कवि त्रिभुवन गिरी
हुक्का क्लब - अल्मोड़ा
बौडी
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दातुल कुटल और ज्योडा का, छान जै चन सोल सिंगार
गोथ पान, धाण - बुति, घर बाण, छान कै रोजा तयार !
बाबिला बाटीणा जाता जैका, ख्वार माँ बाबो जाल !
आड़डी भीदडि में टोकी राखी, जेल सौ सौ टाल!
एक कातरि है दुहरी नियाती, जनम भरी है लाग !
हसी मानिक हौसी रै जै, कब फेडली फुट भाग !
हियूंन, रूडी, चौमास सब ठेलन छू जन्मे रीति
चुरैन पट्ट दिशाण मणी, वीकी जन मानी बीती !
इकली दुकली सुत्केली रेई, चिहडि मिली भे नाम !
जैल जनम देछी उ के, धरी दे छू जानी डाम !
धान झुवर मडुवा , गोदान, कुटन पिसण जान घट ,
सिरिकाव तेरी सुकी गयी, सुकी पटयल कसी पट !
लुवक पिटाव काठा खुटा धन छौ तुहनि वो बौडि
बेलिया आज भोल एकनस्से, जान छू दौड़ा दौड़ी !