Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447838 times)

devbhumi

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अब तो अफसानों में

अब तो अफसानों में ही तुम्हें याद आयेंगे हम
कभी तुम्हें गुदगुदायेंगे कभी रुलायेंगे हम

और तड़पायेगी हमें अब तो आप की सदा
फना होने के बाद भी हमें मिली रही है ये कैसी सजा

ऐसी कैसी खता तुम से देखो की थी हमने
रोते रोते लिपट जाने की अदा जो ना सीखी हमने

इसका ग़िला देखो हमे अब तक बहुत है
पास हैं तुम से कितने पर हम अब कितने दूर हैं

राख ठंडी हो गयी है अब अभी आग बहुत है
कहना रह गया तुम से की तुम से मुझे प्यार बहुत है

फिर मौका मिले ना मिले जी भर के जी जाऊं आज
फिर ना जाने अब बिछड़े कब होगी तुम से मुलकात

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब लौटने का वक्त आ गया है

जरा ठहरो रुको
अब सोचने का वक्त आ गया है
मीलों तक चलते चलते चले अकेले हम
अब ठहरने का वक्त आ गया है

खाली हो रहे उस रिक्त को
अब भरने का वक्त आ गया है
कितना दोष दो गे तुम ज़माने को
अब सफाई देने का वक्त आ गया है

कितना छिपे रहोगे खुद की आड़ में
अब पर्दाफाश होने का वक्त आ गया है
आँखें क्यों झुकी है अब हमारी
अब आँखों को मिलाने का वक्त आ गया है

बैठ दो घडी अब अपनों के साथ
कुछ कर गुजरने का वक्त आ गया है
भीड़ से अकेले निकल के आ जा
अब अपनों से मिलने का वक्त आ गया है

देख खड़ा है अब भी वो शीश उठा कर
अब गले मिलने का वक्त आ गया है
झुक के आ जा अब तो अपने घर को
अब लौटने का वक्त आ गया है

जरा ठहरो रुको
अब सोचने का वक्त आ गया है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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तब मेरी कविता रोती है

जब अक्षर टूटे मेरे
बादलों के फटने से
बहा ले गया उसे कोई
अपनों के होने से

तब वो सिसकती है
अपने को अकेला देख
अकेले वो कोने में बैठ
तब मेरी कविता रोती है

हाथ बढ़ेंगे कुछ दिन
फिर वो एकदम थम जायेंगे
मजाक करने फिर हम से
हमारे तंत्र के पैंसे आयेंगे

उसे देख कर वो
फिर से सिकोड़ जाती है
क्या करें और कैसे जियें हम
तब मेरी कविता रोती है

देख वो नजारा
आँखें अब भी विचलित है
क्या था ये क्या हो गया
ना अपने पे भरोसा होता है

तिलमिलाती है खूब
खूब वो जोर से चिल्लाती है
ऊपर देख वो खुद से सवाल कर जाती है
तब मेरी कविता रोती है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बंद तालों की आवाज

बंद तालों की आवाज
गूँजने लगी है मेरे पहाड़ों में आज
हर घर हर गलियारों में
बंद तालों की आवाज

बंद होने लगी है
बंद कर के वो अपनी आवाज आज
खेत और खलिहानों की
बंद तालों की आवाज

बंद बंद सा दिखने लगा है
बंद वो मेरा पुरखों का सुनहरा ताज आज
चाबी के उन कारखानों में
बंद तालों की आवाज

बंद अब सब होता जा रहा है
बंद सब रीति रिवाज कारोबार आज
करने बैठा वो किस का इंतजार
बंद तालों की आवाज

बंद हिर्दय से ना हो जाये वो
बंद अब मेरे पहाड़ों की मीठी आवाज आज
पुकारा लो ना फिर एक बार मुझे
बंद तालों की आवाज

बालकृष्ण डी ध्यानी
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तेरा होना तब पास मेरे

तेरा होना तब पास मेरे
तब सब कुछ था वो साथ मेरे
ये दिल भी तब तुम थे उसकी जान भी तुम
मेरी होने के पहचान थे तुम

मेरा आईना मेरी सिरत थे तुम
जिंदगी की गुफ्तगू की जरूरत थे तुम
देखती थी तुम्हें बस उस आईने में
इस हुस्न को संवारने की जरूरत थे तुम

