Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448341 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अब बोला जाता नहीं
रास्तें खोजों.....खोजों
मंजिल का पता नहीं
कैसे मैं बोलों.....बोलों
अब बोला जाता नहीं
खुश-नसीबी है वो
क्यों इसका गुमां होता नहीं
कितने सरल सच्चे रस्ते हैं वो
क्यों उन पर चला जाता नहीं
किस्मत लिखता है वो
जब खुद से लिखा जाता नहीं
पूछता है प्रश्न बहुत वो
क्यों जवाब देना मुझे आता नहीं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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अब बोला जाता नहीं
रास्तें खोजों.....खोजों
मंजिल का पता नहीं
कैसे मैं बोलों.....बोलों
अब बोला जाता नहीं
खुश-नसीबी है वो
क्यों इसका गुमां होता नहीं
कितने सरल सच्चे रस्ते हैं वो
क्यों उन पर चला जाता नहीं
किस्मत लिखता है वो
जब खुद से लिखा जाता नहीं
पूछता है प्रश्न बहुत वो
क्यों जवाब देना मुझे आता नहीं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेरे गॉंव में तू
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
एक बाट मिलेगी उकाली उंदरी
उस बाट पे हिट के आ जाना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
अपने मिलेंगे बिरानो को तू ले के
अपने दगड दगडी उन्हें तू ले आना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
घुघुती घुगेगी फ्योंली खिलेगी
मेरो लाल बुरांस थे मिल्नु ऐ जानु
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
बद्री केदार के दर्शन लेने को
गंगा माँ में डुबकी लग ने को
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
ब्योह बरती में नाचने आ जाना
कौथिग में पिंगली जलेबी खाने आ जाना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
बालकृष्ण डी ध्यानी
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सोच
बदल गया है तू
अब बदल रहा हूँ मैं
सोच पर तेरी
अब चल रहा हूँ मैं
जो सोच रहा है तू
वो सोच है मेरी
बस फर्क इतना सा
वो कंही और है जोड़ी
जो कच्चे थे अब तक
वो अब पक्के हो गये
सड़कों के वो छोर मेरे
अब कितने सच्चे हो गये
उलटी छतरी आ गयी
चिमनी छोड़ बिजली छा गयी
चूल्हे के लकड़ी छोड़ कर
वो गैस मुझ को भा गयी
भागना नहीं
ना उसे अब मुझे भगाना है
सोच का रिश्ता इन पहाड़ों पर
मरते दम तक साथ निभाना है
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ग़ज़ल क्या हैं
ग़ज़ल क्या हैं
जज़्बात और अलफाजों का
एक गुंचा ये मज़्मुआ है वो
शायरी की इज़्ज़त वो आबरू है वो
ग़ज़ल क्या हैं
मधुर दिलकश रसीली है वो
दिल के नाज़ुक तारों का हिस्सा है वो
भावनाएं पैदा करती हैं वो
मेरे बयां के लिये
ग़ज़ल क्या हैं
माशूक से बातचीत है वो
कंठ की दर्द भरी आवाज़ है वो
करूण स्वर बोल रही है वो
ज़िंदगी की कोई पहलू है वो
ग़ज़ल क्या हैं
शेर की दो पंक्तियों का सार है वो
मत्ला क़ाफिया रदीफ मक़्ता का जोड़ है वो
एक बुनियाद है वो
हृदय मन कोमल भावनाओं का निचोड़ है वो
ग़ज़ल क्या हैं
माशूक हृदय में झांकती हुयी
जिस्म ख़ूबसूरती का अंदाज है वो
बनाव-सिंगर और नाज़ों-अदा है वो
इश्क़ का एक जामे सागर है वो
