Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253300 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नौं हर्चि जाळो जी
नौं हर्चि जाळो जी,
मुखड़ी ऐ बदल जाळ जी
मेर बाणी ही मेर पछाँण च ,बल याद राल
...नौं हर्चिजाळो जी ....
बगत कु पीड़ा कम बिगरैली नि छे
आज यख च भौल कखि ना
बगत सै पैल हम मिलिगयां कखि
...नौं हर्चि जाळो जी ....
जो झड़ी गै छे ब्याळ कि छुईं छे,
उमरी त ना एक रात छे
रात कु सिरा
बल मिळ जाळो कख ..
नौं हर्चिजाळो जी ....
दिन बिती जख राति जब दगड हो,
जियुंदगी कु दियू थे ऊब कैरी हिटो
याद आली
बल कबैर जी उदास ह्वै
..नौं हर्चि जाळो जी ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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फिर बी त ऐ आस छे
फिर बी त ऐ आस छे
ये जियु किले तू उदास छे
आणि जाणी वाळी सांस ये
ये तर अब बी अप्ड़ पास छे
आज नि हुळू भौळ त हुळू
अजी हां ये बात त छे
पहाड़ मा बिकास को नोऊ छे
ऊ बी नऊ दर्जा द्वि दफा फेल छे
खिल्दा फूल हैंस ही जाला
कंडो थे तिळ किलै इल्जाम दे
माळु ग्वीराळ कु ऊ हैरू घासु
भौरीक अब बी मेरा पास छे
डंडियों मां बांसुरी कि धौण छे
मेरा नेता लुक्यां कै कै कुण छे
गदन्यों कु सुस्यांट आणू ह्वालु
बल अब ये बगता कु पास छे
रूणु-हैंसणु को जोग ये
बिधाता ने लेखि कै का पास ये
हमरु पाड़ा अब कया बुनु
सिंकोलि सैजा खेजा भात ये
फिर बी त ऐ आस छे
बालकृष्ण डी ध्यानी
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आस
जबैर मेर स्वास
मेर दगड मेर दगड़ू छोड़ देल
तबैर बी मेर ऐ यात्रा खत्म हुलि ना
चार लाकुडु दगड
मेर ऐ आस कया जळलि
राख हुन्दा वो मेरा फिनका
वै माटु का अंग्वाळा दगडी बी
मेरा ऊ सुपनिया स्याळा ना
भटक दा राला वा
पर वैकु छैल पड़लू ना
अंकगणिता का इच्छा
जंण झट कैरी की खत्म नि हुन्दा
वा जलदा रैंदा ठंडू जून जणी
वा जलदा रैंदा चमकदा गैणा जणी
रात हुलि जब
अंधारु गजबज कणु हुलु तब
ब्यौखोनि बेल हुलि
काला कपड़ा पैनी कि ऊ
वै बगता मां
सूरज उदय हुनू हुलु कखि
वैकि आग बी शांत ना हुलि
शांत ह्वैगे हुली माशाल
फिर जळालि
नाराज वो हाथ
फिर शुरू व्हाला
एक नै यात्रा कु
वै बाटा धैरी की ऊ
गाठलु
परिवर्तना कु क्षतिज
तबैर तक वैकि परेली
चक्रचाल मां बी झप नि कैल
जबैर मेर स्वास ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऐ काला पैंसा
हमन त नि देखि .....नि देखि
ऐ काला पैंसा हमरा पहाड़ों मां ....
ऐ आँखियों मां नि पौडी ...नि पौडी ...
इत्गा सुपनिया यों आँखियों मां
हमन त नि देखि .....नि देखि। ...
गर पात पात मा पैंसा खिल्दा
हैंसदरा मायादार हम ते कख बठे मिल्दा
तब कख लुकि हुन्दी ऐ बिन्सरी बेल
रात भर जगदा सुबेर कन क्वे उठ दा
हमन त नि देखि .....नि देखि। ...
पलायन कु ऐ नोऊ बी नि हुन्दु
दुःख पीड़ा मां एक बी गौं बी नि हुन्दु
मौज्दा रैंदा सब टक्कों टक्कों थे
एक बी ऊजाड़ा बांज खल्याण नि हुन्दु
हमन त नि देखि .....नि देखि। ...
द्वी नम्बरा कया हुन्दो हम थे कया पता
क्नो क्वे जम्मा करदा हम थे कैल नि सिखै
हरकौणौं-फरकौणौं हम थे आंदो नि
बौग कन कै मरदा तू ऐकि ऐजा सिखा
हमन त नि देखि .....नि देखि। ...
