Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447235 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
Uttrakhand People
 This poem composed by Hem Bahuguna describe the plight of Uttarakhand.
 
 माँगा था जो उत्तराखंड,वो कहा से लाऊँ?
 
 सूखने लगी गंगा, पिघलने लगा हिमालय!
 उत्तरकाशी है जख्मी, पिथोरागढ़ है घायल!
 बागेश्वर को है बेचेनी, पौडी मे है बगावत!
 कितना है दिल मे दर्द, किस-किस को मैं दिखाऊ!
 माँगा था जो उत्तराखंड,वो कहा से लाऊँ?
 
 मडुवा, झंगोरे की फसले भूल!खेतो मे जीरेनीयम के फूल!
 गांव की धार मे रीसोर्ट बने!गांव के बीच मे स्वीमिंग पूल!
 कैसा विकास? क्यों घमंड?क्या ऐसा मागा था उत्तराखण्ड?
 विकाश के नाम पर ऐसी लूट,जो था वो भी लुटाऊँ,
 माँगा था जो उत्तराखंड,वो कहा से लाऊँ?
 
 मुद्दतों से विकास की बातें,प्यासे दिन अँधेरी रातें,
 जातीवाद का जहर यहाँ,ठेकेदारी का कहर यहाँ,
 घुटन सी होती है अब तो,आखिर अब कहा जाऊँ?
 माँगा था जो उत्तराखंड,वो कहा से लाऊँ?
 
 वन कानूनों ने छीनी छाह,वन आबाद और बंजर गांव,
 खेतो की मेडे टूट गयी,अपनी ही संस्कृती छुट गयी,
 क्या गडवाल? क्या कुमाऊँ?
 माँगा था जो उत्तराखंड,वो कहा से लाऊँ?
 
 लुप्त हुए स्वालंबी गांव,कहा गयी आफर की छाव?
 हथोडे की ठक-ठक का साज,धोकनी की गरमी का राज,
 रीगाल के डाले और सूप,सैम्यो से बनती थी धुप,
 कहा गया ग्राम्य उधोग? क्यों लगा पलायन का रोग?
 यही था क्या "म्यर उत्तराखण्ड"?अब मांग के पछताऊँ,
 माँगा था जो उत्तराखंड,वो कहा से लाऊँ?.....................aRun

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी ओझल
 
 फिर अब बस अब तो
 देख जरा तु  इस पल को 
 
 कांहीं खड़ा है कंही बैठा
 कंही चल रहा कंही थमा
 
 कभी साँस के साथ जुडा
 कभी उससे होआ जुदा
 
 कभी कंधे से दिखा झुखा
 कभी सीने साथ मिला ताना
 
 कभी पांन की तरंह चबा
 कभी दीवारों पर पाया थूका
 
 जंहा पाया मैने उस पल को
 खोया उसे मैने दुजै पल को
 
 फिर नासमझ उस पल को
 बोझल होआ वो उस कल को
 
 फिर अब बस अब तो
 देख जरा तु  इस पल को 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ


ॐ साईं राम  सबका मालिक एक
 
 सबका मालिक एक
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने
 आवाज आयी कंही से किसने जगाया मुझे
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 ऐ मेरे मालिक ऐ मेरे खुदा
 तु ही ईश कर सबका भला 
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 रोतों को अब  हंसा
 पाया करम  शीश यंहा झुख
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 एक ही है हम सब
 यह रहा दिखया तुने
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 कदम जो बढाया मैने
 गले से लगाया तुने
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 सतगुरु तु जग का
 सत मार्ग पर चला मुझे
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 भटक गर मै जाओं
 दीपक की लो जलकर रहा दिखा   
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 तेरी महिमा को कैसे बखान करो
 इस जीव्हाह तेरे शब्द प्रधान करों
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 साई मेरे साई इस जग मै
 जगमग तेरी ज्योत जले
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 एक बार जो भजै तुझे यंहा
 अनंत तक उस के साथ चले
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने ...................
 
 तेरे दर पर सर झुकाया मैने
 आवाज आयी कंही से किसने जगाया मुझे
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ कल
 कल रात इन्तजार था
 चाँद नजर ना आया
 बदली मै छुपा रहा वो
 बाहर नजर ना आया
 कल रात इन्तजार था .............
 
 मुंडेर बैठा रहा वो
 वो प्यार नजर ना आया 
 एक एक पल बीता यूँ
 पर वो यार नजर ना आया
 कल रात इन्तजार था ...............
 
 तनहाई का मोसम था
 पर बाहार नजर ना आया
 बैठा रहा यूँ अकेले मै
 वो ऐतबार नजर ना आया
 कल रात को इन्तजार था ..............
 
 खामोश वकत गुजरा
 पर करार नजर ना आया
 पुरी रात गुजरी यूँ ही
 पर प्यार नजर ना आया
 कल रात इन्तजार था .............
 
 आया तो आया यही
 बस इन्तजार नजर आया
 बैठे रहा यूँ ही मै
 ना उसे ऐतबार नजर आया 
 कल रात इन्तजार था .............
 
 कल रात इन्तजार था
 चाँद नजर ना आया
 बदली मै छुपा रहा वो
 बाहर नजर ना आया
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ आवाज आती है
 
 आवाज आती है पहाड़ों से कंही
 मुझे बुलाती है पहाड़ों से कंही
 सड़कें ऐ रहें निगाहें हैं कंही
 अकेलें सिस्कीयां गाती है कंही
 आवाज आती है .............
 
 आवाज आती है गांवों से कंही
 पगंडंडीयाँ बुलाती अपनों को कंही
 बचपन आवाज साथ देता है
 जवानी साथ छुड देता है
 आवाज आती है .............
 
