अकेलापन
बातें अब कम करने लगी है
जिंदगी भी रुक रुक के दम भरने लगी
ग़म अकेला रहने लगा
सब से अकेला वो रहने लगा है
बातें अब कम करने लगी है .....
कुछ उम्र थी कुछ रवानी थी
कुछ जोश और कुछ नादानी थी
ना वो उम्र है ना वो अब रवानी है
ना वो जोश है ना वो नादानी है
बातें अब कम करने लगी है .....
कभी वो रोने कभी रुलाने लगी है
आँखों में नमी अब ज्यादा आने लगी है
सूखे पत्ते अब ज्याद उड़ने लगे हैं
हरयाली अब कम नजर आने लगी है
बातें अब कम करने लगी है .....
शोर गुम है बस ख़ामोशी छाई
मीलों तक दूर साथ अब बस तन्हाई आयी
बिछड़ने का दुःख नहीं मिलने का दर्द है
ये अकेली सुनसान रात कितनी सर्द है
बातें अब कम करने लगी है .....
एक एक कर अब वो पीछे छूट ने लगी है
बस अब तो वो बीते पल में आ कर मिलने लगी है
अपने को ही अब वो फरेबी बताने लगी है
अकेले अकेल ही वो अब गुनगुनाने लगी है
बातें अब कम करने लगी है
जिंदगी भी रुक रुक के दम भरने लगी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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