Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447236 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
गुस्सा

गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा
बात मेरी माण भुलोहं
गुस्सा णी करदा

देखा दुनियादरी मा फर्क ऐ जांद
रिश्तेदार सब छुडी चल जांद
मवासी बरबाद व्हये जाण
गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा........

एक लहर का गुस्सा भूलह
पीड़ा उमर भर की
गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा........

जैल साहई तैल पायी
पूराणु जमणु को मिशाल लाई
गुस्साणी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा........

गुस्सा कै की तिल क्या पाई
बाद मा बस तील यकुली रै जाणद
गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा........

यख जब सब छुडी की जांद
कीले मनख्यूं छे यख तडपंद
गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा........

बात बात मा झख झख
कैल करण याद जब णी रैलू यख
दो बोलो मीठी सी
मीठी ये गोली जीवन की
गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा......

दो घड़ी बैठा कर विचार
गुस्सा णी चलुँल तेरु घरबार
जब टूट जली नातों की दीवार
रै जलो ये गुस्सा तेरु साथ
गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा......

सोच समझली ये बात
एक गांठ बंधा कमरी मा आज
गुस्सा थै जो काबू कै जांदू
जीन्दगी मा सब मंगल व्हये जांदा
गुस्सा णी करदा भुलोहं
गुस्सा णी करदा......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
घ्यापलू बाडा
 
 चाय की दुकानी मा बैठयुंच
 आपरी जीमैदारी मा बैठयुंच
 चाय पीलाणु मी मीठी मीठी
 छुंयीं लगदु मी मीठी मीठी       
 मी घ्यापलू दादा  पहाडा को
 मेर चाय की दुकैन पुअडी बाजार को ......
 
 दूध चीनी पाणी पत्ती
 छुंयीं लगा लगा तो गाप्पी
 विपदा खैरी यख सब  हर्ची
 चाय बाण रुपया दोई  खर्ची
 मी घ्यापलू दादा  पहाडा को
 मेर चाय की दुकैन पुअडी बाजार को ......
 
 चुल्हमा चाय जब पक्की
 आगा दगड जमगै तब गटी
 उमली चाय की देख ऐगै
 अद्रक स्वाद पहाडा मा छेगै 
 मी घ्यापलू दादा  पहाडा को
 मेर चाय की दुकैन पुअडी बाजार को ......
 
 दोई क्षण  मेर दुकानी मा ऐ
 चाय चुस्की कु तो भी माजा लै
 दुःख आपडा सब तू भूली जै
 कभी त आपडा बाण भी जीले
 मी घ्यापलू दादा  पहाडा को
 मेर चाय की दुकैन पुअडी बाजार को ......
 
 हसदा हसदा रैर्हैगु दुकानी मा 
 कैल ना देखी ईण आंखी मा
 एक एक छुडीगै पह्डा थै
 को याद करूलू घ्यापलू बाडा थै
 मी घ्यापलू दादा  पहाडा को
 मेर चाय की दुकैन पुअडी बाजार को ......
 
 चाय की दुकानी मा बैठयुंच
 आपरी जीमैदारी मा बैठयुंच
 चाय पीलाणु मी मीठी मीठी
 छुंयीं लगदु मी मीठी मीठी       
 मी घ्यापलू दादा  पहाडा को
 मेर चाय की दुकैन पुअडी बाजार को ......
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
शब्द (अक्षर )
 
 बाद मुदत शब्द से मुलकात होयी
 उसे समझने मै ही उमरदरज गयी
 
 कोशीश की थी मैने वो नाकाम होयी
 दर्पण मै मेरी तस्वीर मक़ाम होयी
 
 गैरैतै चश्म का वो इजहार सा होआ
 पर्दाये हुस्न शब्द से करार सा होआ
 
 गर की सूरत सी वह मुझसे शुमार होयी
 कलम ये दावत के फर्श पर बीमार होयी
 
 कतराये खून की शोखी मै वो गुलबदन
 पतझड़ ये अशीकी मझार मै दफाहा होयी
 
 शब्द नै देखी जब खुद की गुरबातै बोन्द
 हलक मै शब्द के फिर से सरसाहटा होयी
 
 बाद मुदत शब्द से मुलकात होयी
 उसे समझने मै ही उमरदरज गयी
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ लालच
 