हर अंगड़ाई पे सिलवटें तुम्हारी ही थी
साँसों में सरगम कि रुबाई तुम्हारी ही थी
क़ाफ़िया मेरा अब यूँ अधूरा रह गया
मुक्तक मेरा मुझे जब अकेला कर गया

अब प्यास है और प्यासी हूँ मैं
प्यासे समंदर की बस एक दासी हूँ मैं
लहरों की तरह फिरती रहती हूँ इधर उधर
किनारा मेरा तू जब गया हो बिछड़

तेरा होना तब पास मेरे .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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जलती हुयी तीलियों का

जलती हुयी तीलियों का इतना ही फ़साना है
जलना एक पल और दूजे पल राख हो जाना है

जल कर रोशन इस अंधेरे को उसे कर जाना है
उस उजाले को महसूस कर उस में खो जाना है

कुछ ऐसा ही है देख समझ पगले अपना जीवन ये
चलते चलते पहचान समय को जी भर जी ले उस में रे

ना रहने वाला कुछ भी यंहा ना तू पाने वाला रे
क्यों इतना जग में डूबा हुआ डूब जा जरा तू खुद में रे

तुझ में ही मिलेगा तुझको वो तेरा अनदेखा रास्ता रे
खोज ले खुद को तू खोया है तू अब खुद ही में रे

जलती हुयी तीलियों का इतना ही फ़साना है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अपना हूँ मैं

कच्चे थे पर कितने सच्चे थे
वो मिटटी के घरोंदे कितने अच्छे थे

सदा अपना मिल जाता था वंहा
क्या हसीन था वो छूटा मेरा जँहा

खिलती रहती थी वंहा हंसी मेरी
बिखरी मिलती थी मुझे खुशी मेरी

वो बचपन मुझे बहुत याद आता है
उसके और करीब वो मुझे ले जाता है

सपनों में ही अब वो रोज मिलता है
भूल ना जाना अपना हूँ मैं ये कहता है

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बहुत अजीब बात है ये ना

बहुत अजीब बात है ये ना
बता अब वो कौन और किस के साथ है ये ना

मेरे हिस्से की तकलीफें बस वो मेरी ही थी.
मैं बे वजह ही इल्जाम देता रहा औरों को

जान लीजिये खुद को अब पहचान लीजिये खुद को
ऐसे ना हो अब कोने में रखा कबाड़ मान लीजिये खुद को

आईना वो ही दिखता रहा जो मैं देखना चाहता रहा
बहुत कोशिशें की मैंने पर मैं खुद को ना देख सका

बहुत बारिशें हुयी मुझ पर वो आयी और चली भी गयी
पर मेरे जमीर पर पड़ी मिटटी को वो गीला ना कर सकी

बहुत अजीब बात है ये ना

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खो ना जाऊं कंही

खो ना जाऊं कंही .... २
इन वादियों में मैं कंही
तेरी इन हसीन वादियों में मैं कंही
खो ना जाऊं कंही .... २

ले चल तू मुझे
पास अपने साथ अपने मुझे
बुला रहा है तू मुझे
पास अपने साथ अपने मुझे
खो ना जाऊं कंही .... २

मंजिलें है मेरी मेरा है ये सफर
बस तू ही तू मेरा और कोई नही
पाने को मचल रहा हूँ मैं तुम्हे
बस तू ही तू मेरा और कोई नही
खो ना जाऊं कंही .... २

बाहें फैला ले तू
आ रहा हूँ मैं पास तेरे साथ तेरे
मेरा मुकदर है तू तुझे पाने
आ रहा हूँ मैं पास तेरे साथ तेरे
खो ना जाऊं कंही .... २

बालकृष्ण डी ध्यानी
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वहां पहाड़ों में

गिरते हुये झरनों का पानी कहे
छम छम
मेरे पहाड़ों की वो रवानी कहे
छम छम

अमरुद सेब अरु की डाली झूमे
झम झम
मेरे पहाड़ों की वो बोली झूमे
झम झम

पौड़ी कमो टिहरी जौनसार घूमे
चल चल
मेरे पहाड़ों की वो सड़कें घूमे
चल चल

छूट ना जाये कुछ सुंदर सा तेरा
पल पल
मेरे पहाड़ों पर वो यादें चले
पल पल

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