Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447449 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गीत मी ....
 
 गीत मी लगाणदी  रूं 
 दुखडा अपडा बथानदी रूं 
 को भ्ज्ञान सुणलु जी
 विपदा म्यार खैरी की
 गीत मी लगाणदी  रूं  ……………
 
 मी गड्वाली पहाडा को   
 सीमलसैणधारा को 
 बंजा पड़ा पुन्गाडी मेरी 
 अल छाला पल छाला को 
 गीत मी लगाणदी  रूं  ……………
 
 लग्युं  रूं  कटुमदरी मा 
 अपरी जीमैदरी मा 
 कभी जंगलाताखता मा 
 कभी सड़की का ठेकादरों मा 
 गीत मी लगाणदी  रूं  ……………
 
 इत्गा  कै  की  भी  भै भुलों
 ध्याड़ी ना मेरी पुरी पडी 
 पुटगी की आगा ये  बल्दी रै 
 बाबा बोई बच्चा भुकी सैयी
 गीत मी लगाणदी  रूं  ……………
 
 पहाडा की ये दशा च भुलोंह   
 आंखी मेरी अब रडदी रै 
 को सुणओलो आज ये को दिलो साथ ये 
 उत्तराखण्ड मात्रभुमी मा लगी आशा ये 
 गीत मी लगाणदी  रूं  ……………
 
 गीत मी लगाणदी  रूं 
 दुखडा अपडा बथानदी रूं 
 को भ्ज्ञान सुणलु जी
 विपदा म्यार खैरी की
 गीत मी लगाणदी  रूं  ……………
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गुल
 
 युं ही चला जाओंगा
 याद किसी को ना आऊँगा
 
 खामोशी की कब्र गाह मै
 दफ़न सा हो  जाऊंगा 
 
 वंही पर भी मै
 मोहब्बत के गुल खिलओंगा
 
 मुकदर दस्तुर से रुसवा होआ मै
 मोहब्बत को ना रुसवा  कर जाऊंगा 
 
 दिल मेरा टुटा सही
 पर किसी का जोड़  जाऊंगा 
 
 बोल लिखोंगा  मोहब्बत के   
 बोलो मै मई ही मुस्कुराओंगा
 
 गम सुदा रही  राहगीर  के
 हाथों  मै  जब  मै  छुट जाऊंगा 
 
 गर  कोई उठा  लेगा  मुझे
 उसकी दिल  से लग जाऊंगा 
 
 दर्द ना  होगा  मुझे  तब जाकर
 जब  किसी  के प्यार मै स्वीकार  जाऊंगा 
 
 मर कर मेरी  मोहबत  को  पान्हा  मिली  गी तब
 जब  फिर  गुल  बनकर  किसी  के  हाथ  मै  आऊँगा
 
 काँटों  के संग खिलता जाऊंगा
 प्रेम ही प्रेम फैलाओंगा     
 
 मै  यूँ ही  चला जाऊंगा 
 याद  किसी   को  ना  आऊँगा
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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केलै च केलै

केलै वहली उदास
भुली बैठी से ढयां मा
कीलै रुणी होली माँजी
ये कुडा का कोणा मा
केलै खोज्यांण वहाली बोउजी
खडी अपरी तिबारी मा
केलै च केलै . .….

भुल्हा दादा बाबाजी परदेश च गयां
अपरू देश अपरू गढ़ अपरू कुडा थै छुडी की
सब का सब अब छुडी की गयाँ
एक ढंगी की गुआड़ सी रंभती रयां
केलै च केलै . .….

परदेश का बाटा अब भी णी थकयाँण
घुघुती हिलंशा उड़ उडेकी थकीगयां
गों गओं कैकी सरू गढ़ रीता व्हैणा
बैठाल बच्चा बस दाणा ही ये गढ़ मा देख्याना
केलै च केलै . .….

रामी को बाणबाश कब खत्म व्हालो
कब ये गढ़ मा पलायन रहित सुरज उदये व्हालो
कब तलक ब्याठ्ला एक्ला एक्ला रहला
कब जाकै बसंत बयार दगडी बहाली
केलै च केलै . .….

केलै वहली उदास
भुली बैठी से ढयां मा
कीलै रुणी होली माँजी
ये कुडा का कोणा मा
केलै खोज्यांण वहाली बोउजी
खडी अपरी तिबारी मा
केलै च केलै . .….

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एक छोटे

एक छोटे हिस्से मै
बसा होआ है छुपा होआ है
ना तेरा है ना मेरा है
पर धडकता है धडकता है
लेकर तेरा नाम
एक छोटे से हिस्से मै..............

ना कुछ काम है बस
धडकता है ऐ सुबह और शाम
ना जाने कब मिलेगा इसे आराम
गलियों मै हो रहा यह बदनाम
अब तो ऐ खुले और सरैआम
एक छुटे से हिस्से मै..............