 देखा दुनिया की गलियारों मै
 नचा रहा वो अब घर चोबाराओं मै
 
 इज्जत उछाली उसने अब बीच बाजारों मै
 जो छीपी थी कल तक उस चार दीवारों मै
 
 रिश्ते की जोड़ को उसने जो ऐसा तुड़ा
 दिल के उस टुकडे को कंही का ना उसने छुड़ा
 
 माँ पिताजी का आँखों नूर था जो अब  तक
 उनकी रोशनी को उसने कैसे अंधकार मै छुड़ा
 
 नये रिश्ते की थी अगवाई बाजी जब शहनाई थी
 लाल रंग के जोड़े मै एक जुदाई इस घर मै आयी थी
 
 कर दिया ऐसा जादु किसी का ना रहा अब काबू
 कोंन माईया कोंन बाबा अप शब्दों का बना वो साधु
 
 रिश्ता था जो बेटे का वो देखो ताड़ ताड़ होआ
 घुशो और लातों से उस पर कलीयुग सवार होआ
 
 माना ना वो मन मर्जी खुदगर्जी नारी के लिये लाचार होआ
 अब देखो हरा घर घर मै किस्सा अब ये सारे आम होआ
 
 देखा दुनिया की गलियारों मै
 नचा रहा वो अब घर चोबाराओं मै
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
ईणबी तिणबी
 
 ईणबी तिणबी  यख या वख
 जख भी तख भी गुजर जाली
 कण कै हम दगडी रूशी रहली
 ये पहाडा ये  कुमो गाढवाला मा
 जण तण भी वहाली जिन्दगी नीभै जाली
 ईणबी तिणबी  .......................
 
 दगडी   दगडी  रुंला
 गरीबी मा ये दगडया  मेरा 
 रुखी सुखी खाकी रान्होंला 
 कपड़ों मा थाग्ल्या लगा कै की दिण कटोंला
 ईणबी तिणबी  .......................
 
 कंण कै ये पहाड़ थै छोड़ी जाण 
 ये गढ़ यकुली कण कै  रैहण 
 माया जुडी मेरी सी यख  ये गेल्या
 भोल्ह परबत आज मेर स्वामी सबोल यख ही आण
 ईणबी तिणबी  .......................
 
 गढ़ मेर स्वामी यखुली आज
 सब छुडगै यैका साथ
 जब बाणली ये गढ़ देश की बात
 एक दीण प्रवाशी उत्तरखंडी  बोउडी  आन्द
 
 ईणबी तिणबी  यख या वख
 जख भी तख भी गुजर जाली
 कण कै हम दगडी रूशी रहली
 ये पहाडा ये  कुमो गाढवाला मा
 जण तण भी वहाली जिन्दगी नीभै जाली
 ईणबी तिणबी  .......................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ

हो मै

गिर गिर के उठा मै
उठकर फिर चला मै
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

इंसानीयत ढूंढ़ रहा मै
उस का नहीं मिला पता
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

किस कब्र से किस स्मशान से
वो रही है मुझे पुकार
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

आज लुटतै देख लिया हमने
ईमान-जिस्म बीच बाजार
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

रोटी के खातिर खेला खेल ऐसा
जुंबा चुप है आंखें कर रही बयां
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

रिश्तों की आज तो होली लगी
नुकाड़ नुकड़ उनकी बोली लगी है
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

धर्मं के नाम पर क्यों इठलाता है
दो भगों मै तु बटा नजर आता है
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

शर्म से गर्दन झुखी है तेरी
सीन आज किस लिये है ताना
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

गंध इतनी आरही है तुझ से
शव तेरा आर्थी का है फूलों से सजा
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

संसार के मोहा से इतना जुड़ा
खुदा से ही बन्दै आज हो गया कितना जुदा
इन्सान हों मै इसका गुमा...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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Bahut Sunder Dhyani g... keep posting.

