देव भूमि बद्री-केदार नाथहो मै
गिर गिर के उठा मै
उठकर फिर चला मै
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
इंसानीयत ढूंढ़ रहा मै
उस का नहीं मिला पता
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
किस कब्र से किस स्मशान से
वो रही है मुझे पुकार
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
आज लुटतै देख लिया हमने
ईमान-जिस्म बीच बाजार
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
रोटी के खातिर खेला खेल ऐसा
जुंबा चुप है आंखें कर रही बयां
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
रिश्तों की आज तो होली लगी
नुकाड़ नुकड़ उनकी बोली लगी है
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
धर्मं के नाम पर क्यों इठलाता है
दो भगों मै तु बटा नजर आता है
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
शर्म से गर्दन झुखी है तेरी
सीन आज किस लिये है ताना
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
गंध इतनी आरही है तुझ से
शव तेरा आर्थी का है फूलों से सजा
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
संसार के मोहा से इतना जुड़ा
खुदा से ही बन्दै आज हो गया कितना जुदा
इन्सान हों मै इसका गुमा...............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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