कभी सांस छु जाती है
कभी अश्क मै बह जाती है
कभी खुन साथ बहती है
कभी खुशी गम साथ लाती है
लेकिन वो धडकती रहती है
एक छुटे से हिस्से मै..............

दुवाओं का साथ देती
कभी पराया कर देती है
अपनों को रुसवा कर
कभी सपनों को सजाती है
एक छुटे से हिस्से मै..............

मन मस्तिष्क मै इसका
छया है इसका एक छत्र राज्य
धडकना ही इसका बस काम
रुका अगर जाये तो समझो
जीवन को मीले पूर्ण विराम
तो धडका धक् धक् धक्
लेकर बस तेरा ही नाम
एक छुटे से हिस्से मै..............

एक छुटे हिस्से मै
बसा होआ है छुपा होआ है
ना तेरा है ना मेरा है
पर धडकता है धडकता है
लेकर तेरा नाम
एक छुटे से हिस्से मै..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मोक्ष का लालच मा
 
 कोटद्वार देहरादूंण मा
 बस्युं मन मेरु अब
 कखक जाण मील
 ये उकाला चड़ी गढ़ तेरु
 कोटद्वार देहरादूण मा ...........
 
 कभी चा ये गढ़ मेरु
 रैगै बस याद तेरु 
 याद कैकी कीलै  रुणु 
 अब यखी अपरी नगरी बसाण
 कोटद्वार देहरादूण मा ...........
 
 याद ऐ भी जली त
 तब चली जोंला वख 
 सैर सफाटा बाण ये गढ़ तेरु
 दोई चार दीण ऐंजूंला यख 
 कोटद्वार देहरादूण मा ...........
 
 मुंबई दिल्ली मा भी मी दुआड़ो
 उडी जंद सात समुद्र पार अब तन मेरु
 मया और मण को मेरु घेरु
 तब  तो कखक  भातैक याद आन्द गढ़तेरु
 कोटद्वार देहरादूण मा ...........
 
 जावणी गै बुडापा ऐ 
 तब याद  ऐ तो ये गढ़ मेरु
 आंखी भीग जांदा 
 जब भी अब याद अन्द गढ़मेरु
 मोक्ष का लालच मील 
 परती आण गढ़मेरु
 कोटद्वार देहरादूण मा ...........
 
 कोटद्वार देहरादूंण मा
 बस्युं मन मेरु अब
 कखक जाण मील
 ये उकाला चड़ी गढ़ तेरु
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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तडपी  तो होगी वो ?
 
 आज़माईश आगो़श की 
 आलिंगन तडपती उस गोद की 
 उदास दु:खित उस कोख की 
 रीति ओर आचरण के प्रकोप की 
 आज़माईश आगो़श की............ 
 
 दोपट्टे के उस कोण मै 
 प्रचण्ड इच्छा, लोभ, मै
 आँच की ज्वाला मै जवालीत 
 भुर्ण कन्या इस लोक मै
 आज़माईश आगो़श की ............
 
 आफ़ात है वो दुर्भाग्य कठिनाइयां
 कन्या नाम मात्र से फ़ैली रूसवाइयां
 धूल भरी तेज़ हवा अंधड
 खो गयी वह दर्पण की चमक
 आज़माईश आगो़श की.......
 
 तडपी तो होगी वो
 स्वयं किसी तरहं सीमटी तो होगी वो
 अन्त अन्तिम पडवा मै
 आगो़श के उस आलिंगन को
 तरसती तो होगी वो
 आज़माईश आगो़श की ........
 
 आज़माईश आगो़श की 
 आलिंगन तडपती उस  गोद की 
 उदास दु:खित उस  कोख की 
 रीति ओर  आचरण के प्रकोप की
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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  • देव भूमि बद्री-केदार नाथ20 minutes ago near New Delhiअब संध्या को मुलकात होगी तब तक जय बद्री-केदार जय उत्तराखंड !!!Like ·  · Share
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  • देव भूमि बद्री-केदार नाथ4 hours agoआंखें
     
     इन आँखों से जरा
     कह  देना ऐ दिल
     धडके तो अब होलै होलै
     
     इन पलकों तले
     लग जा तो गले
     अब तो होलै होलै
     
     सुबह शमा बस अब
     इनके ही  इशारे से
     ढले वो भी होलै होलै
     
     वकत भी ना गुजरे  देखो
     अब उन्हे देखे बिना
     नजरें खोजें होलै होलै
     
     एक तरनुम हो या एक
     छलकता होआ जमा हो
     कैसे बयां करों होलै होलै
     
     काशीस हो तुम तुफान हो
     या शीतलता का वरदाना हो
     मुझे छुना पर होलै होलै
     
     एक नशा एक प्यास हो
     या तो किसी की आस हो
     चाहता है तुम्हे वो होलै होलै
     
     बस अब दिल ही डोले
     मारे अब वो हिचकोले
     प्रेम के अब होलै होलै 
     
     इन आँखों से जरा
     कह  देना ऐ दिल
     धडके तो अब होलै होलै
     
     बालकृष्ण डी ध्यानी
     देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एक छोटे
 