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
हो मै
 
 गिर गिर के उठा मै
 उठकर फिर चला मै
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 इंसानीयत ढूंढ़ रहा मै
 उस का नहीं मिला पता
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 किस कब्र से किस स्मशान से
 वो रही है मुझे पुकार
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 आज लुटतै देख लिया हमने
 ईमान-जिस्म बीच बाजार 
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 रोटी के खातिर खेला खेल ऐसा
 जुंबा चुप है आंखें कर रही बयां
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 रिश्तों की आज तो होली लगी
 नुकाड़ नुकड़ उनकी बोली लगी है
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 धर्मं के नाम पर क्यों इठलाता है
 दो भगों मै तु बटा नजर आता है
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 शर्म से गर्दन झुखी है तेरी
 सीन आज किस लिये है ताना
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 गंध इतनी आरही है तुझ से
 शव तेरा आर्थी का है फूलों से सजा
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
 संसार के मोहा से इतना जुड़ा
 खुदा से ही बन्दै आज हो गया कितना जुदा
 इन्सान हों मै इसका गुमा...............
 
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
ईणबी तिणबी
 
 ईणबी तिणबी  यख या वख
 जख भी तख भी गुजर जाली
 कण कै हम दगडी रूशी रहली
 ये पहाडा ये  कुमो गाढवाला मा
 जण तण भी वहाली जिन्दगी नीभै जाली
 ईणबी तिणबी  .......................
 
 दगडी   दगडी  रुंला
 गरीबी मा ये दगडया  मेरा 
 रुखी सुखी खाकी रान्होंला 
 कपड़ों मा थाग्ल्या लगा कै की दिण कटोंला
 ईणबी तिणबी  .......................
 
 कंण कै ये पहाड़ थै छोड़ी जाण 
 ये गढ़ यकुली कण कै  रैहण 
 माया जुडी मेरी सी यख  ये गेल्या
 भोल्ह परबत आज मेर स्वामी सबोल यख ही आण
 ईणबी तिणबी  .......................
 
 गढ़ मेर स्वामी यखुली आज
 सब छुडगै यैका साथ
 जब बाणली ये गढ़ देश की बात
 एक दीण प्रवाशी उत्तरखंडी  बोउडी  आन्द
 
 ईणबी तिणबी  यख या वख
 जख भी तख भी गुजर जाली
 कण कै हम दगडी रूशी रहली
 ये पहाडा ये  कुमो गाढवाला मा
 जण तण भी वहाली जिन्दगी नीभै जाली
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
रुपया हरच्यूं छे
 
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया
 कखक भाटैक तु आई
 कखक भाटैक तिल जाण
 तु कैं किसा मा रहलो
 कैंका किसा रिटा करी जालो
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया ..........................
 
 कैंकी विपदा तु हरैली
 कैंकु कुल्हंण लमडली
 माय जीकोड़ी लगैकी
 कीथै बुआल्या बाणुली 
 कैंकु दैण हाथ मा आली
 कैंकु बायाँ हाथ भैर जाली
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया ..........................
 
 हाथा की रेघा मा छुपी छे
 या कपाली मा तु लुकी छे
 भाग्या मा तु दमड़ी छे
 या फिर भुमी मा रुत्युं छे
 ढुंढहली मील कखक कखक 
 कखक बै तु हरच्यूं  छे 
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया ..........................
 
 बैमानु मा छे तु या
 तु इमानदारी दगडी छे
 ठेकादरो तिजोरी मा बैठ्युं छे या
 ध्याड़ी कमाव्णु मजदोर कुड़ी मा पड़यूँ छे
 के कै हाथा मा तु ग्याई
 पर मील ना तीथै कखक पाई
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया ..........................
 
 
 कैंकु हस्याणु व्हालो
 कैं लाठ्याला रुणालु वहालू   
 मनख्यूं दगडी कभी कबार
 आपरू परयूं मा भेद बताणु वहालू
 गोल गोल गोल केंकी  सब थै घुमाणु व्हालो
 ये पीछ पडै मी थै आज कीले हर्ष्याणु वहालू   
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया ..........................
   
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया
 कखक भाटैक तु आई
 कखक भाटैक तिल जाण
 तु कैं किसा मा रहलो
 कैंका किसा रिटा करी जालो
 गोल गोल रुपया
 बोल बोल रुपया ..........................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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