Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448612 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चकबंदी चकबंदी चकबंदी

एक मार्च १ मार्च २०१६ को
मेरे पहाड़ों के लिए मेरे खेत खलिहानों के लिए
चलो गैरसैण हिटो भाई.......... है चकबंदी
मेरे उत्तराखंड के लिए मेरे सपने अपनों के लिए ....चकबंदी
चकबंदी चकबंदी चकबंदी

गाँव गाँव जुड़ेगा एक दूजे से जुड़ेगा
भूमि में सुधार होगा सजेगी मेरी ये सुंदर धरती
अपने को पहले स्वीकारना समझना होगा
खुद को पहले जानना पहचानना होगा
मेरे उत्तराखंड के लिए मेरे सपने अपनों के लिए ....चकबंदी
चकबंदी चकबंदी चकबंदी

खाली खाली हो रहे मेरे गाँव क्यों खाली हो रहे हैं
बिन हल के चलने से मेरे खेत ये बंजर हो रहे हैं
कौन इनकी सूद लेगा कोई ना बाहर का यहां आयेगा
अपने अपनों को अब सोचना और मनाना होगा घर से बाहर आना होगा
मेरे उत्तराखंड के लिए मेरे सपने अपनों के लिए ....चकबंदी
चकबंदी चकबंदी चकबंदी

