Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447759 times)

devbhumi

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राधा बिना है कृष्ण अधूरा

राधा बिना है कृष्ण अधूरा
ये जग क्यों कहे उन को पूरा
मन की निर्मल है ये बस भावना
मुहब्बत कि बहे बस वो कल कल धारा
राधा बिना है कृष्ण अधूरा ......

राधा की है ये ऐसी चाहत
बस उसे हर और देखे कृष्ण की मूरत
राधा को देखे बस कृष्ण ही कृष्ण
कृष्ण को दिखे बस राधा ही राधा
राधा बिना है कृष्ण अधूरा ......

प्रेम की है वो ऐसी परिभाष
कृष्ण है राधा और राधा है कृष्ण
सब कुछ है वंहा आधा ही आधा
प्रेम है आधा त्याग है आधा
राधा बिना है कृष्ण अधूरा ......

जग हो जाये सब के लिए आधा
आधा आपका और आधा हमारा
बन जाये हम भी अब राधा कृष्ण
तुम बन जाओ राधा और हम कृष्ण
राधा बिना है कृष्ण अधूरा ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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चुपके चुपके ये ज़िन्दगी

चुपके चुपके ये ज़िन्दगी
आती है और जाती है
मीठी मीठी बातें कर के
ये दिल में उतर जाती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

बच के रहना यारों इस से
ये यूँ ही घुलमिल जाती है
आशिक बनकर अपना वो
कभी जलाती कभी तड़पती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी.....

भूलना चाहो इस को तो
ये यूँ ही बार बार याद आती है
दिल की गहराई में बसी है
ये आँखों को रोज यूँ रुला जाती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

ढूढ़ने चले इसको तो
ये खुद पता पूछ आ जाती है
तलाश खत्म होने पर भी
ये किसी को भी समझ ना आती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

हम से शुरू होकर ये
हम पर ही ये ख़त्म हो जाती है
दो पन्नो में सिमटी इसकी कहानी
फिर भी अनजानी रह जाती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेरे अहसास आ आजा पास मेरे साथ साथ तू मेरे

जो भी हो भला बुरा वो मैं बस लिख देता हूँ
इन कोरे पन्नो पे मैं अपना रंग यूँ ही भर देता हूँ

कुछ सिकोड़ से वो गये कुछ मटमैले वो हो गये
अब भी बैठ हैं उस कोने से वो अपने में ही खो गये

आँखों की नमी है वो या है वो एक ओस की बूंद
कभी फिरी होगी उंगलियां या रोयी होगी कोई आंखें

मोड है जिन्‍दगी का या उस से जुडी हुयी वो यादें
हर पन्ने पर उभरी हैं वो अब भी हैं वो बची सिलवटें

अब भी थोड़ी सांस बाकी है उन चंद पंक्तियों में
अब भी वो बेकरार है एक गीत बन जाने के लिये

मेरे अहसास आ आजा पास मेरे साथ साथ तू मेरे
ऐसे ना तू रूठ ऐसे ना तू खफा हो वो यार तू मेरे

जो भी हो भला बुरा वो मैं बस लिख देता हूँ
इन कोरे पन्नो पे मैं अपना रंग यूँ ही भर देता हूँ

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मैं तो ऐसा ही हूँ

ना बीती बातों को लेकर बैठा हूँ मैं
ना बीती उन रातों को लेकर बैठा हूँ मैं

ना इतंजार किसी का करते बैठा हूँ मैं
ना किसी से प्यार करते बैठा हूँ मैं

ना अकेलेपन से अकेले लड़ते बैठा हूँ मैं
ना यूँ घुट घुट के अकेले मरते बैठा हूँ मैं

आज और इस पल में यूँ ही जीता हूँ मैं
अब आप ही बता दो कैसे रहता हूँ मैं

मैं तो ऐसा ही हूँ और आप ?

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मैं पहाड़ी परदेसी

पहाड़ों में ही
अब वो दिल बसता है
वो गुल पहाड़ का
अब उस से दूर ही खिलता है
वो मौका उसे अब कम ही मिलता है
माँ पिताजी, गुरूजी के चरणों में
वो शीश अब कम ही झुकता है
मैं पहाड़ी परदेसी

कैसे टूट जाते हैं
वो रिश्ते जो बिखर जाते हैं
दूर जाकर नजर आते हैं
पास रहकर वो गुम हो जाते हैं
यहाँ तो जरा सा भी दिल टूटे जाये तो
उस का पूरा फ़साना बन जाता है
कब से ये दिल टूटा है
कब से उस से वो छूटा रिश्ता है
मैं पहाड़ी परदेसी

अजीब शहर का ये दस्तूर है
हर एक अपने में ही यंहा पर मशगूल है
आदत बन गयी है अब हम को भी
खुद ही खुद को अब जख्म देने की
दिन रात उसे अपने से बस कुरेदने की
जी भर के अब खूब अकेले रोने की
रोते रोते पहाड़ तुझ से लिपट जाने की
अपने आप से ही खुद घिर जाने की
मैं पहाड़ी परदेसी

तू अब भी बहुत याद आता है
दिल मेर अब भी धक सा हो जाता है
अब भी मेरे प्रश्न अपने से ही उत्तर ढूंढते हैं
अपनी मजबूरियों से रोज जाकर वो पूछते हैं
उस चार रस्ते पर हर वक्त अपने को खड़ा पाता हूँ
किस और जाऊं मैं अपना वो रास्ता भूल जाता हूँ
खुद ब खुद फिर मैं अपने में ही लौट आता हूँ
अपनी सोच समझ को मैं ऐसे ही रोज मार देता हूँ
मैं पहाड़ी परदेसी

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देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को

देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को
दिल मेरा देखो क्यों आज भर आया
शोर मचाते मस्ती करते थे हम जब इन गालियों में
वो मंजर आँखों के सामने मेरे एकाएक फिर छा गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को ...

