Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447344 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सोया समाज
 
 कविता को खोया पाया
 समाज मै उसे सोया पाया
 
 चीखती रही चिलाती रही
 दुःख-दर्द से वो कहराती रही
 
 भुख के फंदे मै झूली सखी
 आपनो से ही रूठी कभी
 
 शहरों की राहों मै छुड़ा पाया
 गावों के खेतों मै बोया पाया
 
 महंगाई संग नाचती रही
 गरीबी का मातम बनती रही
 
 देहज के बंधन मै बंधी वो
 सती संग चिता चड़ी वो
 
 रही चीखती चिलाती वो
 एक आह बस अब गाती वो
 
 कविता को खोया पाया
 समाज मै उसे सोया पाया
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with Gudiaa Singh Parihar and 46 others.Like

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ अकेला
 
 अकेला चला  मै
 साथ साथ चला मेरे
 मन और मंजील
 दिल और धड़कन
 अकेला चला मै ...............
 
 नये पल के लिये
 बीते पल का साथ लिये
 तनहाई और यादों को पास लिये
 पथ मै आगे बड़ा मै
 अकेला चला मै ...............
 
 छुटा बचपन
 ओर गया लड़कपन
 जवानी को साथ लिये
 एक नयी आशा पास लिये
 अकेला चला मै ...............
 
 संग विश्वास लिये
 आँखों मै स्वप्न लिये
 ईछा शक्ती का भार लिये
 रहा मै बड़ा जा रहा था मै
 अकेला चला मै ...............
 
 अकेला चला  मै
 साथ साथ चला मेरे
 मन और मंजील
 दिल और धड़कन
 अकेला चला मै ...............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with Mahi Singh Mehta




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विदेश गयुं बाबा 
 
 ध्यै लगाणु ,लगाणु  मी  ये बाबा ये बाबा
 तु कखक लुकी, लुकी मेरा बाबा
 
 जख भी दय्खी मील
 बोई थै ही पाई मील
 खोज्युं फिरू यख वख
 बाबा तु मीलुल कखक 
 
 ध्यै लगाणु ,लगाणु  मी  ये बाबा ये बाबा
 तु कखक लुकी, लुकी मेरा बाबा
 
 बोई थै पुछी मील
 दादा दादी थै पुछी
 सबुल बोल मी थै
 रुपया लाणु गयुं बाबा   
 
 ध्यै लगाणु ,लगाणु  मी  ये बाबा ये बाबा
 तु कखक लुकी, लुकी मेरा बाबा
 
 तब सोची मील
 म्यार गढ़देश मा रुपया णी छीन
 वैथा कमाणु कीले गै   
 विदेश मेरू  बाबा
 
 ध्यै लगाणु ,लगाणु  मी  ये बाबा ये बाबा
 तु कखक लुकी, लुकी मेरा बाबा
 
 घरबार गुओं-गौठायार
 अपरू मुलुक तीज तियौहर
 दादा दादी बोई मी थै छुडी
 कीले उडी सात समुद्र पार
 
 ध्यै लगाणु ,लगाणु  मी  ये बाबा ये बाबा
 तु कखक लुकी, लुकी मेरा बाबा
 
 लगी छे मीथै बाबा की खुद
 बाबा बुडौली की लागी भुक
 झट दोउडीकी ऐजा सुरुक
 नींदी णी ऐणी बाबा ऐजा मुलुक 
 
 ध्यै लगाणु ,लगाणु  मी  ये बाबा ये बाबा
 तु कखक लुकी, लुकी मेरा बाबा
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत



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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मील यखी रैण
 
 ईणी रुल्युं मा छुं मी
 तै ढुंगुयुं मा फुकयुं छुं
 फिनक मेरा उडी यख
 कपाल मेरु फुटी यख
 मी यखी छों बल अब यखी रैण !!
 
 देख दूर गामा पुँर
 तै कूड़ा मा जन्म्युं छुं
 तै चौक मा पडयुं छुं
 ये दुर्पली थै ऊखरी छुं
 मी यखी छों बल अब यखी रैण !!
 
 तै पुंगडी मा जम्युं छुं   
 तै डाली मा बैठ्युं छुं   
 तै गोउडी बलद चराणु छुं
 ये माटी दगडी मी अब भी छुं   
 मी यखी छों बल अब यखी रैण !!
 
 सब यखी का यखी रहई
 मी भी अब यखी रैण
 ये उत्तरखंड तै बीगर मील
 कणकै तीथै छुडीक जैण
 मी यखी छों बल अब यखी रैण !!
 
 जुण मेरी जीकोडी का
 कण कै तिल यकुली रैण
 जीन्दगाणी गयी मेरी यख
 मोरगयुं मीत क्या वाहाई
 मी यखी छों बल अब यखी रैण !!
 
 ईणी रुल्युं मा छुं मी
 तै ढुंगुयुं मा फुकयुं छुं
 फिनक मेरा उडी यख
 कपाल मेरु फुटी यख
 मी यखी छों बल अब यखी रैण !!
       
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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प्रवासी उत्तराखंडी 
 
 अबरी दं
 उपरी तु ऐई
 गड्देश मा बसी खुद
 उखरी की लैई जैई
 अबरी दं ....................................
 
