Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447250 times)

devbhumi

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इन ही मेर छूई छे

मि छौ घंघतोळ मां
देख बुरो ना मानी
रै जांदू सुधि  इन टमटोल मां
देख बुरो ना मानी

पुरणा दिन याद कैरी कि
देख बुरो ना मानी
अब त्यारु टैम निछ रे
देख बुरो ना मानी

रैंदा सबि इन टमटोल मां
देख बुरो ना मानी
जिंदगी कि या झमाझौळ थे
देख बुरो ना मानी

इन ही मेर छूई पढ़ै कि
देख बुरो ना मानी
मि सुधि लिख्वादार छौ
पढ़ै ले  बुरो ना मानी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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रतनली आँखि

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

रतनली आंखि तेरी
क्दगा मयाळी  मिथे भरमिगे
पुरतो अपड़ो कैगे

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

जुन की जुन्याली
ऐ मेर लजालि मुखड़ी
माया कु जालो मां मि अड़की गे

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

भौळ मां आलू
टक रैबर लेकी सुबेर सुबेर
ऐ सूरज बल जी बस तेरो नौ लेकि

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

त्यारी पैजबि बज्दी च छम छम
बग्दी गदनि लगणा लगि गीत
बल बस तेरु सरगम

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मौसम बदलने में

मौसम बदलने में
वक्त नहीं लगता है
देख अपना अपनों से
कैसे अब अखरता है

दूर  ......५
दूर उन चट्टानों  पे
फूल एक खिलता  है
काटों और गारों में
कैसे हिलता ढुलता है

धुप छाँव में देख
अटखेली वो लेती है
सुंदर छटा बिखरेती
ना जाने क्या वो पहेली है

प्रेरणा इस दिल को
उसकी ऐसे छू जाती है
असीम सुख अनभूति
जाने वो कैसे दे जाती है

मौसम बदलने में  ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब भी हवा  ......

अब  भी हवा बहती तो होगी
आँचल को तेरे छू के आज
अब भी हवा  ......

छू  कर तुझको कहती तो होगी
जज़्बात मेरे आधे अधूरे अब भी आज
अब भी हवा  ......

हकीक़त दुनिया से (दूर खड़ा) . ..२
मै खुद से बहुत दूर मजबूर खड़ा हूँ
यहां पर हवा में लटके नल
आँखों से लगातार बस बहता है पानी
अब भी हवा  ......

पंखे की हवा कितनी गर्म है
ठंडी है वो पर मेरी तबियत नरम है
उस नदी की धार में ठंडी हवा बहती तो होगी
तुझ से (लिपट) .२  मेरा हाल कहती तो होगी 
अब भी हवा  ......

आंखों का पानी कहाँ गायब हो जाता अचानक
जब भी तेरी सूरत नजर आती भीग कर मुझ तक
हवा में भेजना तुम अपना प्यार छुपाकर
बैठा हूँ मै भी उसे अपने दिल से लगाकर
अब भी हवा  ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कै दगडी

कै दगडी  खेळण होलि भैजी
कख मां पेटण होलि
कैमा लगाण गुलाल आज  भैजी
ओ भैजी कख च हमरु पहाड़
भैजी कख च हमरु पहाड़

रीती रिवाज बी हर्चि
हर्चि बार तियोहरा भैजी
हर्चि बार तियोहरा
कै घार कै गौं जौं
तू बता दे मिथे आज भैजी
तू बता दे मिथे आज

संघोलू ताळो मां मिन
एक न्योत फिर लेखी ऐई
जै बी पड़ला वैथे भग्यान
झट अपडु घार दौड़  ऐई भैजी
झट अपडु घार दौड़  ऐई

कुछ बी नि रैगे यख तेर बिगर
ना रेगै वा सेवा सौंळि  भैजी
ना रेगै वा सेवा सौंळि 
आखेर बगत च आखेर स्वास भैजी
तू झट आ दौड़ी ,तू झट आ दौड़ी

