Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448268 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
हमने देखली इन दोनों की घोड़ सवारी जी
उत्तराखंड को सजाने की कितनी है इन दोनों की तयारी जी
क्या है इनके मंसूबे क्या है इनका रोड मानचित्र के छलावे
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
कोई नींद में सोया रहा किसने जाग कर किया तंग
अपने कार्यों से इन दोनों ने अपने तरीके से अपनों को कितना किया दंग
पहाड़ पर बैठा भोला जनमानस बेचारा ये ही अब तक सोचता रहा
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
मनसा नहीं इनकी कुछ अपने से कर गुजरने की
है होड़ बस दोनों में फिर बस पांच वर्षों का सत्ता का सुख भोगने की
उत्तराखंड आंदोलन में हुये शहीदों की अभिलाषा अब भी अधूरी है
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
बस अपने अपने चूल्हे पर ये अब तक अपनी अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं
कितने ढीट बन गये हैं इतना खाने के बाद भी डकार नहीं ले रहे हैं
दिखता नहीं इन्हे भूख प्यास रोजगार से वंचित अपने अपना पहाड़ छोड़ रहे हैं
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शब्द
मैं शब्दों को अपने शब्दों में बाँधना कभी नहीं चाहता हूँ
वो मुझे खुद ब खुद अपने आप अपने से ही बाँध लेती है
ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आँखें खोजती रही
आँखें खोजती रही
वो निगाहें खोजती रही
खोज देखो आज ..... वो
खुद को खोजती रही
आँखें खोजती रही ........
चेहरे खोजते रहे
वो खुद ब खुद बोलते रहे
हाथों की बिछी लकीरों में
वो खुद को टटोलते रहे
आँखें खोजती रही ........
हाथ जोड़े हैं आज
ये आँखें दोनों क्यों बंद है
आज मन के अंदर ही अंदर
ना जाने किस से जंग है
आँखें खोजती रही ........
खोज है वो देखो
कभी वो खत्म होती नहीं
अपूर्ण रहती है वो सदा
पूर्ण वो कभी होती नहीं
आँखें खोजती रही ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 10 · Manama, Bahrain ·
सोचता हूँ जिंदगी की तुझ से मैं प्यार करूँ
सोचता हूँ जिंदगी की तुझ से मैं प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ
पीछे पीछे भागता हूँ सदा तो आगे ही रहती जिंदगी
कभी तो मेरे साथ साथ तो चल मेरे साथ मेरी ये जिंदगी
रूठी रूठी रहती है सदा कभी तो बात मान जा ये जिंदगी
इस गम बीच में कभी तो ख़ुशी तरना छेड़ जा ये जिंदगी
सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ
बात मेरी ना मानती आगे आगे मुझ से भागती है जिंदगी
दो पल भी चैन के क्यों ना मुझे गुजरने देती तो जिंदगी
आँखों में मेरे सपने दिन रात क्यों सजाती दिखती है जिंदगी
तोड़कर उसे चूर चूर तो मेरे सामने क्यों बिखरा देती है जिंदगी
सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ
कठपुतली की तरह अब मुझको नाच नचाती है जिंदगी
आँखों ही आँखों में बीच बजार में मुझे बेच देती है जिंदगी
खरीदार बनकर कभी खुद ही मुझे खरीद लेती है जिंदगी
कभी नकार समझकर मुझे आगे की और बढ़ जाती है जिंदगी
सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ ...............
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऐ खुदा
ऐ खुदा तो बता तेरा क्या नाम है ?
तू रहता है कहाँ ? तेरा क्या काम है ?
तू ने जन्नत बनाने की मेहनत भी की
फिर ये दोजख को लाने की जरूरत क्या थी
तु ही जाने तेरे सारे उस काम को
मेरे कर्म और तेरे द्वारे लिखे मेरे भाग्य को
ऐ खुदा तो बता तेरा क्या नाम है ?
ध्यानी

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मेरी हंसी
मेरी हंसी का ना गैर मतलब अब निकाल ये ध्यानी
गम में जीने और आंसू बहाने से अब क्या फायदा
टूटकर चूर चूर हो गये हैं जो अपने और जो सपने
उन को एक धागे में पिरो के रखने का क्या फायदा
ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मैंने कल अपने
मैंने कल अपने
देवता को मना लिया
थोड़ा दूध थोड़े बेल पत्ते अर्पित कर
मैंने उन्हें रिझा दिया
मैंने कल अपने ............
भूखा रहा तन मन
निर्जला कर कैसे भी गुजार दिया
शिकारी की तरह
मृग परिवार साथ मैंने भी मोक्ष पा लिया
मैंने कल अपने .......
कुछ वस्तु उन पर चढ़कर
क्या मैंने सच में मोक्ष पा लिया
प्रश्न पूछा जब मैंने अपने मन तन से
उसने मुझे तुरंत झूठा करारा दिया
मैंने कल अपने .......
महाशिवरात्रि व्रत को
मैंने फिर एक बार व्यर्थ ही गँवा दिया
जलाभिषेक और दुग्‍धाभिषेक मेरा
भूखे पेट में जाना था मैंने नाले में बहा दिया
मैंने कल अपने .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो आवाज बुलाती रही
वो आवाज बुलाती रही
मेरे कदम खींचते चले
ना जाने क्या कसीस थी उस में
बस उसकी ओर वो चलते चले
पहाड़ों से वो टकरा रहे
पेड़ पत्तों से वो लिपट रहे
फूलों के संग खिल कर वो
भौरों के जैसे वो गीत गाने लगे
कल कल वो बहने लगी
सब जगह मेरे संग वो रहने लगी
कभी हवा कभी पानी बनकर
निर्मल मेरा मन करने लगी
सोया था अब तक मैं
खोया था अपने में कहीं
आ कर वो मुझे उठाने लगी
बरसों की नींद से मुझे जगाने लगी
वो आवाज बुलाती रही ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बीते दिनों की याद में अक़्सर
बीते दिनों की याद में अक़्सर
दिल उसका रो पड़ता
पत्थर से प्रेम करता था कब वो
अब कंक्रीटों में दिल रहता है
अब भी अटका रहता है वो
जंगल के उन काँटों में
थकता नहीं था वो कभी देख चढ़न को
अब हांफ जाता है सीधे रास्तों में
अब इतिहास बन कर रह गया वो
पगडंडी और गलियारों में
घास फुस में आ जाती थी कभी गहरी
अब आती नहीं उसे मखमल के बिछोने में
अब भी फर्क नहीं कर पाता है वो
सूखे गीले उन दरख्तों में
अब तो लाजमी उसका धोखा खाना
जब आग लग गयी हो अपने से
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मन के कंवल में
मन के कंवल में
शब्द खिल पड़े ...
मन के कंवल में
आज शब्द खिल पड़े ...
अरे होने लगी बरखा
आज मेर मन में
भीगा भीगा मन
भीगा संग जोबन
भीगा भीगा मन
आज भीगा संग जोबन
अरे आने लगा है मजा
आज मेर मन में
घिर घिर के
रोज आओ तुम
घिर घिर के
अब रोज आओ तुम
अरे शुरु होने लगी जिंदगी
आज मेर मन में
बालकृष्ण डी ध्यानी
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