Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448341 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरी बदमाशियां
मेरी बदमाशियां
टिकी रह गयी बस तुझ पर
क्या असर हुआ
आ करीब आ देख ले मुझ पर
मेरी बदमाशियां
बस नादानियां झलकती है
अभी भी मेरी आदतों में
मैं खुद हैरान हूँ
मुझे इश्क़ हुआ कैसे..
मेरी बदमाशियां
अधूरे से रह जाते मेरे लफ्ज़
ज़िक्र तेरा किये बिना,
मानो मेरी हर *शायरी की
जैसे बस रूह तुम ही हो...
मेरी बदमाशियां
निगाहों के समन्दर
हम बस ठिकाना चाहते थे
हम तुमसे मोहब्बत करते हैं ,
बस ये बताना चाहते थे ..
मेरी बदमाशियां
बारिशों ने की
कुछ यूँ शरारतें हम पर की
बूंदों से भीगा बदन तेरा
क्यों वो आग लगा गयी मुझ को
मेरी बदमाशियां
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बस लगन होनी चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
और कुछ नहीं और कुछ नहीं
सच्ची सेवा भाव होना चाहिए
और कुछ नहीं
बस लगन होनी चाहिए
ना हार हो ना तेरी जीत हो
हर चीज से बस तुझे प्रीत हो
सुख में भी तेरे अश्रु बहने चाहिए
दुःख में मुख हँसता रहना चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
पत्थर नहीं तब वो फूल हैं
कांटे नहीं ना वो शूल हैं
बस मन को तेरे सब कबूल होना चाहिए
विशवास हो अविश्वास ना होना चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
बढ़ते कदम चले साथ साथ तेरे
सदमार्ग में उन्हें सदा बढ़ते रहना चाहिए
ठहराव नहीं तुझ में बहाव होना चाहिए
एक नहीं उन्हें हजार हाथ होने चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
बालकृष्ण डी ध्यानी
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चुपके चुपके .......
चुपके चुपके इन ख्वाब में
अब ना मेरे तुम आया करो
आँखों को करने दो आराम अब
यूँ ना अब तुम इन्हे रुलाया करो
चुपके चुपके .......
माना हम से हुयी थी खता
हम निकले बेवफा
कांटे थे बस वो मेरे लिये
फूलों से रहे हम जुदा
चुपके चुपके उन राहों में
अब मुझे बुलाया ना करो
भूल चुके है हम उन्हें
यूँ ना अब हमे याद दिलाया करो
चुपके चुपके .......
बस फर्क इतना आप में
और मुझ में ये अब रह गया
आप कई आगे निकल गये हम से
और मेरा वक्त वहीँ थम गया
चुपके चुपके आँखो से
अब बस बहने लगे हो तुम
मैं कुछ कह नहीं पाता अब भी
बस अब भी कहने लगे हो तुम
चुपके चुपके .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब बोला जाता नहीं
रास्तें खोजों.....खोजों
मंजिल का पता नहीं
कैसे मैं बोलों.....बोलों
अब बोला जाता नहीं
खुश-नसीबी है वो
क्यों इसका गुमां होता नहीं
कितने सरल सच्चे रस्ते हैं वो
क्यों उन पर चला जाता नहीं
किस्मत लिखता है वो
जब खुद से लिखा जाता नहीं
पूछता है प्रश्न बहुत वो
क्यों जवाब देना मुझे आता नहीं
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मेरे गॉंव में तू
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
एक बाट मिलेगी उकाली उंदरी
उस बाट पे हिट के आ जाना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
अपने मिलेंगे बिरानो को तू ले के
अपने दगड दगडी उन्हें तू ले आना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
घुघुती घुगेगी फ्योंली खिलेगी
मेरो लाल बुरांस थे मिल्नु ऐ जानु
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
बद्री केदार के दर्शन लेने को
गंगा माँ में डुबकी लग ने को
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
ब्योह बरती में नाचने आ जाना
कौथिग में पिंगली जलेबी खाने आ जाना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
बालकृष्ण डी ध्यानी
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सोच
बदल गया है तू
अब बदल रहा हूँ मैं
सोच पर तेरी
अब चल रहा हूँ मैं
जो सोच रहा है तू
वो सोच है मेरी
बस फर्क इतना सा
वो कंही और है जोड़ी
जो कच्चे थे अब तक
वो अब पक्के हो गये
सड़कों के वो छोर मेरे
अब कितने सच्चे हो गये
उलटी छतरी आ गयी
चिमनी छोड़ बिजली छा गयी
चूल्हे के लकड़ी छोड़ कर
वो गैस मुझ को भा गयी
भागना नहीं
ना उसे अब मुझे भगाना है
सोच का रिश्ता इन पहाड़ों पर
मरते दम तक साथ निभाना है
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जितना भूलना चाह हूँ मैं
जितना भूलना चाह हूँ मैं
वो उतना याद आये
मुझ को अब ना क्यों
ये सब ना अब भाये
जितना भूलना चाह हूँ मैं
हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...
मेरे दिल से पूछो
क्या उस में कमी थी
कमी उस में ना थी
वो कमी मुझ में ही कंही थी
जितना भूलना चाह हूँ
हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...
अब भी है वो मुझ में
छुपा है वो यंही कंही में
अहसास करने की है देर
फिर वो है मेरी सवेर ही सवेर
हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...
जितना भूलना चाह हूँ मैं ....
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आ जाओ मेरे गाँवों में .. आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में ..
मेरे पहाड़ों में ये मेरा घर बार
मेरे मन के साथ और मेरे मन के पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
आओ सुनो ना ....मेरी बातें सुनो ना
मेर मन की बात आपके प्रेम के साथ
इन बहारों के साथ इन नजारों के पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
चाहे तुम्हे मैं अब इतना पसंद आऊं ना
तुमको अब मैं बस इतना कहने आया हूँ
देख ना कुछ है मेरे साथ सब है इसके पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो अपने पराये
बैठे अकेले हैं आज
वो अपने पराये
सुख के कभी थे
कभी वो दुःख के थे साये
वो अपने पराये .......
काँटों भरी झाडी देख के
फूल वो दूर से मुस्कुराये
हो जाये जो स्पर्श चुभ वो जाये
असहनीय वेदना अकलित उभर आये
वो अपने पराये .......
दो किनारों का वो मिलना था
या जुड़ने के थे वो दो सहारे
एक पुकारे उसे बहुत स्नेह से
दूसरा यूँ ही अकलुष चला जाये
वो अपने पराये .......
भेद पाना बहुत ही मुश्किल है
कौन हैं अपने और कौन हैं पराये
निश्छल कल कल वो बहे
बस समय ही उसमे भेद कर जाये
वो अपने पराये .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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कुछ तो बात है ......
कुछ तो बात है
जो तो मेरे साथ है
तेरी ये प्यारी हंसी
जो अभी मेरे पास है
कुछ तो बात है
भीगे भीगे से हैं
वो मेरे जज्बात हैं
उन्हें भी अब ये अहसास है
तू मेरे धड़कन के साथ है
कुछ तो बात है .....
हर एक शब्द तेरा
वो तेरे अधरों का राग है
गाता रहूं वो गीत तेरे
जीवन का तू जो मेरे साज है
कुछ तो बात है .....
एक सच्ची शुरुवात है
बस तुझ में ही वो बात है
कुछ भी ना अब मेरा
जो कुछ है वो मेरा तेरे पास है
कुछ तो बात है .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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