 आवाज आती है मकानों से कंही
 चबुतरा ओ छाजा बुलाता है कंही 
 ओ प्यार ओ दुलार उमड़ता है
 आँखों मै अब भी ओ उभरता है
 आवाज आती है .............
 
 आवाज आती है इस दिल मै कंही
 मुझे बुलाती है वो सात वचन कंही
 माँगा मै सिंदूर वो सजती होगी
 अपने आप को समझती होगी
 आवाज आती है .............
 
 आवाज आती है उतराखंड से कंही
 मुझे बुलती है जन्म भुमी यंही
 मिट्टी मिट्टी को ही पुकारती है
 उस से अलग वो कैसे रह पाती है
 
 आवाज आती है .............
 
 आवाज आती है पहाड़ों से कंही
 मुझे बुलाती है पहाड़ों से कंही
 सड़कें ऐ रहें निगाहें हैं कंही
 अकेलें सिस्कीयां गाती है कंही
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
कल
कल रात इन्तजार था
चाँद नजर ना आया
बदली मै छुपा रहा वो
बाहर नजर ना आया
कल रात इन्तजार था .............

मुंडेर बैठा रहा वो
वो प्यार नजर ना आया
एक एक पल बीता यूँ
पर वो यार नजर ना आया
कल रात इन्तजार था ...............

तनहाई का मोसम था
पर बाहार नजर ना आया
बैठा रहा यूँ अकेले मै
वो ऐतबार नजर ना आया
कल रात को इन्तजार था ..............

खामोश वकत गुजरा
पर करार नजर ना आया
पुरी रात गुजरी यूँ ही
पर प्यार नजर ना आया
कल रात इन्तजार था .............

आया तो आया यही
बस इन्तजार नजर आया
बैठे रहा यूँ ही मै
ना उसे ऐतबार नजर आया
कल रात इन्तजार था .............

कल रात इन्तजार था
चाँद नजर ना आया
बदली मै छुपा रहा वो
बाहर नजर ना आया

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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आज भी मन उधास है
 कोई नहीं साथ अकेले चला जा रहा हूँ
 मंजील आपनी मै क्या  खो रहा हूँ
 गैर सैण के मुदे पर जन कीतना  गुम
 उनकी इस गुम मै गुमसुदा सा माहसुस कर रहा हूँ
 आगया ओ भी मंजर
 जब चलेंगे ये सै खंजर
 तू भी फीकर मात कर
 दूर खड़ा तमाशगीन सा
 खड़ रहा अपने खवाबों सै जुड़ रहा
 देश सै तू जुदा रहा
 एक दिन आएगा येसा
 उस दिन मै  जाउंगा
 उस दिल को छु कर
 तेरे भी मुख सै आयेगी ये आवज़
 इन्कलाब जिंदाबाद इन्कलाब जिंदाबाद
 वन्देमातरम वन्देमातरम
 आज भी मन उधास है
 कोई नहीं साथ अकेले चला जा रहा हूँ
 मंजील आपनी मै क्या  खो रहा हूँ
 गैर सैण के मुदे पर जन कीतना  गुम
 उनकी इस गुम मै गुमसुदा सा माहसुस कर रहा हूँ   
 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ गमै तन्हाई
 
 तेरी याद ओर बस गमै तन्हाई
 लो नीगोडी बरसात मुझे रुलाने चली आयी है 
 तेरी याद ओर बस गमै तन्हाई.............................
 
 आंसूं आंखें दो सहेली हैं

 उलझी दोनों मै एक पहेली है
 सुलझने लगी वो अकेली है
 तेरी याद ओर बस गमै तन्हाई.............................
 
 ख्याले तरनुम ने ली अंगडाई
 बादलों से छनकर वो चली आयी है
 साथ मेरे तु ओर वो रुसवाई
 तेरी याद ओर बस गमै तन्हाई.............................
 
 छाया घनाघोर अन्धेरा है
 कलियारी रात का वो बसेरा है 
 दीपक जला बस वो मेरा है
 तेरी याद ओर बस गमै तन्हाई.............................
 
 तेरी याद ओर बस गमै तन्हाई
 लो नीगोडी बरसात मुझे रुलाने चली आयी है 
 तेरी याद ओर बस गमै तन्हाई.............................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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कल
 कल रात इन्तजार था
 चाँद नजर ना आया
 बदली मै छुपा रहा वो
 बाहर नजर ना आया
 कल रात इन्तजार था .............
 
 मुंडेर बैठा रहा वो
 वो प्यार नजर ना आया 
 एक एक पल बीता यूँ
 पर वो यार नजर ना आया
 कल रात इन्तजार था ...............
 
 तनहाई का मोसम था
 पर बाहार नजर ना आया
 बैठा रहा यूँ अकेले मै
 वो ऐतबार नजर ना आया
 कल रात को इन्तजार था ..............
 
 खामोश वकत गुजरा
 पर करार नजर ना आया
 पुरी रात गुजरी यूँ ही
 पर प्यार नजर ना आया
 कल रात इन्तजार था .............
 
 आया तो आया यही
 बस इन्तजार नजर आया
 बैठे रहा यूँ ही मै
 ना उसे ऐतबार नजर आया 
 कल रात इन्तजार था .............
 
 कल रात इन्तजार था
 चाँद नजर ना आया
 बदली मै छुपा रहा वो
 बाहर नजर ना आया
 
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
 शुभ प्रभात  उत्तरखंड
 शुभ शुभ अचल विचल नभ थल जल वायु अग्नी जब हो संग
 तो चलो आज  ये वाद करलो
 कभी ना बिछडैगें हम
 जय बद्री-केदार जय उत्तरखंड   
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी का ये वादा रहा


 

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