MeraPahad Community Of Uttarakhand Lovers
Welcome,
Guest
. Please
login
or
register
.
1 Hour
1 Day
1 Week
1 Month
Forever
Login with username, password and session length
News:
Home
Help
Search
Calendar
Login
Register
MeraPahad Community Of Uttarakhand Lovers
»
Uttarakhand
»
Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
(Moderators:
Dinesh Bijalwan
,
Saket Bahuguna
) »
Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह raana
Send this topic
Print
Pages:
1
[
2
]
3
Author
Topic: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह raana (Read 8646 times)
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह राणा
«
Reply #10 on:
April 16, 2012, 03:33:55 PM »
गढ़वाली कविता :- “बिपदा ढोल्यारों की”
“व्वेन कसी के ढ़ोल
थाप पे थाप लगाई
ताल पे ताल मिले के
ज्यू भौरी के नचाई॥१॥
हेंसदु रे वा
लुके के सारा दर्द
बजाणु रे वा
दिखे के अप्णु फर्ज॥२॥
हमेश यनि बोली व्वेन
बाप-दादा बिटि सेवा करी ठाकुरो
हमुन क्या बोली वे तें कि
तू दास छों हमारों॥३॥
अरे! व्वें कि जिकुडी मा भी
कतक्या पीड़ होन्दी होली
बजे के ताउम्र ढ़ोल
जब नि भोरी वें कि झोली॥४॥
एक कान्धु टांगी के फांचू
दूसरा मा लटके के ढ़ोल
नापि व्वेन गौं-धार-कुड़ा
अर मंगड़ू रे अप्णु मोल॥५॥
डाँका लगी हाथयूं मा
ढ़ोल-दमों बजे के
रोण्णु रे वा ढ़ोल दगड़ी
सवा सेर नाज कमै के॥६॥
क्या दिनी हमुन व्वीं तें
एक नौं वू भी दास
क्या बिगाडी वेन हमारो
वी द छो हमारो खास॥७॥
बिपदों को समोदर व्वें गो
ढ़ोल का भीतेर ही रे ज्ञायी
न फुटण द्याई व्वे ढ़ोल ते
व्वें कु मान रखी द्याई॥८॥“
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/04/blog-post_16.html
रचनाकर:- महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Copyright © Mahendra Singh Rana
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह राणा
«
Reply #11 on:
April 16, 2012, 03:55:28 PM »
गढ़वाली कविता:- भरोसु कु उमाल
"मन कु साथ,
भरोसु कु उमाल
अब खत्यै ग्याई
इक टीस त छैई
जिकुड़ी मा,
उ भी फुर्र उड़ी ग्याई
कु ज्याणी क्या ह्वोलु,
आँख्यू का समोदर मा
पनेरा भी समै ग्याई
कै मे बिगाण,
सहारा द्युण वाड़ा
अब दिलासा द्युण ले राई।"
रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक - ०३/०४/२०१२
Copyright © Mahendra Singh Rana
Blog Address –
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह राणा
«
Reply #12 on:
April 20, 2012, 12:53:49 AM »
“परदेशी नि गढ़देशी छों मी”
"अपणों कु ठुकरायु
जमाणु कु गुनेगार छों मी
सेरा जागा मा न ही सही
अपना घोर मा खास छों मी॥१॥
रुवे-रुवे के कटदा म्यारा दिन
सुपनियों मा भी रट्ट लगी रेंदि
दूर जै के गढ़देश बिटि
ब्वे-बाबु की आस छों मी॥२॥
माँ कु लाड़-दुलार
फटकार बाबाक सुभै-सुभै
दीदी-भूलियों दगड़ लड़े-झगड़
दादी बिना उदास छों मी॥३॥
जों दगड़ पढ़ी-खेली
गोरू चराया छुट्टियो मा
दगरियोंक समुण सिरांणा रेंदी
बिन उनारा निराश छों मी॥४॥
थोड्या-मेलो की रंगत
क्ख सुणेली घुघुतिक घूर-घूर
कन होली म्यार घोर मा रोनक
ये सोची की हताश छों मी॥५॥
ढ़ोल-दमों कु घम्घ्याट
अर प्वोथिलों की चकच्याट
ज्यू नि लग्दु जब तुमार बिना
गढ़-गीतो का पास रौं मी॥६॥
इनी लिखयु होलु म्यार कपाल मा
की रे मी गढ़देश से दूर
भै-बन्धों माफ करिया मिते
परदेशी नि गढ़देशी छों मी॥७॥"
रचनाकर:- महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद’
Copyright © Mahendra Singh Rana
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/04/blog-post_18.html
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Re: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेन्द्र सिंह राणा
