Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448056 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
June 4 ·
मन के कंवल में
मन के कंवल में
शब्द खिल पड़े ...
मन के कंवल में
आज शब्द खिल पड़े ...
अरे होने लगी बरखा
आज मेर मन में
भीगा भीगा मन
भीगा संग जोबन
भीगा भीगा मन
आज भीगा संग जोबन
अरे आने लगा है मजा
आज मेर मन में
घिर घिर के
रोज आओ तुम
घिर घिर के
अब रोज आओ तुम
अरे शुरु होने लगी जिंदगी
आज मेर मन में
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तुम से अगर मैं मिलने आऊं
तुम से अगर मैं मिलने आऊं
मगर आऊं कैसे
मिलने आऊं बहुत मन तो करता
मगर वो रास्ता मिले ना मुझे
तुम से अगर मैं मिलने आऊं ....
मेरे साथ हो तुम
ये ख्याल जब मैं खुद से करूँ
एक अलग सा अहसास जगे
और मैं तेरे साथ साथ चलूँ
मेरा मन अब ना मेरे पास वो चल साथ साथ तेरे
मिलने आऊं बहुत मन तो करता
मगर वो रास्ता मिले ना मुझे
तुम से अगर मैं मिलने आऊं ....
अपने हाथों की लकीरों को जब मैं देखों
वो तेरा चेहरा ही क्यों मुझे दिखाये
तेरे मन की प्यास को अगर मैं भी पड़ लूँ
मेरे मन की वो प्यास और बढ़ जाये
वो प्यास बुझाने का मन तो करता
मगर वो रास्ता मिले ना मुझे
तुम से अगर मैं मिलने आऊं ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
May 30 ·
वो भी चलेगा
ज्यादा नहीं
थोड़ सा है वो
वो भी चलेगा ..... २
दुनिया में
कुछ ना मेरा ना तेरा
वो भी चलेगा ..... २
सांसों की रफ़्तार है
ज़िंदा हूँ मैं और तू
वो भी चलेगा ..... २
अकेला है वो
और अकेला हूँ मैं
वो भी चलेगा ..... २
कैसे मगर वो
वो खुद से कहेगा
वो भी चलेगा ..... २
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
May 29 ·
मेरी बदमाशियां
मेरी बदमाशियां
टिकी रह गयी बस तुझ पर
क्या असर हुआ
आ करीब आ देख ले मुझ पर
मेरी बदमाशियां
बस नादानियां झलकती है
अभी भी मेरी आदतों में
मैं खुद हैरान हूँ
मुझे इश्क़ हुआ कैसे..
मेरी बदमाशियां
अधूरे से रह जाते मेरे लफ्ज़
ज़िक्र तेरा किये बिना,
मानो मेरी हर *शायरी की
जैसे बस रूह तुम ही हो...
मेरी बदमाशियां
निगाहों के समन्दर
हम बस ठिकाना चाहते थे
हम तुमसे मोहब्बत करते हैं ,
बस ये बताना चाहते थे ..
मेरी बदमाशियां
बारिशों ने की
कुछ यूँ शरारतें हम पर की
बूंदों से भीगा बदन तेरा
क्यों वो आग लगा गयी मुझ को
मेरी बदमाशियां
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
May 28 ·
बस लगन होनी चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
और कुछ नहीं और कुछ नहीं
सच्ची सेवा भाव होना चाहिए
और कुछ नहीं
बस लगन होनी चाहिए
ना हार हो ना तेरी जीत हो
हर चीज से बस तुझे प्रीत हो
सुख में भी तेरे अश्रु बहने चाहिए
दुःख में मुख हँसता रहना चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
पत्थर नहीं तब वो फूल हैं
कांटे नहीं ना वो शूल हैं
बस मन को तेरे सब कबूल होना चाहिए
विशवास हो अविश्वास ना होना चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
बढ़ते कदम चले साथ साथ तेरे
सदमार्ग में उन्हें सदा बढ़ते रहना चाहिए
ठहराव नहीं तुझ में बहाव होना चाहिए
एक नहीं उन्हें हजार हाथ होने चाहिए
बस लगन होनी चाहिए
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब बोला जाता नहीं
रास्तें खोजों.....खोजों
मंजिल का पता नहीं
कैसे मैं बोलों.....बोलों
अब बोला जाता नहीं
खुश-नसीबी है वो
क्यों इसका गुमां होता नहीं
कितने सरल सच्चे रस्ते हैं वो
क्यों उन पर चला जाता नहीं
किस्मत लिखता है वो
जब खुद से लिखा जाता नहीं
पूछता है प्रश्न बहुत वो
क्यों जवाब देना मुझे आता नहीं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेरे गॉंव में तू
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
एक बाट मिलेगी उकाली उंदरी
उस बाट पे हिट के आ जाना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
अपने मिलेंगे बिरानो को तू ले के
अपने दगड दगडी उन्हें तू ले आना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
घुघुती घुगेगी फ्योंली खिलेगी
मेरो लाल बुरांस थे मिल्नु ऐ जानु
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
बद्री केदार के दर्शन लेने को
गंगा माँ में डुबकी लग ने को
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
ब्योह बरती में नाचने आ जाना
कौथिग में पिंगली जलेबी खाने आ जाना
मेरे गॉंव में तू
आ जाना मेरे पहाड़ में
आ जाना
बालकृष्ण डी ध्यानी
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सोच
बदल गया है तू
अब बदल रहा हूँ मैं
सोच पर तेरी
अब चल रहा हूँ मैं
जो सोच रहा है तू
वो सोच है मेरी
बस फर्क इतना सा
वो कंही और है जोड़ी
जो कच्चे थे अब तक
वो अब पक्के हो गये
सड़कों के वो छोर मेरे
अब कितने सच्चे हो गये
उलटी छतरी आ गयी
चिमनी छोड़ बिजली छा गयी
चूल्हे के लकड़ी छोड़ कर
वो गैस मुझ को भा गयी
भागना नहीं
ना उसे अब मुझे भगाना है
सोच का रिश्ता इन पहाड़ों पर
मरते दम तक साथ निभाना है
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जितना भूलना चाह हूँ मैं
जितना भूलना चाह हूँ मैं
वो उतना याद आये
मुझ को अब ना क्यों
ये सब ना अब भाये
जितना भूलना चाह हूँ मैं
हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...
मेरे दिल से पूछो
क्या उस में कमी थी
कमी उस में ना थी
वो कमी मुझ में ही कंही थी
जितना भूलना चाह हूँ
हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...
अब भी है वो मुझ में
छुपा है वो यंही कंही में
अहसास करने की है देर
फिर वो है मेरी सवेर ही सवेर
हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...
जितना भूलना चाह हूँ मैं ....
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दुक छे दीधो

ऐ मेरो जिकुड़ी को
दुक छे दीधो
लगै गै ऐ उकाली
ऐ मेरो गीत छे दीधो

आंख्युं को पाणी छ
ऐ मेर जिंदगाणी छ
बोग दी रैंदी वा
(लगौंदी मेर कानी छ दीधो )..... २
ऐ मेरो गीत छे दीधो

थ्गलयों को गेड़ा छ
सिल सिली को ऊ फेरा छ
अपरो बाण मोरिकि
(गुजारी मिल यख दीस छे दीधो )..... २
ऐ मेरो गीत छे दीधो

कथा मेरी अपुरी रै जाली
कैथे खुद अब मेर आली
काम बनिगे अब ऊँको
(अब उंकी बारी बी आली दीधो )..... २
ऐ मेरो गीत छे दीधो

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