Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448415 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आँखें खोजती रही
आँखें खोजती रही
वो निगाहें खोजती रही
खोज देखो आज ..... वो
खुद को खोजती रही
आँखें खोजती रही ........
चेहरे खोजते रहे
वो खुद ब खुद बोलते रहे
हाथों की बिछी लकीरों में
वो खुद को टटोलते रहे
आँखें खोजती रही ........
हाथ जोड़े हैं आज
ये आँखें दोनों क्यों बंद है
आज मन के अंदर ही अंदर
ना जाने किस से जंग है
आँखें खोजती रही ........
खोज है वो देखो
कभी वो खत्म होती नहीं
अपूर्ण रहती है वो सदा
पूर्ण वो कभी होती नहीं
आँखें खोजती रही ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 10 at 9:41pm · Manama, Bahrain ·
सोचता हूँ जिंदगी की तुझ से मैं प्यार करूँ
सोचता हूँ जिंदगी की तुझ से मैं प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ
पीछे पीछे भागता हूँ सदा तो आगे ही रहती जिंदगी
कभी तो मेरे साथ साथ तो चल मेरे साथ मेरी ये जिंदगी
रूठी रूठी रहती है सदा कभी तो बात मान जा ये जिंदगी
इस गम बीच में कभी तो ख़ुशी तरना छेड़ जा ये जिंदगी
सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ
बात मेरी ना मानती आगे आगे मुझ से भागती है जिंदगी
दो पल भी चैन के क्यों ना मुझे गुजरने देती तो जिंदगी
आँखों में मेरे सपने दिन रात क्यों सजाती दिखती है जिंदगी
तोड़कर उसे चूर चूर तो मेरे सामने क्यों बिखरा देती है जिंदगी
सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ
कठपुतली की तरह अब मुझको नाच नचाती है जिंदगी
आँखों ही आँखों में बीच बजार में मुझे बेच देती है जिंदगी
खरीदार बनकर कभी खुद ही मुझे खरीद लेती है जिंदगी
कभी नकार समझकर मुझे आगे की और बढ़ जाती है जिंदगी
सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ ...............
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 4 at 9:25am ·
मेरा नाम ना हो
मेरा नाम ना हो
बस मेरा वो काम हो
इस जग में मेरा काम से
बस सब का काम हो
मैं वो कीच बनो
जिस में कमल खिले
इच्छा मेरी प्रभु के पद से
वो कमल जा के मिले
वो अन्धेरा मैं बनो
जिसमे कई दीप जले
सदैव प्रकाशमान रहे वो मन
ना मैं- (अँधेरा) तब रहूँ
उस सोच का मैं पथ बनो
जिस पर करोड़ों कदम चले
उस लक्ष्य को प्राप्त कर ही
करोड़ों कदम उस पथ पर रोकें
मेरा नाम ना हो
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 3 at 4:35pm ·
अपनी एक कविता
हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता
तो आज मैंने भी लिखी डाली है देखो अपनी एक कविता
कुछ अक्षर उभरे थे मन में मन के इस शब्द पटल में
उनको ही अंकित कर डाला उन भावों को मैंने समेट डाला
अक्सर वो बात करती थी मुझसे और साथ रहती थी मेरे
ले कलम का सहरा आज मैंने उन्हें इस कोरे पन्ने में उतरा
पहली बार अहसास किया उसने आज एक नये सृजन का
मन अपना तृप्त किया उसने आज अपने को अर्पण किया
हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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जाने क्या सोच मैंने
जाने क्या सोच मैंने
और ये क्या मेरे साथ हो गया
जो घर था कभी वो मेरा मंदिर
आज वहां वीराना हो गया
अपना आशियाना बसाने के लिये
मैं आज इससे बहुत दूर हो गया
मेरे बचपन तब मुझसे रूठा
और सदा के लिये वो ख़फ़ा हो गया
स्वर्ग था वो मेरा
अब भी वो स्वर्ग है मेरा
खुद मैंने अपने इन हाथ से अपने लिये
वो नर्क दरवाजा क्यों खोल दिया
परेशान हूँ मैं आज भी
आज भी मैं उस किये पे हैरान हूँ
इतनी बड़ी गलती कैसे
मेरे अपने आप से हो गयी