«
Reply #13 on:
May 27, 2012, 10:44:13 AM »
गढ़वाली कविता- चैत
“घौण्णा बण्णौं मे न जाया चैत का मैना
ऐडि-आंछरी की चलदी व्ख बयाड़,
बैठी के डिंड्याली लगे के मैतियों की आस
अलिवार ल्ये के आला बाबा बैठी रे जग्वाड़।
मैतियों की खातिरदारी खूब करिया
अप्णि मॉ तें भी खीर ब्णै के भेज्या,
सब्युँ की राजी-खुशी जरूर पुछ्या
उनारों आशीर्वाद ल्युण न भूल्या।
बैठी रे दादी दगड़ खूब सेवा भी करया
दादी का औंण-कथा सुण्ण न भूल्या,
लगाया खूब छ्वीं दादी दगड़
मेरी कविताओं ते भी दादी दगड़ बांच्यॉ।
मेरी फिकर न करी लाड़ी
अगिला मैना भेंटुला मी अंग्वाड़,
बैसाख मा देख्या मेरु बाटु
घूमी औला कौतिक भी दाणु मल्याड़।“
रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक - १८/०३/२०१२
Copyright © Mahendra Singh Rana
Blog Address –
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/03/blog-post_19.html
Logged
Devbhoomi,Uttarakhand
MeraPahad Team
Hero Member
Posts: 13,048
Karma: +59/-1
Re: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह raana
«
Reply #14 on:
May 27, 2012, 10:55:41 AM »
Rana bahut sundar kavitayen likhi hain apne,dil ko chhu lene wali Kavitayen,Grate work Keep it up Rana ji
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Re: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेन्द्र सिंह राणा
«
Reply #15 on:
May 27, 2012, 11:36:32 AM »
गढ़वाली कविता:- सुपन्यु मा
"क्वी सुपन्यु मा
ऐ के
सिराणा पे बैठी के
मेरी कन्दुड़यु मा
कुछ बच्यै गै
इनु लगी की
क्वी गीत गुनगुनै गै
गीत चौमासु मे
माया का
गीत बण-बुग्याड़ु मे
हौँस उलार का
गाड़-गधन्यु मे
बगदी उमाड़ का
क्वी गीत गुनगुनै गै
बथौँ सी बणी के
चखुली दगड़
फुर्र-फुर्र
असमान मा उड़ी गै
झट निन्द भी उड़ी त
डिसाण मा बे भुवाँ पौड़्यू रै
क्वी गीत गुनगुनै गै।"
रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक - ०७/०५/२०१२
Copyright © Mahendra Singh Rana
Blog Address –
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/05/blog-post.html
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Re: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेन्द्र सिंह राणा
«
Reply #16 on:
May 27, 2012, 11:42:31 AM »
गढ़वाली कविता – ब्यथा म्यारा देश की
“ये गढ़देश की ब्यथा कै मे सुनाऊँ
ये गढ़देश की ब्यथा कै मे बिंगाऊँ
क्वै ये ब्यथा सुन ले नि राई
‘आजाद’ आज मनै-मन खूब रुवाई
कि गढ़देश की ब्यथा कै मे नि लगाई॥१॥
क्वै साहित्यकारेल सच लेखी यू
कुछ भी झूठ नी लेखन वूँ
“पाणि माँ रे के मगर दगड़ी बैर”
‘आजाद’ आज बुण्यू कै मे लगाणी खैर
हमुन द यू पढ़ी वां बे कुछ नी कैर॥२॥
बस यी ब्यथा गढ़देश मा रएं चा
कि गढ़देश मा गढ़देशी बैर कण्या चा
जलण्या च यूँ य दूसरों तें देखि किन
‘आजाद’ आज बुण्यू पागल ह्वेगे मेरो मन
ये गढ़देश मे रे के मिन क्या कन॥३॥
यीं कारण आज गढ़देश पिछड्यूँ चा
और यख कु बिकास नी होणु चा
देखा आज देश क्ख पौंछी ग्याई
‘आजाद’ सपुगा वास्ता ये लेख्णु राई
कि ‘भैजी’ प्रीत की सीख ले ल्याई॥४॥“
रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक - १२/०५/२००६
Copyright © Mahendra Singh Rana
Blog Address –
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/04/blog-post_22.html
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Re: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेन्द्र सिंह राणा
«
Reply #17 on:
May 27, 2012, 11:47:18 AM »
गढ़वाली कविता:- मिते माफ़ करी द्याई
“पाली-पोषी जौन, ज्वान बनायी
हे! दिदा मिन ऊनु तें,
बुड्या छन मा छोड्यली...
