Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448234 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
कुछ कहानियाँ अधूरी ही
अब अच्छी लगती है हमें
वो किनारे दूर के
अब क्यों इतना भाते हैं हमें
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
वो दर्द का मेरा अहसास
क्यों सुखद लगता है अब मुझे
आँखों से बहते आँसूं अपने
बहते बहते क्यों चैन दे जाते हैं मुझे
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
तड़पता हुआ वो मन मेरा
जब दुख झेलता है यूँ ये तन मेरा
क्यों उसे अब अच्छा लगता है
अकेला जब वो यूँ ही उसकी यादों में जब चलता है
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
बिछड़ता है जब खुद ही वो खुद से
टूटता है जब वो प्यार इस दिल के भीतर से
वो कसक इतनी मदहोश कर जाती है क्यों
पीछे पीछे वो हर बार ऐसे क्यों मेरे अब आती है
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
बालकृष्ण डी ध्यानी
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शांत है
शांत है
मेरा पहाड़ बिलकुल शांत
अपने में मस्त
दूर दूर तक मेरा पहाड़
शांत है शांत
एक ओर से दूजी ओर
जाती हुई बस हवा का शोर
कल कल करती हुयी
नदी का वो छोर
पेड़ों की पत्तों की वो सर सर
फूलों पर भौंरों की गुंजन
दूर बहते झरनों की झर झर
चिड़ियों की चह चह से भर भर
शांत है
मेरा पहाड़ बिलकुल शांत
अपने में मस्त
दूर दूर तक मेरा पहाड़
शांत है शांत
उल्ट पलट तो सिर्फ दून में है
शोर शराबा बस दून में है
राजनीती और
नीतियों से दूर है मेरा पहाड़
ना सोचना की कमजोर है मेरा पहाड़
कुछ बईमान लोगों
का रचा खेल है ये
अपनों को छोड़ १६ साल
बस गैरों के साथ मेल है ये
इसलिये पहाड़ों में ना पहुंची
अभी तक रेल है ये
फिर भी अपने में चूर मेरा पहाड़
शांत है
मेरा पहाड़ बिलकुल शांत
अपने में मस्त
दूर दूर तक मेरा पहाड़
शांत है शांत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 22 ·
कल कोई जो तुम्हे पूछ लेगा .....
कल कोई जो तुम्हे पूछ लेगा
तो मेरा नाम अपने से भुला देना
बस इतना सा तुम जता देना
बस थोड़ा और मुझे तड़पा देना
कल कोई जो तुम्हे पूछ लेगा .....
मंजिल तक ना जो पहुंचा सका
वो प्यार तुम सब से छुपा देना
दिख गर जाऊं पथ में तुम्हे कहीं
तुम तुरंत पथ बदल देना
कल कोई जो तुम्हे पूछ लेगा .....
कोशिश तो बराबर की थी
पर किस्मत का ना साथ मिला
तुम शायद अपने से मजबूर थी
वो बेवफा का तमगा बस मुझे देना
कल कोई जो तुम्हे पूछ लेगा .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 20 ·
मौन
मौन क्या बोल पड़ा
अपने को टटोल पड़ा
कब तक रहेगा वो शांत खड़ा
कब तक चुप रहेगा वो सदा
अंधकार ले उसे अड़ा
खण्ड से लग के वो खण्डित हो रहा
बहते प्रवाह से बाधित हो रहा
सोच को उस के चोट लगी
बोल दे तो उस से अब तो सखी
ना ना उसे अब खुद जला
जो हर बार हो जला
ना अब उसके करीब जा
जला देगा वो अब ना उसका साथ निभा
राख से उसके क्या मिलेगा
मौन तब क्या बोलेगा
या तब भी मौन ही रहेगा
मौन क्या बोल पड़ा .........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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धूं धूं कैकि जळणी च

धूं धूं कैकि जळणी च
मेरी दंडी कंठी किलै कि ये बारी
कया हुनु कया हुलु जी
मेरो देबता तू मै थे बता

किलै की तू इन नारज व्हैगे
किलै तिन इन भस्मत मचै दे
रोँतैलो मेरो जंगलात बणो थे
अग्नि देबता को किलै भेंट चढ़े दे

ख़ाक हुनि लगिंच तेर ये डाली बोटी
दिन रति जळणी तेर ये स्वणी घाटी
मुका जिबों न तेरो कया च बिगाड़ी
किलै तिन ये भूमि मां जोलपोल मचे दे

ना ना कैर अब बुझै दे तिन जो रच्युं च
तेरो नौको उचांडो निकली मिन धरयुंचा
नारज ना व्है भांड्या मेरो वन देबता
मानी जा शांत व्हैजा अब ना जरा बी कैर अब देर

धूं धूं कैकि जळणी च ........