जाने क्या सोच मैंने ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 31 at 1:45pm ·
आज तू अपने गले लगा ले मुझे
आज तू अपने गले लगा ले मुझे
आज अपने से तू मिला ले मुझे
जो दिया है मुझे सब तेरा ही दिया
तेरे कदमो में आज बस ले मुझे
सबका मुकदर लिखने वाले बता
मेरे मुकदर में हो बस तू ये ही हो लिखा हुआ
कुछ और ना चाहिये मुझे तेरे सिवा
मुझको मिल गया तू अब मिलने को क्या बचा
माना तू है निरकार प्रभु मेरा
ये ही मंशा मेरी बस तेरी मुझे छबि दिखा
देख खो जाओ मैं तभी मैं तुझी में सदा
ये ज्योति तेरी मेरी ज्योति से मिला
शांति के धाम मेरी तू अशांति मिटा
पाप की रहा छोड़कर मुझे सदकर्म में चला
मुख में खोलों बस वो तेरी वाणी बने
सदा तेरे गुणगान में मेरी जिंदगानी चले
आज तू अपने गले लगा ले मुझे ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 1 at 5:52pm ·
अधूरा
कुछ पाने की कोशिश में
मैं हरदम अधूरा छूट जाता हूँ
लिखने की कोशिश करता रहता हूँ
उस अधूरे को पाने के लिये
ध्यानी

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मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब ...
मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब .... ३
तुम बहुत मुझे याद आओगे तब .... २
सुर्ख लिफाफे के गर्म चदरों को मुझ पे उड़ते हुये
छू लिये थे गोरे नरम हाथ तुम्हारे जब धोते हुये
हर एक याद बात तुम्हारी तब जाग जायेगी
अब बता दो तुम्हारे बिन हमे नींद कैसे आयेगी
मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब ...
रात काली सर्द हमें जब तुम बिन सोने ना दे
पल पल तुम्हारे मेरे साथ होने का अहसास खोने ना दे
कैसे तुम बिन अब ये सर्द काली रात गुजरेगी बोलो
अपनी तस्वीर से मुझे देख कर तुम अब ऐसे ना हसों
मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब ...
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एक उत्तराखंड है मेरा
एक उत्तराखंड है मेरा
आठ मुख्य्मंत्री और सोलह साल
देखे तरक्की के ख्वाब
पंद्रह हजार गाँव सुने और साफ
एक उत्तराखंड है मेरा .......
पहाड़ बनाम मैदान की सोच
टूटा टूटा हर बार क्यों मेरा पहाड़
राजनीतिकों ने रोटी सेंकी
राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का जाल
एक उत्तराखंड है मेरा .......
भ्रस्टाचार में अव्व्ल है
विपदा पीड़ा का क्यों बना ये मेरा पहाड़
निरशा हीन भावना गोचार होती
देवभूमि है फिर भी मेरी महान
एक उत्तराखंड है मेरा .......
जैसा सोचा था नहीं पनपा
अपने ही शायद बचे बीज होंगे खराब
स्वप्न देखा था धूमिल हो रहा
या मेरी दो आंखें हो गयी है खराब
क्या एक उत्तराखंड है मेरा .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 27 at 6:16pm ·
मुझे आता नहीं लिखना
मुझे आता नहीं लिखना
वो मुझे लिखना सिखा रहे है
पकड़ के मेरे दो हाथों को
वो मेरी कलम को चला रहे है
मुझे आता नहीं लिखना .......
अजब है वो दोस्त सखा मेरा
वो कैसे मुझे देखो अपना बना रहे है
शब्दों शब्दों को आकार दे कर अपने
अपनी कल्पना को साकार बना रहा है
मुझे आता नहीं लिखना .......
पन्ना पन्ना भी है उसका
उस पर लिखा सपना भी है उनका
मैं तो हूँ उनका दास वो प्रभु मेरे लिखा कर
मुझे वो जिंदगी जीना सिखा रहे है
मुझे आता नहीं लिखना .......
मैं अज्ञानी प्रभु ज्ञानी मेरे
गुरु बनकर वो मुझे ध्यानी बना रहे है
सब कुछ जो लिखा था मैंने
वो सब मेरे प्रभु लिखा रहे हैं
मुझे आता नहीं लिखना .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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