हाथ पकड़ी जौन, मेरी खुट्यो ते समाड़ी
हे! काका मिन ऊनैर,
खुशियोंक टांग टोड्यली...
पढ़े-लिखे जौन, आज काबिल बनायी
हे! बौड़ा मि ऊनु ते,
आज कनके बिसरी ज्ञायी
कभी माया कु लोभ, कभी सुखों का बाना
हे! माँजी लाडु तेरो,
बाटु बिरडी ज्ञायी...
रिटी-रिटिक सैरी पिरथी, जब याद ‘घौर’ आई
हे! बाबा अब ता,
‘आजाद’ गढ़देश ‘फ़र्गी’ ज्ञायी...
लाडु छौं मि तुमारो, गलती ह्वे ज्ञायी
हे! ब्वै-बाबा मेरा,
मिते माफ करी द्याई...।”
(घौर- घर, फ़र्गी- वापस लोटना)
रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक - १९/०५/२०१२
Copyright © Mahendra Singh Rana
Blog Address –
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/05/blog-post_20.html
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Re: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेन्द्र सिंह राणा
«
Reply #18 on:
May 27, 2012, 11:52:02 AM »
गढ़वाली कविता - 'चखुली जनी माया'
"धार-चौबाटा
सैरा-सौपाटा
ढ़ैऽपुरी-धुरपाऽड़ा
गोँऽड़ो-गोरबाटा
बऽणौँ-बुज्याऽणा
छानियुँ कोल्यणा,
म्येरी चखुली जनी माया
वेँ तेँ खुज्याणी रे,
सेरा गौँउ का
म्यारा नौ कु पिछ्याऽड़ी
बौड़्या लगाणी रे,
रात त हमेश आन्दी पर
'आजाद' तेँ चाँद नि दिखेण्दु।"
रचनाकार - महेन्द्र सिँह राणा 'आजाद'
दिनाँक - 23/05/2012
Copyright © Mahendra Singh Rana
Blog Address -
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/05/blog-post_26.html
Logged
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'
Newbie
Posts: 19
Karma: +0/-0
Re: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेन्द्र सिंह राणा
«
Reply #19 on:
May 27, 2012, 11:56:48 AM »
क्रिमुलोँ सी धार ! (गढ़वाली कविता)
"क्रिमुलोँ सी धार
बगणी छन उन्धार
क्वी बिँग्लु सार
क्वी बतालु बिचार
सुँग-सुँगऽ, सुँग-सुँगऽ
ऐका का पिछ्याड़ी द्वी
द्वीकोँ का पिछ्याड़ी...
अब क्या ब्वन
क्रिमुला भी जान्दा
बौड़ी कै त आन्दा
अपणा पुथलोँ तेँ
दुध-बाड़ी ल्यान्दा
य त क्रिमुलोँ से
परे ह्वै गै
बान्दरोँ सी ठटा ल्गै कै
अपणा काखी पै चिपकै कै
गरुड़ जनी उडै गै
जरा वैँ कु भी त स्वाचौँ
जौन काखी पै चिपकै कै
दूधैक धार गिचा पै लगै कै
अपणा खुच्ली मा सैवायी
जरा स्वाच...
जख तू रलौ
वखी बरकत रैली!"
महेन्द्र सिँह राणा 'आजाद'
© सर्वाधिकार सुरक्षित
23/06/2012
Blog Address –
http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/06/blog-post_22.html
Logged
Send this topic
Print
Pages:
1
[
2
]
3
MeraPahad Community Of Uttarakhand Lovers
»
Uttarakhand
»
Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
(Moderators:
Dinesh Bijalwan
,
Saket Bahuguna
) »
Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह raana
Sitemap
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
15
16
17
18
19
20
21
22