मौसम ने देखो कैसी बदली आज करवट है
उसका वो छुटा दामन फिर देखो मेरे हाथ आ गया
वँहा की हर एक चुप चीज आज फिर एकाएक बोल पड़ी
देखो मेरे हिस्से में पहले क्या था अब क्या आ गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को ...

आंखें खोजती हैं क्यों कर आज उन सब फिर अपनों को
क्यों वो खोया सूरज मेरा नाम पूछ कर मेरे पास आज आ गया
चाँद की वो लोरियां भी आज क्यों वो गुमसुम सी बैठी अकेली है
कहाँ से इतना दर्द आया और आके वो मुझको रुला गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को ...

ढोल नगाड़े बिना गाँव की वो सब रौनक फीकी सी है
बिना तेरे बिना मेरे इसकी सब रंगत सब अब फीकी सी है
गांव के संस्कार वो चौपाल चर्चा सब अब अधूरी अधूरी सी है
जब एक के पीछे एक अपना छोड़कर इससे दूर चला गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को ...

बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो भूली बिसरी वो रातें

वो चाँद और सितारों की बातें
वो भूली बिसरी वो रातें
जब तक साथ तुम्हार था
इन हाथों में जब तक हाथ तुम्हार था
वो चाँद और सितारों की बातें ....

शाखों से टूटे वो पत्ते
गुपचुप अकेले में जुड़ते वो रिश्ते
कही घण्टे गुजर जाते उन अंधेरों में
रुपहली चांदनी के उस घेरे में
वो चाँद और सितारों की बातें ....

सांसों की सांसों से हुयी वो मुलाकातें
धड़कन ने सुनी थी वो सब बातें
ये दिल जहाँ हम से बेगाना हुआ था
तुम्हारे दिल में तब हमारा ठिकाना हुआ था
वो चाँद और सितारों की बातें ....

अब ये हकीकत है ना रही वो दुनिया
चाँद सितारों की खो गयी अब वो नगरी कहां
किसको फुर्सत है उन्हें अब वैसे निहारने की
उस सच्चे प्रेम से अब अकेले बतिया ने की
वो चाँद और सितारों की बातें ....

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क्यों ? मैं,मैं ना रहा

उन आँखों में क्या था
जो मैं,मैं ना रहा

अदा थी या वो आहट
जो मैं,मैं ना रहा

आईना है या वो आग
जो मैं,मैं ना रहा

इल्म है या वो इश्क
जो मैं,मैं ना रहा

इल्तिजा है या वो इजाज़त
जो मैं,मैं ना रहा

किताब है या वो किस्मत
जो मैं,मैं ना रहा

ख़्वाब है या वो हकीकत
जो मैं,मैं ना रहा

चाँद है या वो चांदनी
जो मैं,मैं ना रहा

जवानी है या वो जिंदगी
जो मैं,मैं ना रहा

बेकसी है या वो बेख़ुदी
जो मैं,मैं ना रहा

मंजिल है या वो मजहब
जो मैं,मैं ना रहा

मय-कदा है या वो मय-कशी
जो मैं,मैं ना रहा

महबूब है या वो मुलाक़ात
जो मैं,मैं ना रहा

राज है या वो रास्ता
जो मैं,मैं ना रहा

वजूद है या वो वहम
जो मैं,मैं ना रहा

तुम ही कह दो अब सनम
क्यों ? मैं,मैं ना रहा

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अगर मैं पत्थर बन जाऊं

अगर मैं पत्थर बन जाऊं
क्या काम किसी के मैं आऊं

कोई उछाल दे उस ऊँचे आसमान पर
कोई मुझे पानी की सतह उपर मार दे
दो पल मैं ऐसे किसी के काम आ जाऊं
किसी के मनोरंजन का हिस्सा हो जाऊं

ना व्यर्थ ही ये जीवन मैं बिताऊं
क्या काम किसी के मैं आ जाऊं

कोई उठाकर मुझे अपने घर ले जाये
मंदिर में बिठाकर वो मेरे भजन गाये
कोई गंगा के धारा से स्नान कराये
ऐसे ही मेरे सारे किये पाप उतर जाये

सार्थकता अब मुझे मेरी मिलेगी कहाँ
अब तक मैं अपनों का ही हुआ कहाँ

अकेले पड़ा पड़ा अब लहराऊँ कहाँ
पत्थर के सीने का दर्द दिखलाऊँ कहाँ
रूह अहसास कराती है बस दर्द का
पर उस मर्ज की दवा मैं खोजों कहाँ

अगर मैं पत्थर बन जाऊं
क्या काम किसी के मैं आऊं

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मेरी जिंदगी का पन्ना

मेरी जिंदगी का पन्ना
बता,क्या है तेरी तमन्ना

या किताब है तुझे बनना
या अकेले अकेल फिर चलना
मेरी जिंदगी का पन्ना
बता,क्या है तेरी तमन्ना .....

या तुझ पर कुछ लिखूं मैं
या तुझ को कोरा ही रहना
मेरी जिंदगी का पन्ना
बता,क्या है तेरी तमन्ना .....

या कहानी होगी कोई हसीन तू
या गजल कोई दर्द तू भरी
मेरी जिंदगी का पन्ना
बता,क्या है तेरी तमन्ना .....

या आवाज किसी के लिए बनना
या अंदर ही अंदर तुझ को घुटना
मेरी जिंदगी का पन्ना
बता,क्या है तेरी तमन्ना .....

या नीले आकाश में उड़ना
या पिंजरे में तुझे कैद होना
मेरी जिंदगी का पन्ना
बता,क्या है तेरी तमन्ना .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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