Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448268 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बस लगन होनी चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
और कुछ नहीं और कुछ नहीं
सच्ची सेवा भाव होना चाहिए
और कुछ नहीं
बस लगन होनी चाहिए
ना हार हो ना तेरी जीत हो
हर चीज से बस तुझे प्रीत हो
सुख में भी तेरे अश्रु बहने चाहिए
दुःख में मुख हँसता रहना चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
पत्थर नहीं तब वो फूल हैं
कांटे नहीं ना वो शूल हैं
बस मन को तेरे सब कबूल होना चाहिए
विशवास हो अविश्वास ना होना चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
बढ़ते कदम चले साथ साथ तेरे
सदमार्ग में उन्हें सदा बढ़ते रहना चाहिए
ठहराव नहीं तुझ में बहाव होना चाहिए
एक नहीं उन्हें हजार हाथ होने चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चुपके चुपके .......
चुपके चुपके इन ख्वाब में
अब ना मेरे तुम आया करो
आँखों को करने दो आराम अब
यूँ ना अब तुम इन्हे रुलाया करो
चुपके चुपके .......
माना हम से हुयी थी खता
हम निकले बेवफा
कांटे थे बस वो मेरे लिये
फूलों से रहे हम जुदा
चुपके चुपके उन राहों में
अब मुझे बुलाया ना करो
भूल चुके है हम उन्हें
यूँ ना अब हमे याद दिलाया करो
चुपके चुपके .......
बस फर्क इतना आप में
और मुझ में ये अब रह गया
आप कई आगे निकल गये हम से
और मेरा वक्त वहीँ थम गया
चुपके चुपके आँखो से
अब बस बहने लगे हो तुम
मैं कुछ कह नहीं पाता अब भी
बस अब भी कहने लगे हो तुम
चुपके चुपके .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब बोला जाता नहीं
रास्तें खोजों.....खोजों
मंजिल का पता नहीं
कैसे मैं बोलों.....बोलों
अब बोला जाता नहीं
खुश-नसीबी है वो
क्यों इसका गुमां होता नहीं
कितने सरल सच्चे रस्ते हैं वो
क्यों उन पर चला जाता नहीं
किस्मत लिखता है वो
जब खुद से लिखा जाता नहीं
पूछता है प्रश्न बहुत वो
क्यों जवाब देना मुझे आता नहीं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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आ जाओ मेरे गाँवों में .. आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में ..
मेरे पहाड़ों में ये मेरा घर बार
मेरे मन के साथ और मेरे मन के पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
आओ सुनो ना ....मेरी बातें सुनो ना
मेर मन की बात आपके प्रेम के साथ
इन बहारों के साथ इन नजारों के पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
चाहे तुम्हे मैं अब इतना पसंद आऊं ना
तुमको अब मैं बस इतना कहने आया हूँ
देख ना कुछ है मेरे साथ सब है इसके पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बदलते चित्रों में
बदलते चित्रों में
एक चित्र मेरा भी है टंगा हुआ
गया है छोड़ बचपन मुझे
जवानी तेरा भार इतना क्यों बता
फुरसत नहीं है उसको
अब तेरे साथ गुफ्तगू लगाने की
मशगूल हो गया है इतना वो
अब वक्त नहीं है उसे साँस लेने की
बैठ जरा पास मेरे
मुझे तू इतना जा बता
अब मुलकात कैसे कब होगी तुझ से
जो मुझ से तू इतना दूर चला गया
सिमटा हूँ मैं अपने ही रेखाओं में
अटका हूँ मैं सबेर शाम की परछाइयों में
तू मेरी अब और यूँ मुश्किलें ना बड़ा
बना दे कोई नया रास्ता जहां मिल जाये तू खड़ा
बदलते चित्रों में
सदैव रहेगा मेरा ये चित्र यूँ ही अब टंगा
जवानी भी छोड़ गयी है अब मुझे
बूढ़ापे की दो सांसे ही रह गयी है होनी जुदा
बालकृष्ण डी ध्यानी
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औ माँ तुझे सलाम
काफी प्यार काफी दुलार
आज दिखा है माँ बस तेरे लिये
रहे सदा ऐसा प्यार माँ बरकरार
हरपल यूँ बरसता तेरे लिये
हर वाल पे माँ आज तू ही तू छायी
आज तेरे बच्चों को ज्याद माँ तेरी याद आयी
यूँ ही हर रोज सुबह शाम कैमरे में
माँ वो रोज यूँ ही सदा तेरी तस्वीर खींचे
फेस बुक में नहीं माँ तुझे
वो सदा प्यार से अपने मन भीतर सींचे
एक दिन ही नहीं होना चाहिए माँ बस तेरा
माँ मुझ पर सदाअधिकर होना चाहिये तेरा
औ माँ तुझे सलाम ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
क्या खो गया है वो
क्यों खो गया है वो
क्या है वो मेरा
क्यों इतना परेशान हूँ मैं
क्यों इतना चिंतित
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
किसने कहा वो सूरज है
किसने कहा श्याद वो चंदा होगा
लेकिन वो मुझे क्यों पता नहीं है
वो क्या मेरा होगा
जो खो गया है वो मुझसे
वो इतना दूर चला गया है अब मुझसे
फिर क्यों वो मेरा होगा
या मैं उससे दूर हो गया हूँ खुद से
कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे
कुछ खबर भी कोई अब क्यों लाता नहीं
क्योंकि वो अब पुराना पता मेरा खो चुका है
जिस पर कभी चिट्ठियां आती थी मेरी
वो आंसूं पाती कुछ कह जाती थी
सुन नहीं सका उन अक्षरों को
तब मैं जब मैं अपने में था
अब तो मैं अपने से गुम हो चुका हूँ
कब से ना जाने क्यों
इस बात की क्यों खबर मुझे लगी नहीं
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
क्या खो गया है वो
क्यों खो गया है वो
क्या है वो मेरा
क्यों इतना परेशान हूँ मैं
क्यों इतना चिंतित
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
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बालकृष्ण डी ध्यानी
May 5 ·
सफरनमा
बस ये एक सफर है और ये कुछ नहीं
एक कब्र की सैर है और ये कुछ नहीं
आना है तुमको और जाना है मुझको
बस एक बहाना है वो और ये कुछ नहीं
.... ध्यानी

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पहाड़ टूट रहे हैं
पहाड़ टूट रहे हैं
या पहाड़ को कोई तोड़ रहा है
अपना खड़ा दूर उस से बहुत दूर
बस दूर से देख कर मुस्कुरा अपना मुंह मोड़ रहा है
जलता है कभी वो खुद से
कभी कोई आ कर उसे जला रहा है
पानी तो बहुत है लबालब भरा हुआ
पर आज उसका ही वो पानी उसे तरसा रहा है
खिसक रहा है अचानक चूर हो रहा है
रो रहा है वो अब अकेले मजबूर हो रहा है
मूक है चुपचाप अलग थलग पड़ा
खोद खोद कर उसे अब कोई उसे लूट रहा है
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अकेले हैं
हम अब भी तुम्हरी यादों को साथ लिये फिरते हैं
किस ने कहा आप से की हम आज कल अकेले हैं
ध्यानी

 

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