धन छ्या तुम दीदी भूली
म्यार पहाड की नारी
त्यार मन की पीडा
कभी कैन नी जांणी
बरखा मा बत्वाणी मा
पुंगड्युं मा छै जांणी
त्यार मन की पीडा
कभी कैन नी जांणी
रुजद भिगद डाल भ्याल
घास कुन छै जांणी
अफु दिनभर भुख तीस
गोरु कुन हरी घास छै लांणी
रुड्युं क घाम मा
हींयुदु क जडु मा
कन खैरी खंदा तुम
जब जंदा जुगंल्या पांणी मा
कुटुमदरी यखुली घर
दुध्यारु नौन छुड्युं च
घास कुन बंणु बंणु मा
खैरी कन खांणी च
धन छ्या तुम दीदी भुली
म्यार पहाड की.......
सर्वाधिकार.सुरक्षित@सुदेश भटट(दगडया)फोटो साभार शोभाराम रतुडी जी