 गला मा बडुली
 ऐई लागैई की
 कदुली खुदै की
 बीजाणों लागैकी
 अबरी दं .......................................
 
 यख का ढुंगा
 यख का गारा
 बथों दगडी बजे बाराह
 दोपरही का घाम तिसलु
 आज ऐकी बैठा जा सैलु का छाला
 अबरी दं .......................................
 
 गढ़ देशा की  हसु
 अपरी दगडी लै जैई 
 इन अन्ख्युं मा
 बस दगडया आसूँ छुडी जैई 
 अबरी दं ......................................
 
 अबरी दं
 उपरी तु ऐई
 गड्देश मा बसी खुद
 उखरी की लैई जैई
 अबरी दं ....................................
 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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खुद को देखा कभी
 
 
 दर्पण मै जब देखा आपने को
 कोई और सा लगा उस सपने को
 मै मै ना था कोई और खड़ा था
 फिर क्यों लग रह था अपना सा   
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
 बात कीया जब मैने सपने से
 दर्पण मै खड़ा उस आपने से
 मुख ना खुला उसने जरा सा भी
 मुस्कुरा दिया उसने बस होलै से
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
 मुश्काना भी अंनजना सी लगी
 खुद को खुदा की पहचाना मै लगी
 खुद को कभी देखा था ठीख से
 अपने ही आप से ऐ बोला था कभी 
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
 दर्पण मै जब देखा आपने को
 कोई और सा लगा उस सपने को
 मै मै ना था कोई और खड़ा था
 फिर क्यों लग रह था अपना सा   
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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भाग
 
 भाग का बल को खैलु
 मील खैणी या तिल खैणी
 विपदा खैरी का बाटा
 मील जाणी या तिल जाणी
 भाग का बल को खैलु............
 
 धरा मा नीच सारु खेला रै
 मरणु उपरान्त लगदु वख
 जीकोडी को जुण को मैला रै 
 तख जणु सबुल यकुला रै
 भाग का बल को खैलु............
     
 सारु कर्मा को ये झुला रै
 यख तु खुब ये झुला मा झुला रै
 वख एक एक कर जाण भुला रै
 आज मेर बेल च भौहल तेर होली रै
 भाग का बल को खैलु............
 
 भाग का बल को खैलु
 मील खैणी या तिल खैणी
 विपदा खैरी का बाटा
 मील जाणी या तिल जाणी
 भाग का बल को खैलु............
 
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नारी हूँ
 
 मै नारी हूँ
 सत्य है या
 कटु सत्य है
 या अर्ध सत्य है
 मै नारी हूँ.....................
 
 एक रहा है बनी है 
 पुरषों वाली
 उस मार्ग पर
 पथक बन चली जा रही हूँ
 मै नारी हूँ......................
 
 समाज रूपी
 बधन मै बंधी जा रही हूँ
 खुद के दायरे मै
 सिमटी जा रही हूँ
 मै नारी हूँ......................
 
 अश्कों के घेरे
 मै दबी जा रही हूँ
 अपने अस्तित्व के लिये
 मै लड़ी जा रही हूँ
 मै नारी हूँ......................
 
 मै नारी हूँ
 सत्य है या
 कटु सत्य है
 या अर्ध सत्य है
 मै नारी हूँ
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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खुद को देखा कभी
 
 
 दर्पण मै जब देखा आपने को
 कोई और सा लगा उस सपने को
 मै मै ना था कोई और खड़ा था
 फिर क्यों लग रह था अपना सा   
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
 बात कीया जब मैने सपने से
 दर्पण मै खड़ा उस आपने से
 मुख ना खुला उसने जरा सा भी
 मुस्कुरा दिया उसने बस होलै से
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
 मुश्काना भी अंनजना सी लगी
 खुद को खुदा की पहचाना मै लगी
 खुद को कभी देखा था ठीख से
 अपने ही आप से ऐ बोला था कभी 
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
 दर्पण मै जब देखा आपने को
 कोई और सा लगा उस सपने को
 मै मै ना था कोई और खड़ा था
 फिर क्यों लग रह था अपना सा   
 दर्पण मै जब देखा आपने को...................
 
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उसी कोने मै
 
 उदास बैठे रहे
 दीवारों के कोने मै
 सर को टिका कर रखा
 उस तकीया के खोले मै
 आवाज आयी दुर कंही
 किसी के रोने की
 सीस्कीयाँ आती है
 अब भी उसी कोने मै ..................
 
 तड़प ही बची है
 कुछ खरोंचों के साथ
 यादें ही बसी अब
 उन रातों के साथ
 कभी चुपके से
 वो जाता था पास
 बिखरे सपनो मै
 दै जाता वो साथ
 अब भी उसी कोने मै ..................
 
 जलते दिये की
 ना करो अब बात
 अब भी जलता है
 उस कोने के साथ
 फैला रहा उजाला
 अंधेरे के साथ साथ
 जला जिसके लिये
 वो ही नहीं पास
 अब भी उसी कोने मै ..................
 
 उदास बैठे रहे
 दीवारों के कोने मै
 सर को टिका कर रखा
 उस तकीया के खोले मै
 आवाज आयी दुर कंही
 किसी के रोने की
 सीस्कीयाँ आती है
 अब भी उसी कोने मै ..................
 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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