बालकृष्ण डी ध्यानी
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फिर ऐजा
उकालो ऊंदरू का बाटा
चल ऊँथे फिर भेटीं ओंला
खिल्दा फूल हैंसदा पात
कखक हुली इन जनि बात
झपन्यळू छैलू मां ऐजा
ऐकि ऊं खुद थे मिटै जा
रौन्तेळी बथों मा ऐकि
द्वि घड़ी टम कैकी सैजा
घैणि हर्याळी बिंछी छा
घुघुती बी घूर घूर लगींचा
डाळा डाळा मां झम्पा तेरा
धारा मां ऐकि तिस बुझै जा
देखि ले ये सबी यूँ नजारा
अंग्वाल भोरी भोरी कि लेजा
अँखियों माँ खिंच ले मि
सेल्फी मेर अप्डी दग्डी लेजा
उकालो ऊंदरू का बाटा
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कैथे खोज्णु छै
कैथे खोज्णु छै
ऐ जियु तू कैथे खोज्णु छै
ऐ स्वास बी बिराणी रे
बस आंदि जांदी छै
कैथे खोज्णु छै ..........
मौल्यार कु कंडू छै
ऐ उजाड़ा कु तू धांडू छै
ऐ आँखि भाति रौड़ी गैनी
बस अंद्यरु कु बाटु छै
कैथे खोज्णु छै ..........
तन कि पीड़ा छै
ऐ मन कु तू विपदा छै
अपणा बारा अपणु बाना रे
तू कख कख दौड़ी छै
कैथे खोज्णु छै ..........
छैल छबीली दुन्या छै
ऐ रंग रंगीली दुन्या छै
इं भूल भूल्या दुन्यामां
तू कै बाटा बिरड़ी छै
कैथे खोज्णु छै ..........
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जो न बोळ स्की ऊ बोळ
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
मन की पीड़ा थे इनि ही रोज...... लाटा
मन की पीड़ा थे इनि ही रोज
यों अँखियों न बोगोंदी छो
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
मैथे क्वी कबि कवी ना जाना ना माना
मि इनि रोज अप्ड़ी दबाई बणादू छो
मेर मरजा कु इलाजा ना क्वी
कागद भौरिकि बस लेखी जांदू छो
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
मेर माया कु प्रेम बल ढुंगा गारा
वैथे मि अपड़ो पहाड़ बणादू छो
बग्दी गदनि छन ऐ नेडू मेरा
वैथे मि इनि हैरेल पोछाँण दू छो
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
ब्याळ मि जब मौरी जाळू जी
कैथे थे मेरो ऐ ख्याल आळू जी
वै मा मि इनि मिसी जाळू जी
फिर अपडों छोड़ी कख नि जाळू जी
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
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आस
जबैर मेर स्वास
मेर दगड मेर दगड़ू छोड़ देल
तबैर बी मेर ऐ यात्रा खत्म हुलि ना
चार लाकुडु दगड
मेर ऐ आस कया जळलि
राख हुन्दा वो मेरा फिनका
वै माटु का अंग्वाळा दगडी बी
मेरा ऊ सुपनिया स्याळा ना
भटक दा राला वा
पर वैकु छैल पड़लू ना
अंकगणिता का इच्छा
जंण झट कैरी की खत्म नि हुन्दा
वा जलदा रैंदा ठंडू जून जणी
वा जलदा रैंदा चमकदा गैणा जणी
रात हुलि जब
अंधारु गजबज कणु हुलु तब
ब्यौखोनि बेल हुलि
काला कपड़ा पैनी कि ऊ
वै बगता मां
सूरज उदय हुनू हुलु कखि
वैकि आग बी शांत ना हुलि
शांत ह्वैगे हुली माशाल
फिर जळालि
नाराज वो हाथ
फिर शुरू व्हाला
एक नै यात्रा कु
वै बाटा धैरी की ऊ
गाठलु
परिवर्तना कु क्षतिज
तबैर तक वैकि परेली
चक्रचाल मां बी झप नि कैल
जबैर मेर स्वास ....
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बाबा जी कि पुछडी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
ठंडू मठू बाटु छो
तन कि पीड़ा ,मन कि पीड़ा कि
बोगदी गदनी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
मन कि आस छो
ऋतु बसंत कि भासा छो
गारा कांडु छैलू -पाणी
अगनै बाटु कु पिछणे बाटु छो
बाबा जी कि पुछडी छो
अंद्यरु रात कु द्यू बत्ती छो
सारू कु जग्वाळ छो
भर भर ऐजाँदी आँखियों मा
ऊ आँखियों कु पाणी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
मौळयार कि बयार छो
उजाड़ा कु हैराल छो
बिंसरी बेल भतिक
जून की कि जुनयाळ छो
बाबा जी कि पुछडी छो
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नौं हर्चि जाळो जी
नौं हर्चि जाळो जी,
मुखड़ी ऐ बदल जाळ जी
मेर बाणी ही मेर पछाँण च ,बल याद राल
...नौं हर्चिजाळो जी ....
बगत कु पीड़ा कम बिगरैली नि छे
आज यख च भौल कखि ना
बगत सै पैल हम मिलिगयां कखि
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जो झड़ी गै छे ब्याळ कि छुईं छे,
उमरी त ना एक रात छे
रात कु सिरा
बल मिळ जाळो कख ..
नौं हर्चिजाळो जी ....
दिन बिती जख राति जब दगड हो,
जियुंदगी कु दियू थे ऊब कैरी हिटो
याद आली
बल कबैर जी उदास ह्वै
..नौं हर्चि जाळो जी ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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