 एक छोटे हिस्से मै
 बसा होआ है छुपा होआ है
 ना तेरा है ना मेरा है
 पर धडकता है धडकता है 
 लेकर तेरा नाम
 एक छोटे से हिस्से मै..............
 
 ना कुछ काम है बस
 धडकता है ऐ सुबह और शाम
 ना जाने कब मिलेगा इसे आराम
 गलियों मै हो रहा यह बदनाम
 अब तो ऐ खुले और सरैआम
 एक छुटे से हिस्से मै..............
 
 कभी सांस छु जाती है
 कभी अश्क मै बह जाती है 
 कभी खुन साथ बहती है
 कभी खुशी गम साथ लाती है
 लेकिन वो धडकती रहती है
 एक छुटे से हिस्से मै..............
 
 दुवाओं का साथ देती
 कभी पराया कर देती है
 अपनों को रुसवा कर
 कभी सपनों को सजाती है 
 एक छुटे से हिस्से मै..............
 
 मन मस्तिष्क मै इसका
 छया है इसका एक छत्र राज्य
 धडकना ही इसका बस काम
 रुका अगर जाये तो समझो
 जीवन को मीले पूर्ण विराम
 तो धडका धक् धक् धक्
 लेकर बस तेरा ही नाम
 एक छुटे से हिस्से मै..............
 
 एक छुटे हिस्से मै
 बसा होआ है छुपा होआ है
 ना तेरा है ना मेरा है
 पर धडकता है धडकता है 
 लेकर तेरा नाम
 एक छुटे से हिस्से मै..............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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आज़ाद है
 
 स्वतन्त्र है
 या बाधारहित है
 इस आज़ाद देश मै ?
 आज ......
 
 आदमियत मनुष्यता शिष्टता
 ना जाने कंहा लुप्त होई इस देश मै
 हर व्यक्ति आज यंहा
 सच्चा, नेक ओर क्या एक निष्ट है ?
 आज ......
 
 इच्छा, लालसा, आशा, अभिलाषा ही
 रोंन्द रही है सच्चाई विचारों की
 भविष्य में अंधकार ही क्यों आगे
 आज छया है अब इस तरहं
 आज ……
 
 समृद्ध, अमीर, सन्तुष्ट पापी, दोषी
 सरल, सुगम, सहज विचरित हैं इस देश मै
 अश्रु के बूंदे छलकती क्यों नहीं एक ही इस भेष मै
 आज़ाद देश क्यों नहीं लै रहा निश्वास, दीर्घश्वास ?
 आज .......
 
 हर एक यंहा पर
 बौख़लाया घबराया और भ्रमित सा
 आतंका के छत्र मै इस तरह जी रहा है वो
 धीमे से लहू के घुट जैसे पी रहा है वो
 आज ..........
 
 आज़ाद
 आज हर कोई क्या ?
 आज़ाद है
 स्वतन्त्र है
 या बाधारहित है
 इस आज़ाद देश मै ?
 आज ......
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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भुलयाँ
 
 भुलयाँ तुम भुलयाँ
 ये गढ़देश तुम भुलयाँ 
 कखक रयां तुम आज भुलयाँ
 प्रगती बाटा मा तुम रोडया बानया
 भुलयाँ तुम भुलयाँ…………………..
 
 गतीशील गढ़ मा
 गतीदार ही णी  रायाँ यख
 तुम साथ छुडी की गयाँ
 खैणी कमाणी वहाली कखक
 भुलयाँ तुम भुलयाँ…………………..
 
 बोल्दा रायँ सब का सब
 गढ़देश मा जींदगी कटेली कण
 भागी की  गढ़देस भातैक
 क्या जीन्दगी सुधर जली यख
 भुलयाँ तुम भुलयाँ …………………..
 
 तुमी सोचयां तुमी बुज्यां
 तुमी सवाल तुमी जवाब
 उताराखंड दागडी ऐजावा 
 अब भी सवेर रोज आणी यख
 भुलयाँ तुम भुलयाँ …………………..
 
 भुलयाँ तुम भुलयाँ
 ये गढ़देश तुम भुलयाँ 
 कखक रयां तुम आज भुलयाँ
 प्रगती बाटा मा तुम रोडया बानया
 भुलयाँ तुम भुलयाँ…………………..
 
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