एक मार्च १ मार्च २०१६ को
मेरे पहाड़ों के लिए मेरे खेत खलिहानों के लिए
चलो गैरसैण हिटो भाई.......... है चकबंदी
मेरे उत्तराखंड के लिए मेरे सपने अपनों के लिए ....चकबंदी
चकबंदी चकबंदी चकबंदी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 14 at 10:03am ·
टूटी हुई लकड़ी का वो छोर है प्यार
टूटी हुई लकड़ी का वो छोर है प्यार
उम्र के हर पड़ाव का बस मोड़ है प्यार
महसूस करो उसे बस मन से वो है प्यार
सुख दुःख के सागर का निचोड़ है प्यार
हर आँसूं का गीत है प्यार
हर बिछोह का मीत है प्यार
उस मिलन का संगीत है प्यार
अधूरी कहानी का दर्द है प्यार
अपनापन जगाता है प्यार
हर एक से मिलता है प्यार
गैरों को भी अपना बनाता है प्यार
दुश्मन को भी दोस्त बनाता है प्यार
जिसमे छुपा जीवन का सार वो है प्यार
जिसकी परतें हैं कई हजार वो है प्यार
अपने भावों का इजहार वो है प्यार
सच्चाई निष्ठ झलकें बार बार वो है प्यार
प्रभु गुरु से हमे मिलता है प्यार
माता पिता के पैरों में फैला है प्यार
संगनी के संग खिलता है प्यार
बच्चों को सही दिशा दिखता है प्यार
टूटी हुई लकड़ी का वो छोर है प्यार ..........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 13 at 11:28am ·
कहना है बस उनसे इतना
कहना है बस उनसे इतना
जो भूल गये हैं वो अपना रास्ता
अपना रस्ता याद रखना तुम
वरना खो दोगे जो भी बचा है वो अपना
कहना है बस उनसे इतना ...............
धर्म और कर्म का भाव यही
मूल है जो तेरा बस तेरा वो वही है
उस मूल को तो अपने में पकडे रखना
उस मार्ग से तो सदा अपने को जकड़े रहना
कहना है बस उनसे इतना ...............
कुछ भी नहीं तब रह जायेगा तेरा
अंत समय जब करीब आयेगा वो तेरा
भटकता फिरेगा तू उस मूल को ढूढ़ने
जो रास्ता अपना तूने भुला दिया था
कहना है बस उनसे इतना ...............
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
9 hrs ·
आज तो मैं अपनी ही मौत को देख घबरा गया
फिर सोचा एक दिन ना एक दिन तो तू आनी है ..
फिर कहा चल अब ही ले चल
फिर वो सहम गई फिर उसने कहा आज तू नहीं कोई और है ........ ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हे शब्दों की देवी
हे शब्दों की देवी
विद्या की देवी माँ सरस्वती
तू स्वर की देवी
तू संगीत की देवी माँ सरस्वती
ब्रह्मा की मानसपुत्री
अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती
शतरूपा,वाणी तू वाग्देवी,
भारती, शारदा तू वागेश्वरी माँ सरस्वती
प्रकृति के सौंदर्य की देवी
अनुपम छटा की देवी माँ सरस्वती
पेड़ों के पुराने पत्तों की देवी
नयी कोपलों की देवी माँ सरस्वती
शुक्लवर्ण तू श्वेत वस्त्रधारिणी
वीणावादनतत्परा तू श्वेतपद्मासनी माँ सरस्वती
भय हरन अज्ञान मिटनेवाली
भगवती शारदा माँ तू सदा वंदनी माँ सरस्वती
हे कलम की देवी
नये सोच नये भाव की देवी माँ सरस्वती
तेरे ही शब्दों को तुझसे ही मैं चुनता हूँ
तुझको ही ये शब्दों की माला मैं अर्पिता करता हूँ
माँ सरस्वती
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 11 at 4:23pm ·
सब लूट रहे हैं ....
कहते हैं मिला ये मौका
सब लूट रहे हैं ....
किस पर करें हम भरोसा
सब लूट रहे हैं ....
लगते सब वो एक जैसे
दर्पण के टुकड़े वो हों जैसे
कुछ गम के अल्फाज़ बोल के
कुछ हस्य के संवाद जोड़ के
बस लूट रहे हैं
हम ने दिया ये मौक
सब लूट रहे हैं ....
खाया है ये हमने धोखा
सब लूट रहे हैं ....
सुख दुख कुछ नहीं उनको
बस भूलने की उनको आदत
बड़े वादे हम से करके वो
बस उन्हें वो तोड़ रहे है
हमारा ही कर्म है इसलिए वो
सब लूट रहे हैं ....
संभल लो अब भी गया ना वक्त है
सब लूट रहे हैं ....
नेता तो हमे बनाएंगे
हम क्यों पर बने हुए हैं
उस एक वोट की ताकत से
हम क्यों अब भी बांटे हुए हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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दबा हुआ है बहुत कुछ यंहा
दबा हुआ है बहुत कुछ यंहा
आज कल और आज में
कमी रह गयी है हम में
बस इतनी सी ही बात है
भूल अपनी मानते नहीं
बस बात पर बात अपनी बढ़ाते हैं
चलना जहाँ नहीं था हमे
बस उस राह पर हम चलते जाते हैं
बुजुर्गों ने जो कभी कहा था हमे
तब ठीक से ना उन्हें सुन पाते हैं
उम्र गुजरी और वो बुजुर्ग गुजरा
तब उनकी बात पर हम पछताते हैं
कहने की किसी में हिम्मत नहीं
मन ही मन उस बात में हम रह जाते हैं
दिन गुजरा शाम गुजरी समय बीता
तब हम बस सिर्फ अफ़सोस जताते हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 9 at 6:19am ·
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
दिल थामे बैठा है ये मन का जोगी
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
मेरी दुनिया, तेरे जज़्बात ...
मेरे अकेले में कब थी ये सारी बात
देखा तुझको जब से मैंने
होने लगे अब उन में भी शुरुवात
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
मन पे छाये ये प्रेम के बादल
कब से ये बैठा ये दिल बनके पागल
कर दे अब तो कोई तू हल चल
बरस जाये बादल ना अकेले जाये वो निकल
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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खो गये हैं सब कहीं
खो गये हैं सब कहीं
अपने अपने राग में
है वही है ये जमीं है वही ये आसमान
खो गये हैं सब कहीं .....
खोजते हैं क्या वो अब
अपने इस आस पास में
मिल जायेगा उसको वो इस झूठे एतबार में
खो गये हैं सब कहीं .....
खोज ना सका खुद को वो
भ्रम से भरे इस झूठे कारोबार में
खो गया ऐसा वो उबरना वो दूजी बार में
खो गये हैं सब कहीं .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बस जिंदगी है ....इतनी
अभी थी और अभी नहीं
फिर क्या तू और क्या मैं
सब एक ही धुएँ की लड़ी
ध्यानी

 

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