा दिन रात मि सिंयु नि
परेली मेरु कोनों मिल भिजे नि
आँखा बण जांदी छन बल किताब जी
वे किताब थे तुमल कबी पैढि ना
मेरु जिकोड़ो में संग बोल्दी ना
खुटा अब थक गैनी तुम से दूर हीटे की
अब त मिल बी देख हिटणु छोड़ द्याई
तुमरी खुद थे मि अब कन के बिसरुं
अब तकै मिल मरणु नि सिख द्याई
मेरु जिकोड़ो में संग बोल्दी ना
मेर नजर अब दूर तके दिखादी ना
पास का बी मेर नजर अब हेरदी ना
इतगा सिंकोलि मेरु ये बुढ़ापा ऐग्याई
अब बी मेरु जिकोड मेसे बोल्दी ना
मेरु जिकोड़ो में संग बोल्दी ना
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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पुरखों की कुड़ी
क्या छे बथोणी ,क्या छे बथोणी
हे लाटा तै थे वा
क्या छे बिगणी ,क्या छेबिगणी
पौंछदा पौंछदा अपड़ो पता
वा छे बिसरि जाणी ,वा छे बिसरि जाणी
हे लाटा तै थे वा
किलै ध्ये छे लगाणी ,किलै ध्ये छे लगाणी
सिमेटी मेल मेटि की
तेर बाना धरिं छे,तेर बाना धरिं छे
हे लाटा तै थे वा
गैरी किले लगाणी छे,गैरी किले लगाणी छे
ईस्टों की किरपा
तै पर रैली सदनी,तै पर रैली सदनी,
हे लाटा तै थे वा
अब बी छे खुदाणि ,अब बी छे खुदाणि
पुरखों की कुड़ी ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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नि राई मि म्यार बस्मा
नि रैग्याई म्यार बस्मा
मेर वा पछणा अब म्यार बस्मा
हर्ची गयुं मि वख मा
रै गयुं जख मि अब कख ना
वै डाळम कबि बैठ्यों छो मि
छिपडु दादा जैमा ऐठीयों छया कबि
गीत लगै मिल हला बी कयाई
ढुंग चुलै दादा ल कपाळ फोड़ि बी द्याई
हर्ची गयुं मि वख मा
रै गयुं जख मि अब कख ना
नि रैग्याई म्यार बस्मा
मेर वा पछणा अब म्यार बस्मा
ब्यळमा मिल ब्वाली अफ ते
झक मारी मिल अब कख कख ते
मोल मि थे मिली जख कै
वैल बी मि थे पछणा नि दे पाई अफ ते
हर्ची गयुं मि वख मा
रै गयुं जख मि अब कख ना
नि रैग्याई म्यार बस्मा
मेर वा पछणा अब म्यार बस्मा
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ढंगी रे ढंगी रे
ढंगी रे ढंगी रे
पिछने कि ढंगी रे
दौड़ी जादि अग्ने कभी
किलै रैजांदि तू पिछने रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे
कालो रंगों रंगस्याणि
माथो मा सफेद ज्योति रे
कभी त ऐजा दौड़ी रे
इन ना जा तू बॉडी रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे
खे जालु तै बाघ स्याल
झट ऐजा घोरी रे
आँखा का उड़्यार मा
गै मेरी आंखीं थकी रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे
कंपदो हुलु तेरो गात
फैलायूं छा मेरो हात रे
लाठि टेकि कि सरकनु
कब जालु ये स्वासु रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे
बालकृष्ण डी ध्यानी
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आखर मेट मेटि की
आखर मेट मेटि कि
बल लेखी मिल एक कबिता
कुछ ना मिली मिथे
बल विथे मिल गे एक सरिता
आखर मेट मेटि की
कबि दौड़ी विंका बाण मि
कबि बैठी बैठी ऊ में पास ऐग्याई
कबि अचणचक ऐई समण मेरा
कबि मिथे अजाणा वा कैग्याई
आखर मेट मेटि की
दिन राति देखि मिल
बल जी बस देखि विंका सुपनिया
कबि ख्यालों मा आई मेर वा
कबि मन मा ही दड़ी बल रैगे वा
आखर मेट मेटि की
जोड़ घटना कैकी जोड़ी मिल
कै बाटा कै घाटा थे नि छोड़ी मिल
फिर बी वा मेर ना बण सकी
देखा दूर बगदी जाणी छे वा सरिता
आखर मेट मेटि की
बालकृष्ण डी ध्यानी
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पुरखों की कुड़ी
पुरखों की कुड़ी
क्या छे बथोणी ,क्या छे बथोणी
हे लाटा तै थे वा
क्या छे बिगणी ,क्या छेबिगणी
पौंछदा पौंछदा अपड़ो पता
वा छे बिसरि जाणी ,वा छे बिसरि जाणी
हे लाटा तै थे वा
किलै ध्ये छे लगाणी ,किलै ध्ये छे लगाणी
सिमेटी मेल मेटि की
तेर बाना धरिं छे,तेर बाना धरिं छे
हे लाटा तै थे वा
गैरी किले लगाणी छे,गैरी किले लगाणी छे
ईस्टों की किरपा
तै पर रैली सदनी,तै पर रैली सदनी,
हे लाटा तै थे वा
अब बी छे खुदाणि ,अब बी छे खुदाणि
पुरखों की कुड़ी ......
