बस नाम ही काफी है
बस नाम ही काफी है
होशियार तो बस सिर्फ शौक है
बाकी सब बेमानी है
झूठें हैं ये सब रिश्ते
बस किस्सों में बँटी कहानी है
बह जाता है ये पानी भी
जो उस समंदर के हिस्से हैं
चित्र-विचित्र ये नगरी है
कभी भरती नहीं ,कैसी वो गगरी है
छ्ल छ्ल कर वो छलक जाती है
बस दृष्टिकोण की ही गलती है
फर्श से जो अर्श पर जा बैठे
इस ज़िंदगी में उनकी ही रवानी है
भूल जातें हैं सब जब उन दुखों को
आँखों में बस तब बचता पानी है
रेखाएं रह रहकर अब उभरती हैं
पूछती है क्या गलती है
क्या छूटा मेर पीछे ऐसा मुझसे
अक्सर आ कर क्यों वो तड़पती हैं
बस नाम ही काफी है ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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