ग़ज़ल क्या हैं
इक़बाल’ की नज़्म है वो
ज्वलंत कोई व्यंग है वो
काल्पनिक दुनिया में रहती वो
यथार्त की देन है वो
ग़ज़ल क्या हैं
इतिहास रोज़ लिखाता है उसे
क्षितिज पर रोज़ स्वर उभरे हैं उसके
संगीत की त्रिवेणी संगम है वो
बातें, शब्द, तर्ज़ की आवाज़ है वो
ग़ज़ल क्या हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो आवाज बुलाती रही
वो आवाज बुलाती रही
मेरे कदम खींचते चले
ना जाने क्या कसीस थी उस में
बस उसकी ओर वो चलते चले
पहाड़ों से वो टकरा रहे
पेड़ पत्तों से वो लिपट रहे
फूलों के संग खिल कर वो
भौरों के जैसे वो गीत गाने लगे
कल कल वो बहने लगी
सब जगह मेरे संग वो रहने लगी
कभी हवा कभी पानी बनकर
निर्मल मेरा मन करने लगी
सोया था अब तक मैं
खोया था अपने में कहीं
आ कर वो मुझे उठाने लगी
बरसों की नींद से मुझे जगाने लगी
वो आवाज बुलाती रही ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बीते दिनों की याद में अक़्सर
बीते दिनों की याद में अक़्सर
दिल उसका रो पड़ता
पत्थर से प्रेम करता था कब वो
अब कंक्रीटों में दिल रहता है
अब भी अटका रहता है वो
जंगल के उन काँटों में
थकता नहीं था वो कभी देख चढ़न को
अब हांफ जाता है सीधे रास्तों में
अब इतिहास बन कर रह गया वो
पगडंडी और गलियारों में
घास फुस में आ जाती थी कभी गहरी
अब आती नहीं उसे मखमल के बिछोने में
अब भी फर्क नहीं कर पाता है वो
सूखे गीले उन दरख्तों में
अब तो लाजमी उसका धोखा खाना
जब आग लग गयी हो अपने से
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मन के कंवल में
मन के कंवल में
शब्द खिल पड़े ...
मन के कंवल में
आज शब्द खिल पड़े ...
अरे होने लगी बरखा
आज मेर मन में
भीगा भीगा मन
भीगा संग जोबन
भीगा भीगा मन
आज भीगा संग जोबन
अरे आने लगा है मजा
आज मेर मन में
घिर घिर के
रोज आओ तुम
घिर घिर के
अब रोज आओ तुम
अरे शुरु होने लगी जिंदगी
आज मेर मन में
बालकृष्ण डी ध्यानी
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तुम से अगर मैं मिलने आऊं
तुम से अगर मैं मिलने आऊं
मगर आऊं कैसे
मिलने आऊं बहुत मन तो करता
मगर वो रास्ता मिले ना मुझे
तुम से अगर मैं मिलने आऊं ....
मेरे साथ हो तुम
ये ख्याल जब मैं खुद से करूँ
एक अलग सा अहसास जगे
और मैं तेरे साथ साथ चलूँ
मेरा मन अब ना मेरे पास वो चल साथ साथ तेरे
मिलने आऊं बहुत मन तो करता
मगर वो रास्ता मिले ना मुझे
तुम से अगर मैं मिलने आऊं ....
अपने हाथों की लकीरों को जब मैं देखों
वो तेरा चेहरा ही क्यों मुझे दिखाये
तेरे मन की प्यास को अगर मैं भी पड़ लूँ
मेरे मन की वो प्यास और बढ़ जाये
वो प्यास बुझाने का मन तो करता
मगर वो रास्ता मिले ना मुझे
तुम से अगर मैं मिलने आऊं ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो भी चलेगा
ज्यादा नहीं
थोड़ सा है वो
वो भी चलेगा ..... २
दुनिया में
कुछ ना मेरा ना तेरा
वो भी चलेगा ..... २
सांसों की रफ़्तार है
ज़िंदा हूँ मैं और तू
वो भी चलेगा ..... २
अकेला है वो
और अकेला हूँ मैं
वो भी चलेगा ..... २
कैसे मगर वो
वो खुद से कहेगा
वो भी चलेगा ..... २
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