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आखर मेट मेटि की
आखर मेट मेटि कि
बल लेखी मिल एक कबिता
कुछ ना मिली मिथे
बल विथे मिल गे एक सरिता
आखर मेट मेटि की
कबि दौड़ी विंका बाण मि
कबि बैठी बैठी ऊ में पास ऐग्याई
कबि अचणचक ऐई समण मेरा
कबि मिथे अजाणा वा कैग्याई
आखर मेट मेटि की
दिन राति देखि मिल
बल जी बस देखि विंका सुपनिया
कबि ख्यालों मा आई मेर वा
कबि मन मा ही दड़ी बल रैगे वा
आखर मेट मेटि की
जोड़ घटना कैकी जोड़ी मिल
कै बाटा कै घाटा थे नि छोड़ी मिल
फिर बी वा मेर ना बण सकी
देखा दूर बगदी जाणी छे वा सरिता
आखर मेट मेटि की
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आखर मेट मेटि कि
बल लेखी मिल एक कबिता
कुछ ना मिली मिथे
बल विथे मिल गे एक सरिता
आखर मेट मेटि की
कबि दौड़ी विंका बाण मि
कबि बैठी बैठी ऊ में पास ऐग्याई
कबि अचणचक ऐई समण मेरा
कबि मिथे अजाणा वा कैग्याई
आखर मेट मेटि की
दिन राति देखि मिल
बल जी बस देखि विंका सुपनिया
कबि ख्यालों मा आई मेर वा
कबि मन मा ही दड़ी बल रैगे वा
आखर मेट मेटि की
जोड़ घटना कैकी जोड़ी मिल
कै बाटा कै घाटा थे नि छोड़ी मिल
फिर बी वा मेर ना बण सकी
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द्वि मन का पिछणे पिछणे
द्वि मन का पिछणे पिछणे
मि अटगी गीयूं
यूँ बीच का घंघतोळ मा
मि फिर फंसीगीयूं
रैं नि मिथे अपड़ी खबर
रोज पड़दो मि दुनिया की खबर
पड़दा पड़दा दुनिया की खबर
लाख चौरासी का बाटा थे
मि फिर बिरड़ी गीयूं
द्वि मन का पिछणे पिछणे
मि अटगी गीयूं
सबैर शाम इन ऐ मेरु सफर
कख चुलै कख मा पकड़
ऐ चुलै औरि पकड़ा पकड़ी मा
वै काल की फांस मा
मि फिर इन फंसीगीयूं
द्वि मन का पिछणे पिछणे
मि अटगी गीयूं
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टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा
(हम मिल्दा रयां सदा ) ..... २
ऐ फूल बण बणिक का
इनि खिल्दा रयां सदा
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......
पुंगडा अर बणौ को
(दुःख जाणुलू क़्या क्वी ) ..... २
भौत द्यखीन मिल बी
मेरु पहाड़ जनि ना क्वी
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......
मजबूरी का नाच
(यख नचदा छन सबी ) ..... २
उम्मीद की झोळो लेकि
अब बी खड़ो च ऐ कबी
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......
गंगा की ऐ धारा बी
(अपड़ो मुख खुलालि कबि ) ..... २
एक दिस सुख आलो ऐ बाटा
रोज बोल्नु च ऐ रबि
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......
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