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कया भुल व्हैगे मैसे

कया भुल व्हैगे मैसे
तू में दगडी किलै बोल्दि ना
कया भुल व्हैगे मैसे

ये माया को बुखार चडैकि
किलै वैथे अब दवाई पिलैदी ना
कया भुल व्हैगे मैसे

ये आँखा आँखा से मिलैकी
किलै अब ऊंथे चोरैन्दी तू
कया भुल व्हैगे मैसे

उजालों दिन दिखेकि मिथे
यखुलि अंधरों बाटा किलै छोड़ देंदी तू
कया भुल व्हैगे मैसे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मिल कया सोची मिल कया लयखि

मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब ऐ आखर मां ही दाड़ी रैग्याई
गीत लयखि इन फूल परी मिन
पर ऊ भोंर मिसे विन्थे लुछी लेग्याई
मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब वै आखर मां ही दाड़ी रैग्याई .......

कैंण बणे व्हली ये बिगरैलि दुनिया
को हुलु ऐको रख-रखवलदरो
कैल सैंती पाली धरि छे इंथे
कू हुलु इंथे इन संभळनु व्हलु
कदग प्रसन पडण छन मिथे को देलु ऐको जवाब
मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब वै आखर मां ही दाड़ी रैग्याई .......

अपरा अपरि मा ही अब लिख दूँ छों मि
सुख दुःख गैनु दगडी अब यखुली गिणदू छों मि
रति के बेली अब मेरी च दिस तुमरा वहैगेनि
सुख म्यार तुम ले लिंवा दुःख तुमरा मिथे दे दिंवा
इन ये पका वादा तुम मै दगडी कै जैंवा
मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब वै आखर मां ही दाड़ी रैग्याई .......

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हेर मेरो मन को

हेर मेरो मन को
हेर मेरो तन को
म्यार तन मन ही राई
सुधि सुधि ऊ मि मा आई
सुधि सुधि ऊ मि सै ग्याई
हेर मेरो मन को ....

छुंई लगाई मिन वै दगडी
मिन बात बी बड़ई अब वै दगडी
अध बाटा तक वैल मेरो साथ निभै
यखुली छोड़ि मिथे वैल अपरि बाट निभै
हेर मेरो मन को ....

कैथै जैकी अब मनेऊ मि
कैथे जैकी अब समझैऊ मि
जब खुद ही नसमझ बनि मि
कैथै जैकी बतैऊ कैथै हरेऊ मि
हेर मेरो मन को ....

बगदि जनि वा न्यार बनि
मेर से अब औ भांड्या दूर जानि
आँख्यु छोड़िकी ऊ आस को पाणी
टिप टिप किलै वहलि आँखा टप्राणि
हेर मेरो मन को ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च

गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
ये भुल्हा मेरो भूली मेरी ईंथे घौर घौर सिंच
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च

कदगा रसैलि च ये कदगा मयली बांद
बडुली लगदा तिस बुझि खुठों लागि कुदग्लि परज
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च

मुखमा मिसरी घुलै जनवहैल पिंगली जलैबि
राग स्वर व्यंजन अलकरों दगडी वा च नटेलि
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च

गढ़ को ऊ स्वास च मेरो वा मेर जियु परण
विंका बिना दीदी भुल्यूँ हमरी कया पछाण
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च

हिमाल का हिंवाल च वा मेरी शीर्ष को मान
मेरा उत्तराखंड भूमि मा मेरा इष्टों का वा समान
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ये बारी छुट्टी मा बोई

ये बारी छुट्टी मा बोई मिल दून जणा
भौत खैल मिल तेरा हात को रुवाट भात झौल बोई
अब मिल वख जैकी चऔ मियों पिजा बरगर खाण
ये बारी छुट्टी मा बोई मिल देरादून जोंलो ....

भैर लियुंल मिल बी आँखि मा दूँन की रंगमत
कन कन कैन होली रति मा वख दिप दिप की चकमक
सबी धणी घूमी अोंलो अपरि मा मि झूमी की अोंलो
ये बारी छुट्टी मा बोई मिल देरादून जोंलो ......

अपरा भै भैना च क्या वख पता कैरी की अोंलो
शिष्टाचार अव भगत भी मि उंका तपसी की अोलों
कदग प्रित उंकी हम बाण मि आच बोई देकि अोंलो
ये बारी छुट्टी मा बोई मिल देरादून जोंलो ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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