कै दगडी ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बस नाम ही काफी है

बस नाम ही काफी है
होशियार तो बस सिर्फ शौक है
बाकी सब बेमानी है

झूठें हैं ये सब रिश्ते
बस किस्सों में बँटी कहानी है
बह जाता है ये पानी भी 
जो उस समंदर के हिस्से हैं

चित्र-विचित्र ये नगरी है
कभी भरती नहीं ,कैसी वो गगरी है
छ्ल छ्ल कर वो छलक जाती है
बस दृष्टिकोण की ही गलती है

फर्श से जो अर्श पर जा बैठे 
इस ज़िंदगी में उनकी ही रवानी है
भूल जातें हैं सब जब उन दुखों को
आँखों में बस तब बचता पानी है

रेखाएं रह रहकर अब उभरती हैं
पूछती है क्या गलती है
क्या छूटा मेर पीछे ऐसा मुझसे
अक्सर आ कर क्यों वो तड़पती हैं

बस नाम ही काफी है  ........

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इस होली में

इस होली में
कोई भी रंग रहे ना अधूरा
ना रहे वो तेरा
ना रहे वो मेरा
इस होली में  ..............

पिचकारी  जो पिचकी
वो ना पूछे कोई धर्म को
बौछार मारे वो बस
उस पावन मन को
इस होली में  ..............

सब रंग  हो जाये एक
एक हो जाये ऐ भारत मेरा
हर स्वांस  तन के मन में
रह जाये बस तेरा बसेरा
इस होली में  ..............

जलने  दो  अब तुम
उस होलिका को खुद से
उस नन्हे मन प्रह्लाद को
पालो अब खूब जतन से 
इस होली में  .............. 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अपनी परछाइयों से

अपनी परछाइयों से खेलना
अब अच्छा लगता है
झूठ ही सही वो सपना
अब सच्चा लगता है 

आंखें रंग भरने लगी हैं
प्यार की, प्यार के इन्तजार की 
आईने में रह रहकर सँवरना
अब अच्छा लगता है

इशारों वफ़ाओं के
गहरे समुंदर  में उतरने लगा हूँ मैं
अक्सर अपने इस हाल पे हंसना रोना
अब अच्छा लगता है

कैसे रास्ता गुजरेगा
कैसे मिलेगी वो मेरी मंजिला
बेफिक्र ही उस मकाम की ओर बढ़ना
अब अच्छा लगता है

अपनी परछाइयों से खेलना  ...........

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दुई छीटगा

एक और्री दुई छीटगा
मे परि ही तू छीटगे दे जरा
छीटगा .. २ मेर कुर्ती परि तू  बनेदे  जरा
एक और्री दुई छीटगा

सौ बरसी को  पुराना  डालो
आज भेटकु भतेक देख लमडिग्याई
पहाड़ मेरु गैल्या आज ,तू कै बाट बिरदीगे
एक और्री दुई छीटगा

दुई  रंगा मां रंगी छे ये भली बुरी दुनिया
पानी का ऊ छीटगा में परि छीटका
मि  थे वा कैर गंया हैरा और्री सूखा
एक और्री दुई छीटगा

मिथे किलै कि बुरो लगलो
कबि मेरु छ्या कया ऊ
हाक दिल वैल मिथे मिल अणसुनै कै द्याई
एक और्री दुई छीटगा

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अभी तो आना तेरा

अभी तो आना तेरा
अभी चले जाना
जिंदगी बस तेरा 
इतना ठिकाना,इतना बहाना 

बिखरी है तू
कैसे समेटूँ  तुझे
आगोश है अब तरसे
बता कैसे लेलूं तुझे

ना तेरा घर है
ना कोई मेरा ठिकाना
आ ही जाती है तू
जब तुझे
आना और जाना

मन की आवाज मेरी
तन्हाई बस वो साथ तेरी
कुछ अनकही नज्में तेरी
वो मेरे आंखों की नमी

अभी तो आना तेरा  ......

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